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शासन व्यवस्था

डिजिटल कंपनियों पर नियंत्रण की चुनौतियाँ

  • 24 Mar 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण, डेटा संरक्षण बोर्ड, अनुच्छेद 19(2)

मेन्स के लिये:

भारत में प्रतिस्पर्द्धा कानून, डिजिटल बाज़ारों में नियामक चुनौतियाँ, प्रतिस्पर्द्धा नीति पर उभरती प्रौद्योगिकियों का प्रभाव

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग (CCI) ने मेटा पर 213 करोड़ रुपए का ज़ुर्माना लगाया और विज्ञापन उद्देश्यों के लिये व्हाट्सएप पर एकत्र किये गए उपयोगकर्त्ता डेटा को फेसबुक और इंस्टाग्राम जैसी अन्य मेटा कंपनियों के साथ साझा करने पर पाँच वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया।

  • हालाँकि, राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) ने इस प्रतिबंध और ज़ुर्माने पर रोक लगा दी। 
  • यह मामला बिग-टेक कंपनियों को विनियमित करने की चुनौतियों और भारत में एक दूरदर्शी प्रतिस्पर्द्धा कानून ढाँचे की आवश्यकता को रेखांकित करता है।

मेटा केस का अवलोकन

  • CCI ने पाया कि वॉट्सऐप की 2021 की गोपनीयता नीति ने मेटा के साथ डेटा साझा करने के लिये उपयोगकर्त्ता की सहमति को मज़बूर किया, जिससे OTT मैसेजिंग और डिजिटल विज्ञापनों में इसका प्रभुत्त्व बढ़ गया। मेटा ने लक्षित विज्ञापन के लिये वॉट्सऐप के विशाल उपयोगकर्त्ता आधार का इस्तेमाल किया, जिसे CCI ने अनुचित व्यापार व्यवहार करार दिया, जिससे गोपनीयता को नुकसान पहुँचा और प्रतिस्पर्द्धा अवरुद्ध हुई और डेटा साझाकरण पर ज़ुर्माना और 5 वर्ष का प्रतिबंध लगाया गया।
  • NCLAT ने कानूनी समीक्षा की आवश्यकता और CCI के निष्कर्षों की गहन जाँच की आवश्यकता का हवाला देते हुए मेटा पर प्रतिबंध और ज़ुर्माना स्थगित कर दिया। सशर्त राहत के रूप में, NCLAT ने कानूनी कार्यवाही जारी रहने तक मेटा को ज़ुर्माने का 50% जमा करने का निर्देश दिया।

