सामाजिक न्याय
अब भी प्रचलित है बाल विवाह
- 14 Feb 2019
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (United Nations International Children's Emergency Fund-UNICEF) ने एक रिपोर्ट, 'फैक्टशीट चाइल्ड मैरिजेज़ 2019' जारी करते हुए कहा है कि भारत के कई क्षेत्रों में बाल विवाह का प्रचलन अब भी है।
प्रमुख बिंदु
- पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में बाल विवाह की दर में कमी आई है किंतु कुछ राज्यों जैसे-बिहार, बंगाल और राजस्थान में अब भी यह कुप्रथा बदस्तूर जारी है।
- यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, उक्त राज्यों में करीब 40 फीसदी की दर से बाल विवाह का प्रचलन है।
- बाल विवाह की यह कुप्रथा आदिवासी समुदायों और अनुसूचित जातियों सहित कुछ विशेष जातियों के बीच प्रचलित है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि बालिका शिक्षा की दर में सुधार, किशोरियों के कल्याण के लिये सरकार द्वारा किये गए निवेश व कल्याणकारी कार्यक्रम और इस कुप्रथा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से प्रभावी संदेश देने जैसे कदमों के चलते बाल विवाह की दर में कमी देखने को मिली है।
- रिपोर्ट की मानें तो 2005-2006 में जहाँ 47 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी, वहीं 2015-2016 में यह आँकड़ा 27 फीसदी था।
- यूनिसेफ के अनुसार, इस संबंध में सभी राज्यों में एक समान बदलाव दिखाई दे रहा है और बाल विवाह की दर में गिरावट लाए जाने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है किंतु कुछ ज़िलों में बाल विवाह का प्रचलन अब भी उच्च स्तर पर बना हुआ है।
वैश्विक स्थिति
- वर्तमान में दुनिया भर में करीब 65 करोड़ ऐसी लड़कियाँ/महिलाएँ हैं जिनकी शादी 18 वर्ष की उम्र से पहले ही कर दी गई है, जबकि बचपन में लड़कियों की शादी कर दिये जाने के मामले में यह संख्या प्रतिवर्ष करीब 1.2 करोड़ है।
- दक्षिण एशिया में बाल विवाह की दर 40 प्रतिशत (वैश्विक दर की) है, जबकि उप-सहारा अफ्रीका में बाल विवाह की दर 18 प्रतिशत (वैश्विक दर की) है।
- लैटिन अमेरिका और कैरिबियन में बाल विवाह की स्थिति में बदलाव नहीं आया है। बाल विवाह की उच्च दर के मामले में 25 साल पहले जैसे हालात अब भी बरकरार हैं। हालाँकि, रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दुनिया भर में बाल विवाह की प्रथा में कमी आई है।
- पिछले एक दशक में बाल विवाह की दर में 15 प्रतिशत की कमी आई है जिसके तहत लगभग 2.5 करोड़ बाल विवाह होने से रोके गए हैं।
- दक्षिण एशिया में लड़की की शादी बचपन में कर दिए जाने के मामले में एक-तिहाई से भी अधिक की गिरावट आई है, यह एक दशक पहले लगभग 50 प्रतिशत थी जो अब वर्तमान में 30 प्रतिशत है।
बाल विवाह के दुष्प्रभाव
- भारत में बाल विवाह चिंता का विषय है। बाल विवाह किसी बच्चे को अच्छे स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा के अधिकार से वंचित करता है। कम उम्र में विवाह के कारण लड़कियों को हिंसा, दुर्व्यवहार और उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है।
- कम उम्र में विवाह किये जाने का लड़के और लड़कियों दोनों पर शारीरिक, बौद्धिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक प्रभाव पड़ता है, शिक्षा प्राप्ति के अवसर कम हो जाते हैं और व्यक्तित्व का विकास सही ढंग से नही हो पाता है।
बाल विवाह के कारण
- गरीबी
- लड़कियों की शिक्षा का निम्न स्तर
- लड़कियों को आर्थिक बोझ समझना
- सामाजिक प्रथाएँ एवं परंपराएँ
बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006
- बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून सर्वप्रथम सन् 1929 में पारित किया गया था। बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किये गए।
- इस समय विवाह की न्यूनतम आयु बालिकाओं के लिये 18 वर्ष और बालकों के लिये 21 वर्ष निर्धारित की गई है।
आगे की राह
- समाज में जड़ जमा चुकी बाल विवाह की इस कुप्रथा को खत्म करने के लिये विधायी हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
- बाल विवाह को केवल एक ‘सामाजिक बुराई’ के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिये बल्कि इसे बच्चों के ‘मौलिक अधिकारों’ के उल्लंघन का एक गंभीर मामला मानते हुए इसके खिलाफ कठोर कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
- बाल विवाह के खिलाफ जन जागरूकता फैलाने हेतु देश में युद्ध स्तर पर एक मुहिम चलाई जानी चाहिये।
- ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ जैसे कार्यक्रमों को ज़मीनी स्तर पर लागू किया जाना चाहिये।
स्रोत- यूनिसेफ