क्लास एक्शन सूट्स | 24 Jun 2021
प्रिलिम्स के लिये:ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड, प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019, जनहित याचिका, क्लास एक्शन सूट मेन्स के लिये:क्लास एक्शन सूट का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में घटित‘ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड’ (ONGC) से संबंधित ‘बार्ज त्रासदी’ जैसी घटनाएँ भारत में प्रभावी क्लास एक्शन सूट/मुकदमों की अनुपस्थिति को रेखांकित करती हैं।
- चक्रवात ताउते के कारण ‘बॉम्बे हाई’ से ONGC के जहाज़ों के क्षतिग्रस्त होने के बाद 71 लोगों की मौत हो गई थी।
ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन लिमिटेड:
- यह भारत सरकार का एक महारत्न सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम (PSU) है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1995 में हुई थी और यह पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अधीन है।
- यह भारत की सबसे बड़ी कच्चे तेल और प्राकृतिक गैस कंपनी है, जो भारतीय घरेलू उत्पादन में लगभग 70% का योगदान करती है।
प्रमुख बिंदु:
- यह लोगों के एक बड़े समूह का प्रतिनिधित्व करने वाले समूह द्वारा अदालत में लाया गया मामला है, जिनकी संख्या अक्सर हज़ारों में होती है और इन्हें एकसमान नुकसान हुआ होता है।
- यह अवधारणा ‘प्रतिनिधि मुकदमेबाज़ी’ की अवधारणा से ली गई है, जिसमें एक शक्तिशाली विरोधी के खिलाफ आम व्यक्ति के लिये न्याय सुनिश्चित किया जाता है।
- ऐसे मामलों में आरोपी आमतौर पर कॉर्पोरेट संस्थाएँ या सरकारें होती हैं।
- आमतौर पर क्लास एक्शन सूट में भुगतान किया गया नुकसान व्यक्तिगत स्तर पर छोटा हो सकता है या मात्रात्मक भी नहीं हो सकता है।
- हालाँकि गणना की गई कुल क्षति बड़ी हो सकती है।
- जनहित याचिका (संविधान का अनुच्छेद 32 या अनुच्छेद 226) और क्लास एक्शन सूट के बीच का अंतर यह है कि क्लास एक्शन सूट के विपरीत एक निजी पक्ष के खिलाफ जनहित याचिका दायर नहीं की जा सकती है।
क्लास एक्शन सूट का इतिहास:
- ‘क्लास एक्शन सूट’ का इतिहास 18वीं शताब्दी से पहले का है, इन्हें औपचारिक रूप से अमेरिका में वर्ष 1938 में नागरिक प्रक्रिया के संघीय नियमों के तहत कानून में शामिल किया गया था।
- यह अमेरिका में व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला एक उपकरण है जहाँ व्यक्ति या छोटे समुदाय, एक बड़ी इकाई के कार्यों से व्यथित सामूहिक रूप से कानूनी विकल्पों का प्रयोग करने के लिये एक साथ आते हैं।
- वर्षों से लापरवाही पर अंकुश लगाने में ‘क्लास एक्शन सूट’ इतना सफल सिद्ध हुआ है कि अब यह अमेरिकी कॉर्पोरेट और उपभोक्ता कानूनों, पर्यावरण मुकदमेबाज़ी आदि का एक हिस्सा है।
भारत में ‘क्लास एक्शन सूट’ से संबंधित नियम:
- सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 :
- सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 भारत में सिविल कार्यवाही के प्रशासन से संबंधित एक प्रक्रियात्मक कानून है।
- नियम 8 प्रतिनिधि सूट को संदर्भित करता है जो भारत में नागरिक संदर्भ में ‘क्लासिक क्लास एक्शन सूट’ के सबसे करीब है। यह आपराधिक कार्यवाही को कवर नहीं करता है।
- कंपनी अधिनियम 2013:
- इसकी धारा 245 किसी कंपनी के सदस्यों या जमाकर्ताओं को विशिष्ट मामलों में कंपनी के निदेशकों के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने की अनुमति देती है।
- इस तरह के मुकदमे के आगे बढ़ने से पहले की थ्रेसशोल्ड सीमाएँ हैं, जिसके लिये न्यूनतम संख्या में लोगों या शेयर पूंजी धारकों की आवश्यकता होती है।
- इस प्रकार का मुकदमा वर्तमान में नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLAT) में दायर किया गया है।
- प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम 2002:
