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बाल कल्याण पुलिस अधिकारियों की होगी नियुक्ति

  • 05 Nov 2022
  • 11 min read

प्रिलिम्स के लिये:

बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (CWPO), राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR), यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012, किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015, बाल यौन शोषण।

मेन्स के लिये:

बाल यौन शोषण से संबंधित मुद्दे और कदम उठाए जाने की ज़रूरत , बच्चों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

गृह मंत्रालय ने राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों से कहा है कि राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) द्वारा जारी परामर्श के अनुसार, विशेषकर पीड़ित या अपराधी बच्चों की समस्या से निपटने के लिये प्रत्येक पुलिस थाने में एक बाल कल्याण पुलिस अधिकारी (CWPO) नियुक्त करें।

NCPCR द्वारा जारी परामर्श:

  • किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के अनुसार, कम-से- कम एक अधिकारी, जो सहायक उप-निरीक्षक के पद से नीचे का न हो, को प्रत्येक पुलिस स्टेशन में CWPO के रूप में नामित किया जाना चाहिये।
  • प्रत्येक ज़िले और शहर में एक विशेष किशोर पुलिस इकाई की स्थापना की जानी चाहिये, जिसका प्रमुख एक अधिकारी होगा जो पुलिस उपाधीक्षक के पद से नीचे का न हो।
    • इस इकाई में बाल कल्याण के क्षेत्र में काम करने का अनुभव रखने वाले CWPO और दो सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल होंगे, जिनमें से एक महिला होगी, जो बच्चों के संबंध में पुलिस के सभी कार्यों का समन्वय करेगी।
  • जनता से संपर्क करने के लिये CWPO के संपर्क विवरण सभी पुलिस थानों में प्रदर्शित किये जाने चाहिये।

भारत में बच्चों के खिलाफ अपराधों की स्थिति:

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) द्वारा प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार, बच्चों के खिलाफ अपराधों की कुल संख्या वर्ष 2020 के 1,28,531 से बढ़कर वर्ष 2021 में 1,49,404 हो गई।
    • जबकि मध्य प्रदेश 19,173 मामलों के साथ देश में सबसे ऊपर है, उत्तर प्रदेश 16,838 मामलों के साथ दूसरे स्थान पर है।
  • देश भर में दर्ज किये गए 1,279 मामलों में कुल 1,402 बच्चों की हत्या की गई।
  • वर्ष 2021 में 1,18,549 बच्चों के अपहरण और व्यपहरण (Abduction) के 1,15,414 मामले दर्ज किये गए।
    • इन मामलों में उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश शीर्ष पर हैं।

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR):

  • NCPCR का गठन मार्च 2007 में ‘कमीशंस फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स’ (Commissions for Protection of Child Rights- CPCR) अधिनियम, 2005 के तहत एक वैधानिक निकाय के रूप में किया गया ।
  • यह महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्यरत है।
  • आयोग का अधिदेश (mandate) यह सुनिश्चित करता है कि सभी कानून, नीतियाँ, कार्यक्रम और प्रशासनिक तंत्र भारत के संविधान में निहित बाल अधिकार के प्रावधानों के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के बाल अधिकारों के अनुरूप भी हों।
  • यह शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 (Right to Education Act, 2009) के तहत एक बच्चे की मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार से संबंधित शिकायतों की जाँच करता है।
  • यह लैंगिक अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 [Protection of Children from Sexual Offences(POCSO) Act, 2012] के कार्यान्वयन की निगरानी करता है।

किशोर न्याय (बालकों की देख-रेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015:

  • यह किशोर अपराध कानून एवं किशोर न्याय (बालकों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 को स्थानांतरित करता है।
  • यह अधिनियम जघन्य अपराधों में संलिप्त 16-18 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों (जुवेनाइल) के ऊपर बालिगों के समान मुकदमा चलाने की अनुमति देता है।
  • इस अधिनियम में गोद लेने की प्रक्रिया को शामिल किया गया है। इस अधिनियम द्वारा हिंदू दत्तक ग्रहण व रख-रखाव अधिनियम (1956) और वार्ड के संरक्षक अधिनियम (1890) को अधिक सार्वभौमिक दत्तक कानून द्वारा स्थानांतरित किया गया है।
  • यह अधिनियम गोद लेने से संबंधित मामलों की देख-रेख के लिये केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority-CARA) नामक वैधानिक निकाय को प्रमुख बनाने के साथ अनाथ बच्चों के पालन-पोषण, देखभाल एवं उन्हें गोद देने की प्रणाली को और बेहतर बनाना सुनिश्चित करता है।

यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012:

  • यह बच्चों के हितों की रक्षा और भलाई के लिये बच्चों को यौन उत्पीड़न, दुर्व्याव्हार एवं अश्लील साहित्य के अपराधों से बचाने के लिये अधिनियमित किया गया था।
  • यह अठारह वर्ष से कम उम्र के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करता है और बच्चे के स्वस्थ शारीरिक, भावनात्मक, बौद्धिक एवं सामाजिक विकास को सुनिश्चित करने के लिये हर स्तर पर बच्चे के सर्वोत्तम हित तथा कल्याण को सर्वोपरि मानता है।
  • यह यौन शोषण के विभिन्न रूपों को परिभाषित करता है, जिसमें सक्रिय और निष्क्रिय यौन शोषण के साथ ही अश्लीलता जैसे मामले शामिल हैं।
  • कुछ परिस्थितियों में यौन शोषण बढ़ जाते हैं, जैसे कि जब शोषण का सामना करने वाला बच्चा मानसिक रूप से बीमार होता है अथवा जब शोषण परिवार के किसी सदस्य, पुलिस अधिकारी, शिक्षक या डॉक्टर जैसे विश्वसनीय लोगों द्वारा किया जाता है।
  • यह जाँच प्रक्रिया के दौरान पुलिस को बाल संरक्षक की भूमिका भी प्रदान करता है।
  • अधिनियम में कहा गया है कि बाल यौन शोषण के मामले का निपटारा अपराध की रिपोर्ट की तारीख से एक वर्ष के भीतर किया जाना चाहिये।
  • बच्चों के खिलाफ यौन अपराधों के लिये मृत्युदंड सहित कठोर सज़ा देने के लिये इसमें अगस्त 2019 में संशोधन किया गया था।

आगे की राह

  • समग्र ढाँचा: यह रिपोर्ट बच्चों के लिये सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण बनाने तथा बच्चों को सुरक्षित रखने की भूमिका हेतु एक साथ काम करने के अलावा दुर्व्यवहार के खिलाफ रोकथाम गतिविधियों को प्राथमिकता देने का आह्वान करती है।
  • बहु हितधारक दृष्टिकोण: कानूनी ढाँचे, नीतियों, राष्ट्रीय रणनीतियों और मानकों के बेहतर कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये माता-पिता, स्कूलों, समुदायों, NGO भागीदारों तथा स्थानीय सरकारों के साथ-साथ पुलिस व वकीलों को शामिल करने हेतु एक व्यापक आउटरीच प्रणाली विकसित किये जाने की आवश्यकता है।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रश्न. बाल अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के संदर्भ में निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2010)

  1. विकास का अधिकार
  2. अभिव्यक्ति का अधिकार
  3. मनोरंजन का अधिकार

उपर्युक्त में से कौन-सा/से बच्चे का/के अधिकार है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने 1946 में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (यूनिसेफ) की स्थापना करके बाल अधिकारों के महत्त्व को घोषित करने की दिशा में अपना पहला कदम उठाया। वर्ष 1948 में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा को अपनाया, जिससे यह बच्चों की सुरक्षा की आवश्यकता को पहचानने वाला पहला संयुक्त राष्ट्र दस्तावेज़ बन गया।
  • बाल अधिकारों पर विशेष रूप से केंद्रित संयुक्त राष्ट्र का पहला दस्तावेज़ बाल अधिकारों की घोषणा था, लेकिन कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ होने के बजाय यह सरकारों के लिये आचरण के नैतिक मार्गदर्शक की तरह था। वर्ष 1989 तक वैश्विक समुदाय द्वारा बाल अधिकारों पर इस तरह के कन्वेंशन को नहीं अपनाया गया, जिससे यह बाल अधिकारों से संबंधित पहला अंतर्राष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ बन गया।
  • 2 सितंबर 1990 को लागू हुये इस कन्वेंशन में जीवन के अधिकार, विकास का अधिकार, खेल और मनोरंजक गतिविधियों में संलग्न होने का अधिकार, सुरक्षा का अधिकार, भागीदारी का अधिकार, अभिव्यक्ति सहित बाल अधिकारों की विभिन्न श्रेणियों को शामिल करते हुए 54 अनुच्छेद शामिल हैं। अत: 1, 2 और 3 सही हैं।

अतः विकल्प (d) सही है।

स्रोत: द हिंदू

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