छत्रपति शिवाजी महाराज का वाघ नख | 10 Oct 2023
प्रिलिम्स के लिये:वाघ नख, छत्रपति शिवाजी, चौथ, सरदेशमुखी, सरंजाम प्रणाली मेन्स के लिये:मराठा साम्राज्य और प्रशासन |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
महाराष्ट्र के सांस्कृतिक कार्य मंत्रालय ने छत्रपति शिवाजी महाराज के अस्त्र "वाघ नख" को राज्य में वापस लाने के लिये लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये हैं।
- इस समझौता ज्ञापन के अनुसार, प्राचीन हथियार को तीन वर्ष की अवधि के लिये ऋणात्मक आधार पर महाराष्ट्र सरकार को सौंपा जाएगा, उक्त अवधि के दौरान इसे राज्य भर के संग्रहालयों में प्रदर्शित किया जाएगा।
वाघ नख:
- 'वाघ नख', जिसका शाब्दिक अर्थ है 'बाघ का पंजा', एक विशिष्ट मध्यकालीन खंजर है जिसका उपयोग भारतीय उपमहाद्वीप में किया जाता है।
- इस घातक हथियार में एक दस्ताने और एक छड़ से जुड़े चार अथवा पाँच घुमावदार ब्लेड होते हैं, जिसे व्यक्तिगत सुरक्षा अथवा गुप्त तरीके से हमला करने के लिये डिज़ाइन किया गया था।
- इसके नुकीले ब्लेड काफी तेज़ थे।
- छत्रपति शिवाजी द्वारा 'वाघ नख' का उपयोग:
- कोंकण क्षेत्र में शिवाजी की मज़बूत पकड़ व अभियानों को कमज़ोर करने के लिये नियुक्त किये गए बीजापुर के सेनापति अफज़ल खान और छत्रपति शिवाजी के बीच मुठभेड़ हुई थी। अफज़ल खान ने शांतिपूर्ण सुलह का सुझाव दिया था किंतु संभावित खतरे की आशंका को देखते हुए शिवाजी पूरी तैयारी के साथ आए थे।
- उन्होंने 'वाघ नख' को छुपाए रखा था और अपनी पोशाक के नीचे चेनमेल (छोटे धातु के छल्ले से बना कवच) पहन रखा था। आपसी संघर्ष में शिवाजी ने अफज़ल खान पर 'वाघ नख' से हमला किया जिसके परिणामस्वरूप खान की मृत्यु हो गई, अंततः शिवाजी की जीत हुई।
- कोंकण क्षेत्र में शिवाजी की मज़बूत पकड़ व अभियानों को कमज़ोर करने के लिये नियुक्त किये गए बीजापुर के सेनापति अफज़ल खान और छत्रपति शिवाजी के बीच मुठभेड़ हुई थी। अफज़ल खान ने शांतिपूर्ण सुलह का सुझाव दिया था किंतु संभावित खतरे की आशंका को देखते हुए शिवाजी पूरी तैयारी के साथ आए थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज से संबंधित प्रमुख बिंदु:
- जन्म:
- उनका जन्म 19 फरवरी, 1630 को महाराष्ट्र के पुणे ज़िले के शिवनेरी किले में हुआ था, वह बीजापुर सल्तनत के तहत पुणे और सुपे की जागीरदारी रखने वाले मराठा सेनापति शाहजी भोंसले तथा एक धार्मिक महिला जीजाबाई के पुत्र थे, जिनका शिवाजी के जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा।
- उपाधियाँ:
- उनके द्वारा छत्रपति, शाककार्ता, क्षत्रिय कुलवंत तथा हैंदव धर्मोधारक की उपाधियाँ धारण की गई।
- शिवाजी के अधीन प्रशासन:
- केंद्रीय प्रशासन:
- उन्होंने आठ मंत्रियों की एक परिषद (अष्टप्रधान) के साथ एक केंद्रीकृत प्रशासन की स्थापना की, जो प्रत्यक्ष रूप से उनके प्रति ज़िम्मेदार थे और राज्य के विभिन्न मामलों पर उन्हें सलाह देते थे।
- पेशवा, जिसे मुख्य प्रधान के रूप में भी जाना जाता है, मूल रूप से राजा शिवाजी की सलाहकार परिषद का नेतृत्व करता था।
- प्रांतीय प्रशासन:
- शिवाजी ने अपने राज्य को चार प्रांतों में विभाजित किया। प्रत्येक प्रांत को ज़िलों और ग्राम में विभाजित किया गया था। प्रशासन की मूल इकाई ग्राम थी तथा यह ग्राम पंचायत की मदद से देशपांडे द्वारा शासित था।
- केंद्र की भांति ,आठ मंत्रियों की एक समिति अथवा परिषद होती थी। जिसमें सर-ए- 'कारकुन' अथवा 'प्रांतपति' (प्रांत का प्रमुख) होता था।
- राजस्व प्रशासन:
- शिवाजी ने जागीरदारी प्रणाली को समाप्त कर दिया और इसे रैयतवारी प्रणाली में बदल दिया तथा वंशानुगत राजस्व अधिकारियों की स्थिति में परिवर्तन किया, जिन्हें देशमुख, देशपांडे, पाटिल एवं कुलकर्णी के नाम से जाना जाता था।
- शिवाजी उन मीरासदारों (Mirasdar) का कड़ाई से पर्यवेक्षण करते थे जिनके पास भूमि पर वंशानुगत अधिकार था।
- राजस्व प्रणाली मलिक अंबर की काठी प्रणाली (Kathi System) से प्रेरित थी, जिसमें भूमि के प्रत्येक टुकड़े को रॉड अथवा काठी द्वारा मापा जाता था।
- चौथ और सरदेशमुखी आय के अन्य स्रोत थे।
- चौथ कुल राजस्व का 1/4 भाग था जिसे गैर-मराठा क्षेत्रों से मराठा आक्रमण से बचने के बदले वसूला जाता था।
- यह आय का 10 प्रतिशत होता था जो अतिरिक्त कर के रूप में था।
- केंद्रीय प्रशासन:
- सैन्य प्रशासन:
- शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना का गठन किया। सामान्य सैनिकों को नकद में भुगतान किया जाता था, लेकिन प्रमुख एवं सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजाम) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
- उनकी सेना में इन्फैंट्री सेना (मावली पैदल सैनिक), घुड़सवार सेना (घुड़सवार और उपकरण संचालक) तथा एक नौसेना शामिल थी।
- मुख्य भूमिकाओं में सेना के प्रभारी सर-ए-नौबत (सेनापति), किलों की देख-रेख करने वाले किलेदार, पैदल सेना इकाइयों का नेतृत्व करने वाले नायक, पाँच नायकों के समूहों का नेतृत्व करने वाले हवलदार तथा पाँच नायकों की देखरेख करने वाले जुमलादार शामिल थे।
- शिवाजी ने एक अनुशासित और कुशल सेना का गठन किया। सामान्य सैनिकों को नकद में भुगतान किया जाता था, लेकिन प्रमुख एवं सैन्य कमांडर को जागीर अनुदान (सरंजाम) के माध्यम से भुगतान किया जाता था।
- मृत्यु:
- शिवाजी का निधन वर्ष 1680 में रायगढ़ में हुआ तथा उनका अंतिम संस्कार रायगढ़ किले में किया गया। उनके साहस, युद्ध रणनीति और प्रशासनिक कौशल की स्मृति एवं सम्मान में प्रत्येक वर्ष 19 फरवरी को शिवाजी महाराज जयंती मनाई जाती है।