चीन ने दो बच्चों की नीति में ढील दी : भारत के लिये सीख | 04 Jun 2021
प्रिलिम्स के लियेराष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना, मिशन परिवार विकास, प्रजनन दर, भारत की जनसंख्या वृद्धि मेन्स के लियेचीन की जनसंख्या नीतियाँ, जनसंख्या गिरावट की चिंताएँ, भारत के लिये सीख, महिला सशक्तीकरण, जनसंख्या नियंत्रण संबंधी भारतीय उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में चीन ने जनसंख्या नियंत्रण हेतु स्थापित दो-बच्चों की नीति में ढील देते हुए यह घोषणा की है कि अब से प्रत्येक विवाहित जोड़े को तीन बच्चे पैदा करने की अनुमति प्राप्त होगी।
- इसके अतिरिक्त इस घोषणा में कहा गया कि वह प्रत्येक वर्ष सेवानिवृत्ति की आयु में कुछ महीने की वृद्धि करेगा। विगत चार दशकों से चीन में सेवानिवृत्ति की आयु पुरुषों के लिये 60 वर्ष और महिलाओं के लिये 55 वर्ष रही है।
प्रमुख बिंदु
चीन की जनसंख्या नीतियाँ:
- वन चाइल्ड पॉलिसी:
- चीन द्वारा ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ की शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी, उस समय चीन की जनसँख्या लगभग एक अरब के करीब थी और चीनी-सरकार को इस बात की चिंता थी कि देश की बढ़ती आबादी, आर्थिक प्रगति को बाधित करेगी।
- चीनी प्राधिकारियों द्वारा लंबे समय तक इस नीति को एक सफलता के रूप में बताया जाता रहा और दावा किया गया कि इस नीति ने लगभग 40 करोड़ लोगों को पैदा होने से रोककर देश के समक्ष आने वाली भोजन और पानी की कमी संबंधी गंभीर समस्याओं को टालने में मदद की है।
- हालाँकि यह नीति देश में असंतोष का एक कारण भी थी क्योंकि राज्य द्वारा जबरन गर्भपात और नसबंदी जैसी क्रूर रणनीति का इस्तेमाल किया गया।
- इसकी आलोचना भी की गई और यह मानवाधिकारों के उल्लंघन एवं गरीबों के साथ अन्याय करने के लिये विवादास्पद रही।
- चीन द्वारा ‘वन चाइल्ड पॉलिसी’ की शुरुआत वर्ष 1980 में की गई थी, उस समय चीन की जनसँख्या लगभग एक अरब के करीब थी और चीनी-सरकार को इस बात की चिंता थी कि देश की बढ़ती आबादी, आर्थिक प्रगति को बाधित करेगी।
- टू चाइल्ड पॉलिसी:
- वर्ष 2016 में अपनी जनसंख्या वृद्धि दर में तीव्र गिरावट को देखते हुए वन चाइल्ड पॉलिसी को परिवर्तित करते हुए चीनी सरकार ने अंततः प्रत्येक विवाहित जोड़े को दो बच्चे पैदा करने की अनुमति दी।
- थ्री चाइल्ड पॉलिसी:
- चीनी जनगणना, 2020 के आँकड़ों के बाद यह घोषणा की गई थी कि वर्ष 2016 में प्रदान की गई छूट के बावजूद देश की जनसंख्या वृद्धि दर तेज़ी से गिर रही है।
- देश की प्रजनन दर गिरकर 1.3 हो गई है, जो कि 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है। प्रतिस्थापित स्तर इसलिये महत्त्वपूर्ण है कि एक पीढ़ी के परिवर्तन के लिये पर्याप्त बच्चों का होना आवश्यक है।
- संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि वर्ष 2030 के बाद चीन की जनसंख्या में गिरावट आने की उम्मीद है, लेकिन कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि यह गिरावट अगले एक या दो वर्षों में ही परिलक्षित हो सकता है।
जनसंख्या गिरावट की चिंताएँ:
- श्रम-बल में कमी:
- जब किसी देश की युवा आबादी में गिरावट दिखाई देती है, तो यह श्रम-बल की कमी को उत्पन्न करता है, जिसका अर्थव्यवस्था पर एक बड़ा हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
- सामाजिक खर्च में वृद्धि :
- अधिक वृद्ध लोगों से आशय यह भी है कि स्वास्थ्य देखभाल और पेंशन की मांग में वृद्धि हो सकती है जिससे देश की सामाजिक खर्च प्रणाली पर और अत्यधिक बोझ पड़ सकता है क्योंकि इसमें कम-से-कम लोग काम कर रहे होते हैं और उनका’ कम योगदान होता है।
- विकासशील राष्ट्रों के लिये चिंतनीय :
- हालाँकि चीन के लिये सबसे अहम समस्या यह है कि इस प्रवृत्ति के अन्य विकसित देशों के विपरीत यह दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद अभी भी एक मध्यम-आय वाला समाज है।
