दक्षिण एशियाई पहल | 22 Jul 2021
प्रिलिम्स के लिये:कोविड -19, सार्क देश मेन्स के लिये:चीन के नेतृत्व वाली दक्षिण एशियाई पहल का भारत के लिये महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में बांग्लादेश ने भारत को कोविड-19 टीकों और गरीबी उन्मूलन हेतु चीन के नेतृत्व वाली दक्षिण एशियाई पहल (China-led South Asian Initiative) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया है।
- इसमें चीन-दक्षिण एशियाई देशों के आपातकालीन आपूर्ति रिज़र्व (China-South Asian Countries Emergency Supplies Reserve) और चीन में एक गरीबी उन्मूलन एवं सहकारी विकास केंद्र (Poverty Alleviation and Cooperative Development Centre) की स्थापना शामिल है।
प्रमुख बिंदु:
चीन-दक्षिण एशियाई पहल के बारे में:
- सदस्य: चीन, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका।
- भारत, भूटान और मालदीव अन्य सार्क देश हैं जो इस पहल का हिस्सा नहीं हैं।
- चीन का दृष्टिकोण: चीन के दक्षिण एशियाई देशों के साथ विभिन्न प्रकार के रणनीतिक, समुद्री, राजनीतिक और वैचारिक हित हैं, अत: वह भारत को प्रतिसंतुलित करने के लिये प्रत्येक देश के साथ अपने जुड़ाव को समान स्तर पर बढ़ा रहा है।
- भारत का रुख: लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) की आक्रामकता के कारण उत्पन्न तनाव को देखते हुए भारत का मानना है कि सीमा गतिरोध के समाधान के बिना अन्य द्विपक्षीय संबंध आगे नहीं बढ़ सकते हैं।
संबद्ध मुद्दे: यह पहल चीन की दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका को कम करने की रणनीति प्रतीत होती है। यह निम्नलिखित तर्कों में परिलक्षित होती है:
- माइनस-इंडिया इनिशिएटिव: सभी सार्क (SAARC) सदस्य देशों (भारत, भूटान और मालदीव को छोड़कर) के संयोजन के आधार पर कुछ विशेषज्ञों ने यह निष्कर्ष निकाला कि यह "माइनस इंडिया" (Minus-India) पहल (अर्थात् ऐसी पहल जिसमें भारत शामिल नहीं है) थी।
- दक्षिण एशिया में भारत की भूमिका को कमज़ोर करना: यह पहल चीन के दक्षिण एशिया में पैठ बनाने के प्रयासों में से एक है।
- इस क्षेत्रीय समूह पर चीनी दबाव ऐसे समय में देखा गया है जब भारत सार्क की जगह अपना ध्यान बिम्सटेक (BIMSTEC) पर केंद्रित कर रहा है।
- काउंटरिंग क्वाड: चीन के नेतृत्व वाले ब्लॉक की योजना अमेरिका के नेतृत्व वाले क्वाड (जिसमें भारत एक सक्रिय सदस्य है) का मुकाबला करने के लिये उत्तरी हिमालयी क्वाड (Himalayan Quad) बनाने की हो सकती है।
दक्षिण एशिया के लिये भारत की पहल:
- वर्ष 2021 की शुरुआत में भारत ने अपनी 'पड़ोसी पहले' नीति से प्रेरित और इस क्षेत्र के 'सुरक्षा प्रदाता' के रूप में भूमिका के तहत अपने तत्काल पड़ोसियों (वैक्सीन कूटनीति) को प्राथमिकता के आधार पर कोविड-19 टीके प्रदान करना शुरू कर दिया।
- भारत इनमें से कुछ देशों में स्वास्थ्य कार्यकर्त्ताओं के प्रशिक्षण को प्रशासित करने के लिये बुनियादी ढाँचे की स्थापना में भी मदद कर रहा है।
- हाल ही में भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने औपचारिक रूप से सप्लाई चेन रेज़ीलिएंस इनीशिएटिव शुरू किया है।
- इसका उद्देश्य कोविड-19 महामारी के बीच भारत-प्रशांत क्षेत्र में आपूर्ति शृंखलाओं के फिर से शुरू होने की संभावना के बीच चीन पर निर्भरता को कम करना है।
- हालाँकि भारत वर्षों से श्रीलंका, नेपाल और मालदीव जैसे देशों में चीनी निवेश की गति को कम करने के लिये संघर्ष कर रहा है, जहाँ चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के हिस्से के रूप में बंदरगाहों, सड़कों और बिजली स्टेशनों का निर्माण कर रहा है।
- हाल ही में क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) के रूप में चीन के नेतृत्व में 15 देशों का एक बड़ा व्यापार ब्लॉक अस्तित्व में आया है। इसने भारत के लिये दरवाज़े खुले रखे हैं।
आगे की राह
- सीमा आयोग की स्थापना: भारतीय बाह्य सीमाओं का सीमांकन का कार्य अभी पूर्ण नहीं हुआ है। सीमा विवादों के समाधान से स्थिर क्षेत्रीय एकीकरण का मार्ग प्रशस्त होगा।
- इस प्रकार भारत को सीमा आयोग की स्थापना करके सीमा-विवादों के समाधान के लिये प्रयास करना चाहिये।
- विदेश नीति के लक्ष्यों का सीमांकन : भारत की क्षेत्रीय आर्थिक और विदेश नीति को एकीकृत करना एक बड़ी चुनौती है।
- इसलिये भारत को लघु आर्थिक हितों के लिये पड़ोसियों के साथ द्विपक्षीय संबंधों से समझौते का विरोध करना चाहिये।
- क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में सुधार: क्षेत्रीय कनेक्टिविटी को अधिक मज़बूती के साथ आगे बढ़ाया जाना चाहिये, जबकि सुरक्षा चिंताओं का समाधान लागत प्रभावी, कुशल और विश्वसनीय तकनीकी उपायों के माध्यम से किया जाना चाहिये जो दुनिया के अन्य हिस्सों में उपयोग किये जा रहे हैं।
- गुजराल के सिद्धांत को लागू करना: भारत की पड़ोस नीति गुजराल सिद्धांत पर आधारित होनी चाहिये।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि भारत के स्थिति और मज़बूती को पड़ोसियों के साथ उसके संबंधों की गुणवत्ता से अलग नहीं किया जा सकता है तथा इसके माध्यम से क्षेत्रीय विकास भी हो सकता है।