बिग-टेक कंपनियों के विनियमन में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • डिजिटल बाज़ारों में विनियामक अंतराल: भारत के प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 में डेटा-केंद्रित प्रभुत्त्व (डेटा एकाधिकार) से निपटने के लिये स्पष्ट प्रावधानों का अभाव है। 
    • यह कानून पारंपरिक बाज़ारों के लिये बनाया गया था, जो मूल्य और उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि डिजिटल एकाधिकार नेटवर्क प्रभाव, पारिस्थितिकी तंत्र एकीकरण और डेटा एकत्रीकरण से लाभार्जन करते हैं।
  • विखंडित शासन व्यवस्था: CCI और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) जैसी नियामक एजेंसियाँ ​​पर्याप्त अंतर-एजेंसी समन्वय के बिना काम करती हैं। 
  • कानूनी अस्पष्टता: डिजिटल प्लेटफॉर्म जाँच से बचने के लिये अस्पष्ट कानूनों का लाभ उठाते हैं। भारत के सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) द्वारा उत्पन्न सामग्री, एल्गोरिदम संबंधी पूर्वाग्रह और डेटा प्रवाह पर स्पष्टता का अभाव है , जिससे नियामक अस्पष्टता और अप्रभावी कार्यान्वयन के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं।
    • इसका एक प्रमुख उदाहरण एक्स कॉर्प (जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था) द्वारा भारत सरकार द्वारा ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने के लिये  IT अधिनियम की धारा 79(3)(b) के उपयोग को चुनौती देना है।
      • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015) में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि कंटेंट को IT अधिनियम की धारा 69A के माध्यम से केवल तभी अवरुद्ध किया जा सकता है जब अनुच्छेद 19 (2) के तहत इसे "आवश्यक" समझा जाए , यह भी कहा कि धारा 79 (3) (b) एक्स जैसे मध्यस्थों को "सेफ हार्बर" संरक्षण प्रदान करती है, जो उन्हें उपयोगकर्त्ता सामग्री के लिये उत्तरदायित्व से बचाती है लेकिन न्यायालय या सरकार द्वारा आदेश दिये जाने पर हटाने की आवश्यकता होती है।
      • हालाँकि, MeitY का "सहयोग" पोर्टल (वर्ष 2024) अधिकारियों को न्यायालय या केंद्रीय अनुमोदन के बिना धारा 79 के तहत सामग्री को ब्लॉक करने की अनुमति देता है, जिसके बारे में एक्स कॉर्प (X Corp) का दावा है कि यह कानून का उल्लंघन करता है।
  • बिग-टेक कंपनियों की वैश्विक प्रकृति: ये कंपनियाँ सीमाओं के पार काम करती हैं, जबकि राष्ट्रीय कानून क्षेत्रीय बने रहते हैं, जिससे प्रवर्तन और अनुपालन सीमित हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिये, मेटा को अमेरिका, यूरोपीय संघ और ऑस्ट्रेलिया में तारीख संबंधी जाँच का सामना करना पड़ रहा है , जिससे एक अंतर्राष्ट्रीय चुनौती का पता चलता है।
  • AI और उभरती हुई प्रौद्योगिकियाँ: AI-जनरेटेड सामग्री के लिये कोई स्पष्ट जवाबदेही नहीं है, जैसा कि ग्रोक 3 चैटबॉट ( xAI द्वारा विकसित जनरेटिव AI चैटबॉट), एल्गोरिदम संबंधी निर्णयों या डीपफेक वितरण द्वारा विवादास्पद प्रतिक्रियाओं में देखा गया है। 
    • वर्तमान विधि व्यवस्था में स्वायत्त सामग्री मॉडरेशन अथवा स्वचालित डेटा प्रोफाइलिंग विषयों संबंधी प्रावधान नहीं किये गए हैं।
  • प्लेटफॉर्म पावर और गेटकीपिंग: गूगल जैसी तकनीकी क्षेत्र की बड़ी कंपनियाँ ऐप स्टोर, विज्ञापन और संचार प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करती हैं, जिससे उनके उत्पादों को अनुचित लाभ मिलता है और प्रतिस्पर्द्धा सीमित हो जाती है।

प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ बिग-टेक कंपनियों का किस प्रकार विनियमन कर रही हैं?

  • अमेरिका: अमेरिका ने बिग-टेक के प्रभुत्व पर अंकुश लगाने के लिये प्रतिस्पर्द्धा सुधार की आवश्यकता पर बल दिया।
    • मेटा को इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप के अधिग्रहण को लेकर मुकदमों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि गूगल को खोज और विज्ञापन में एकाधिकारवादी प्रथाओं के कारण शर्मन अधिनियम (2024) का उल्लंघन करने का दोषी पाया गया।
  • यूरोपीय संघ: डिजिटल मार्केट एक्ट (DMA) के अंतर्गत प्रतिस्पर्द्धा-रोधी व्यवहार की रोकथाम किये जाने हेतु गूगल और एप्पल जैसे "गेटकीपर" (व्यक्ति, समूह अथवा प्रणाली जिसका किसी साधन के अभिगम पर नियंत्रण होता है) पर सख्त नियम कार्यान्वित किया गया है।
    • सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (GDPR) में डेटा गोपनीयता संबंधी कठोर नियमों का कार्यान्वन किया गया है तथा अननुपालन पर भारी जुर्माने का प्रावधान किया गया है।

बिग-टेक कंपनियों को विनियमित करने के लिये कौन-से सुधार आवश्यक हैं?

  • डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम: डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा विधि समिति (CDCL), 2023 में बिग टेक कंपनियों को विनियमित करने और CCI का सुदृढ़ीकरण करने के लिये एक डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम का प्रस्ताव किया गया, जिसमें डेटा प्रभुत्व, नेटवर्क प्रभाव और प्लेटफॉर्म लॉक-इन जैसे विषय शामिल किये गए थे।
  • त्वरित विवाद समाधान: निर्धारित समयसीमा के भीतर मामलों का निराकरण करने के उद्देश्य से CCI के भीतर एक डिजिटल मार्केट और डेटा यूनिट (DMDU) की स्थापना किया जाना आवश्यक है।
  • निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा: सहमति प्रोटोकॉल द्वारा समर्थित एक केंद्रीय डेटा-साझाकरण कोष स्थापित किया जाना चाहिये, जो सभी तकनीकी फर्मों के लिये सुलभ हो। 
    • इससे गुमनाम डेटा तक निष्पक्ष पहुँच सुनिश्चित होगी, जिससे लघु कंपनियों को प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने में मदद मिलेगी।
  • बहुविषयक प्रवर्तन: निजता और प्रतिस्पर्द्धा संबंधी विषयों को एकीकृत करते हुए यूरोपीय संघ के डिजिटल बाजार अधिनियम (DMA) के समान एकीकृत ढाँचे का विकास किया जाना चाहिये।
  • पूर्व-विनियमन: वित्त संबंधी स्थायी समिति (2022-23) ने बाज़ार में प्रभुत्व को रोकने के लिये प्रतिस्पर्द्धी व्यवहार के मूल्यांकन को यथार्थ (एकाधिकार होने के बाद) से प्रत्याशित (एकाधिकार होने से पूर्व) में बदलने की सिफारिश की।
    • CDCL, 2023 में सर्च इंजन, सोशल नेटवर्क और वेब ब्राउज़र जैसी प्रमुख डिजिटल सेवाएँ प्रदान करने वाले प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण डिजिटल उद्यमों (SSDE) के पूर्व-नियमन की सिफारिश की गई, जो बाज़ार में संकेंद्रण के लिये प्रवण हैं।
    • बाज़ार में महत्त्वपूर्ण प्रभाव वाली बड़ी टेक फर्मों की पहचान करने और उनका विनियमन किये जाने के उद्देश्य से डिजिटल प्रतिस्पर्द्धा विधेयक, 2024 के अनुसार SSDE का वर्गीकरण किया जाना आवश्यक है।
  • एल्गोरिदम में पारदर्शिता: एल्गोरिदम संबंधी निर्णय लेने, AI पूर्वाग्रहों और प्लेटफॉर्म नीतियों का प्रकटीकरण अनिवार्य करने की आवश्यकता है।
    • डेटा साइलो का कार्यान्वन करने, उपयोगकर्त्ता की स्पष्ट सहमति के बिना क्रॉस-प्लेटफॉर्म डेटा साझाकरण को प्रतिबंधित करने, और डिजिटल क्षेत्र को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये लिये अंतरप्राचलनीयता अधिदेश लागू किये जाने की आवश्यकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय ढाँचा: प्रौद्योगिकी कंपनियों की अंतर्राष्ट्रीय उपस्थिति को देखते हुए, भारत को कैलिफोर्निया उपभोक्ता निजता अधिनियम (CCPA) जैसा एक सुदृढ़ डेटा संरक्षण ढाँचा विकसित करने की आवश्यकता है। 
    • CCPA कैलिफोर्नियावासियों से डेटा एकत्र करने वाले व्यवसायों पर कार्यान्वित होता है, जिसमें विदेशी फर्म (जिनके कैलिफोर्निया में ग्राहक हैं) शामिल हैं, और उपयोगकर्त्ताओं को व्यक्तिगत डेटा प्राप्त करने, उसे नियंत्रित करने तथा हटाने, उसकी बिक्री को प्रतिबंधित करने एवं डेटा प्रोसेसिंग में पारदर्शिता की मांग करने के अधिकार प्रदान करता है। बच्चों का डेटा बेचने के लिये माता-पिता की सहमति आवश्यक है।
  • उपभोक्ता डेटा संरक्षण: प्रमुख फर्मों द्वारा उपयोगकर्त्ता जानकारी के दुरुपयोग को रोकने के लिये DPDP अधिनियम 2023 के तहत सख्त डेटा गोपनीयता सुनिश्चित की जानी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. डिजिटल बाज़ार के प्रभुत्व में वृद्धि में नेटवर्क प्रभाव और डेटा एकाधिकार की भूमिका पर चर्चा कीजिये। इसके संबंध में विनियामकों क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिये? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. भारतीय विधान के प्रावधानों के अंतर्गत उपभोक्ताओं के अधिकारों/ विशेषाधिकारों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2012) 

  1. उपभोक्ताओं को खाद्य की जाँच करने के लिये नमूने लेने का अधिकार है।  
  2. उपभोक्ता यदि उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज करता है तो उसे इसके लिये कोई फीस नहीं देनी होगी।  
  3. उपभोक्ता की मृत्यु हो जाने पर उसका वैधानिक उत्तराधिकारी उसकी ओर से उपभोक्ता मंच में शिकायत दर्ज कर सकता है। 

निम्नलिखित कूटों के आधार पर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 
(b) केवल 2 और 3 
(c) केवल 1 और 3 
(d) 1, 2 और 3 

उत्तर: (c)

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