- जापान और जर्मनी जैसे विकसित देश, जो समान रूप से जनसांख्यिकीय चुनौतियों का सामना करते हैं तथा कारखानों, प्रौद्योगिकी और विदेशी संपत्तियों के निवेश पर निर्भर हो सकते हैं।
- हालाँकि चीन अभी भी श्रम-प्रधान विनिर्माण और खेती पर निर्भर है।
- इस प्रकार से जनसांख्यिकीय लाभांश में गिरावट होने से यह चीन और भारत जैसे अन्य विकासशील देशों को समृद्ध दुनिया की तुलना में अधिक नुकसान पहुँचा सकती है।
भारत के लिये सीख:
- जटिल उपायों से बचें :
- जटिल या कठोर जनसंख्या नियंत्रण उपायों ने चीन को एक ऐसे मानवीय संकट में डाल दिया जो अपरिहार्य था। यदि दो-बच्चे की सीमा जैसे कठोर या जबरदस्ती के उपाय लागू किये जाते हैं, तो भारत की स्थिति और भी खराब हो सकती है।
- महिला सशक्तीकरण :
- प्रजनन दर को कम करने के प्रमाणित तरीकों द्वारा महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण प्रदान करना और शिक्षा, आर्थिक अवसरों एवं स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में वृद्धि के माध्यम से उनका अधिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करना है।
- वास्तविकता यह है कि चीन की प्रजनन क्षमता में कमी केवल आंशिक रूप से जबरदस्ती या जटिल नीतियों से तथा बड़े पैमाने पर किये गए प्रयास से है। बड़े पैमाने पर निवेश से आशय महिलाओं के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरी के अवसरों में देश द्वारा किये गए निरंतर निवेश से है।
- प्रजनन दर को कम करने के प्रमाणित तरीकों द्वारा महिलाओं को उनकी प्रजनन क्षमता पर नियंत्रण प्रदान करना और शिक्षा, आर्थिक अवसरों एवं स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में वृद्धि के माध्यम से उनका अधिक सशक्तीकरण सुनिश्चित करना है।
- जनसंख्या स्थिरता की आवश्यकता:
- भारत ने परिवार नियोजन उपायों को व्यवस्थित ढंग से पूर्ण किया है और अब यह 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर की प्रजनन क्षमता पर है, जो वांछनीय है।
- इसे जनसंख्या स्थिरीकरण को बनाए रखने की आवश्यकता है क्योंकि सिक्किम, आंध्र प्रदेश, दिल्ली, केरल और कर्नाटक जैसे कुछ राज्यों में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन स्तर से काफी नीचे है, जिसका अर्थ है कि भारत 30-40 वर्षों में यह अनुभव कर सकता है जो चीन अभी अनुभव कर रहा है।
भारत के मामले में :
भारत की जनसंख्या वृद्धि :
- मार्च 2021 तक भारत की जनसंख्या 1.36 बिलियन से अधिक होने का अनुमान है, जो पिछले दशक में अनुमानित 12.4 % से अधिक की वृद्धि को दर्शाता है।
- यह 2001 और 2011 के बीच 17.7% की वृद्धि दर से कम है।
- हालाँकि वर्ष 2019 की संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुमान के मुताबिक, भारत वर्ष 2027 तक चीन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन जाएगा।
- भारत में 2019 और 2050 के बीच लगभग 273 मिलियन लोगों के और जुड़ने की अनुमान है ।
जनसंख्या नियंत्रण संबंधी भारतीय उपाय :
- प्रधानमंत्री की अपील: वर्ष 2019 में स्वतंत्रता दिवस भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने देश से अपील की कि जनसंख्या नियंत्रण देशभक्ति का एक रूप है।
- मिशन परिवार विकास: वर्ष 2017 में सरकार ने मिशन परिवार विकास शुरू किया। इसका उद्देश्य 146 उच्च प्रजनन क्षमता वाले ज़िलों में गर्भ निरोधकों और परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच बढ़ाना ।
- नसबंदी करवाने वालों के लिये मुआवज़ा योजना: इस योजना के अंतर्गत स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2014 से नसबंदी करवाने के लिये लाभार्थी और सेवा प्रदाता (और टीम) को श्रम के नुकसान के लिये मुआवज़ा प्रदान करना है।
- राष्ट्रीय परिवार नियोजन क्षतिपूर्ति योजना (NFPIS) : यह योजना वर्ष 2005 में शुरू की गई थी। इस योजना के अंतर्गत ग्राहकों का बंध्याकरण या नसबंदी करवाने के बाद मृत्यु, जटिलताओं तथा विफलता की संभावित घटनाओं हेतु बीमा किया जाता है।