शासन व्यवस्था
कावेरी नदी जल विवाद
- 29 Sep 2021
- 8 min read
प्रिलिम्स के लिये:मेकेदातु जलाशय परियोजना, कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण मेन्स के लिये:अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद और उनके समाधान हेतु उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ (CWMA) ने कर्नाटक को तमिलनाडु के लिये पानी की शेष मात्रा तत्काल जारी करने का निर्देश दिया है।
- हालाँकि तमिलनाडु, केरल और पुद्दुचेरी के विरोध के बाद ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ ने ‘मेकेदातु जलाशय परियोजना’पर चर्चा नहीं की।
प्रमुख बिंदु
- कावेरी जल विवाद:
- परिचय:
- इसमें 3 राज्य और एक केंद्रशासित प्रदेश (तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पुद्दुचेरी) शामिल हैं।
- विवाद की उत्पत्ति तकरीबन 150 वर्ष पूर्व वर्ष 1892 और वर्ष 1924 के बीच तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी एवं मैसूर के बीच मध्यस्थता के दो समझौतों के साथ हुई थी।
- इन समझौतों में यह सिद्धांत निहित था कि ऊपरी तटवर्ती राज्य को किसी भी निर्माण (जैसे कावेरी नदी पर जलाशय) गतिविधि के लिये निचले तटवर्ती राज्य की सहमति प्राप्त करनी होगी।
- हालिया घटनाक्रम
- वर्ष 1974 के बाद से कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति लिये बिना अपने चार नए जलाशयों में पानी को मोड़ना शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप विवाद उत्पन्न हो गया है।
- इस विवाद को समाप्त करने हेतु वर्ष 1990 में ‘कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण’ की स्थापना की गई, जिसने 17 वर्ष बाद यह निर्णय दिया कि कावेरी नदी के जल को सामान्य वर्षा की स्थिति में 4 तटवर्ती राज्यों के बीच किस प्रकार साझा किया जाना चाहिये।
- ‘कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण’ का गठन केंद्र सरकार द्वारा अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए किया गया था।
- न्यायाधिकरण के निर्णय के मुताबिक, कम वर्षा की स्थिति में आनुपातिक आधार का उपयोग किया जाएगा। सरकार ने इस निर्णय के छः वर्ष बाद वर्ष 2013 में आदेश अधिसूचित किया।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम निर्णय वर्ष 2018 में आया जिसमें न्यायालय ने कावेरी नदी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया और CWDT द्वारा जल-बँँटवारे हेतु अंतिम रूप से की गई व्यवस्था को बरकरार रखा तथा कर्नाटक से तमिलनाडु को किये जाने वाले जल के आवंटन को भी कम कर दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, कर्नाटक को 284.75 हज़ार मिलियन क्यूबिक फीट (tmcft), तमिलनाडु को 404.25 tmcft, केरल को 30 tmcft और पुद्दुचेरी को 7 tmcft जल प्राप्त होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र को कावेरी प्रबंधन योजना (Cauvery Management Scheme) को अधिसूचित करने का भी निर्देश दिया। केंद्र सरकार ने जून 2018 में 'कावेरी जल प्रबंधन योजना' अधिसूचित की, जिसके तहत केंद्र सरकार ने निर्णय को प्रभावी करने के लिये 'कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण' (Cauvery Water Management Authority- CWMA) और 'कावेरी जल विनियमन समिति' (Cauvery Water Regulation Committee) का गठन किया।
इस आदेश को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, क्योंकि इसमें कर्नाटक को तत्काल तमिलनाडु के लिये 12000 क्यूसेक जल छोड़ने का निर्देश दिया गया था जिसके कारण राज्य में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए थे।
- परिचय:
- मेकेदातु जलाशय परियोजना:
- इसका उद्देश्य बंगलूरू शहर के लिये पीने के पानी का भंडारण और आपूर्ति सुनिश्चित करना है। परियोजना के के तहत लगभग 400 मेगावाट (MW) बिजली उत्पन्न करने का भी प्रस्ताव है।
- वर्ष 2018 में तमिलनाडु राज्य द्वारा परियोजना के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court- SC) में अपील की गई, हालांँकि कर्नाटक द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया था कि यह परियोजना तमिलनाडु में जल के प्रवाह को प्रभावित नहीं करेगी।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुमोदन प्राप्त होने से पूर्व तक तमिलनाडु ऊपरी तट (Upper Riparian) पर प्रस्तावित किसी भी परियोजना के निर्माण का विरोध करता रहा है।
कावेरी नदी
- तमिल भाषा में इसे 'पोन्नी' के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा इस नदी को दक्षिण की गंगा (Ganga of the South) भी कहा जाता है और यह दक्षिण भारत की चौथी सबसे बड़ी नदी है।
- यह दक्षिण भारत की एक पवित्र नदी है। इसका उद्गम दक्षिण-पश्चिमी कर्नाटक राज्य के पश्चिमी घाट में स्थित ब्रह्मगिरी पहाड़ी से होता है, यह कर्नाटक एवं तमिलनाडु राज्यों से होती हुई दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती है और एक शृंखला बनाती हुई पूर्वी घाटों में उतरती है इसके बाद पांडिचेरी से होती हुई बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- अर्कवती, हेमवती, लक्ष्मणतीर्थ, शिमसा, काबिनी एवं हरंगी आदि इसकी कुछ सहायक नदियाँ हैं।
आगे की राह:
- राज्यों को क्षेत्रीय दृष्टिकोण को त्यागने की ज़रूरत है क्योंकि समस्या का समाधान सहयोग और समन्वय में निहित है, न कि संघर्ष में। स्थायी एवं पारिस्थितिक रूप से व्यवहार्य समाधान के लिये बेसिन स्तर पर योजना तैयार की जानी चाहिये।
- दीर्घावधि में वनीकरण, रिवर लिंकिंग आदि के माध्यम से नदी का पुनर्भरण किये जाने और जल के दक्षतापूर्ण उपयोग (जैसे- सूक्ष्म सिंचाई आदि) को बढ़ावा देने के साथ-साथ जल के विवेकपूर्ण उपयोग हेतु लोगों को जागरूक करने तथा जल स्मार्ट रणनीतियों को अपनाए जाने की आवश्यकता है।