- धारा 53 (N) के तहत यह पीड़ित व्यक्तियों के एक समूह को प्रतिस्पर्द्धा-विरोधी कार्यों से संबंधित मुद्दों के संदर्भ में NCLT में उपस्थित होने की अनुमति देता है।
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 :
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत कुछ शिकायतों को ‘क्लास एक्शन सूट’ माना जा सकता है। (रामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव और अन्य बनाम द्वारकाधीश परियोजना प्राइवेट लिमिटेड और अन्य 2018)।
लाभ
- न्यायालय के बोझ में कमी
- इसका एक तात्कालिक लाभ यह है कि न्यायालय को केवल एक मामले की सुनवाई करनी होती है न कि कई मामलों की। पहले से ही भारतीय न्यायालय मामलों के बोझ में दबे हुए हैं, ऐसे में क्लास एक्शन सूट के माध्यम से उनके बोझ को कम किया जा सकता है।
- कमज़ोर और संवेदनशील वर्ग की सहायता
- चूँकि सभी के पास कानूनी कार्यवाही के लिये साधन या समय नहीं होता है, ऐसे में धन और साधन से सक्षम लोगों का एक छोटा समूह अन्य पीड़ितों को न्याय दिला सकता है।
- ब्रांड छवि को प्रभावित करता है
- कंपनियाँ ऐसे मुकदमों का सामना करने से हिचक रही हैं, क्योंकि इससे उनकी ब्रांड छवि प्रभावित होती है। वे अपनी प्रतिष्ठा को होने वाले नुकसान को कम करने के लिये ऐसे मामलों को तेज़ी से निपटाना पसंद करते हैं।
- हालाँकि आरोपी पक्षों के लिये एक फायदा यह है कि उन्हें केवल एक ही मामले से निपटना होता है।
चुनौतियाँ
- अविकसित ‘टॉर्ट’ प्रणाली
- टॉर्ट कानून भारत में कई कारणों से पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुआ है, मुख्य रूप से मुकदमेबाज़ी की उच्च लागत और समय लेने वाली प्रकृति के कारण।
- ‘टॉर्ट कानून’ उन कानूनों का एक समूह है, जो लोगों को उनके खिलाफ की गई गलतियों या अपराधों के लिये मुआवज़े की मांग करने में सक्षम बनाता है।
- टॉर्ट कानून भारत में कई कारणों से पर्याप्त रूप से विकसित नहीं हुआ है, मुख्य रूप से मुकदमेबाज़ी की उच्च लागत और समय लेने वाली प्रकृति के कारण।
- आकस्मिक शुल्क का अभाव:
- बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम वकीलों को आकस्मिक शुल्क लेने की अनुमति नहीं देते हैं, यानी दावा करने वालों को केस जीतने पर मिलने वाले नुकसान का एक प्रतिशत।
- यह वकीलों को अधिक समय लेने वाले मामलों में पेश होने से हतोत्साहित करता है, क्लास एक्शन सूट अनिवार्य रूप से काफी अधिक समय लेते हैं।
- वादियों के लिये थर्ड-पार्टी वित्तपोषण तंत्र का अभाव:
- चूँकि मुकदमेबाज़ी की लागत अधिक होती है, इसलिये थर्ड-पार्टी को मुकदमेबाज़ी की लागत को प्रायोजित करने की अनुमति देकर क्लास एक्शन सूट को और अधिक सुगम बनाया जा सकता है।
- ज्ञात हो कि महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों ने इसकी अनुमति देने के लिये नागरिक प्रक्रिया संहिता में बदलाव किये हैं।
- चूँकि मुकदमेबाज़ी की लागत अधिक होती है, इसलिये थर्ड-पार्टी को मुकदमेबाज़ी की लागत को प्रायोजित करने की अनुमति देकर क्लास एक्शन सूट को और अधिक सुगम बनाया जा सकता है।
आगे की राह
- भारत को जवाबदेही निर्धारित करने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिये, ज्ञात हो कि इस अवधारणा को विकसित अर्थव्यवस्थाओं में काफी गंभीरता से लिया जाता है और यही उन्हें रोज़गार और व्यापार के लिये एक बेहतर स्थान बनाता है।
- ऐसे मामलों को उठाने के लिये वकीलों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, यह ‘क्लास एक्शन सूट’ को मुख्यधारा में लाने की दिशा में पहला कदम होगा।
- यदि भारत को ‘इज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ रैंकिंग में सुधार करना है, खास तौर पर आपदा रोकथाम और जीवन के जोखिम के क्षेत्र में, तो क्लास एक्शन सूट काफी महत्त्वपूर्ण हो सकता हैं।