भारतीय इतिहास
सी. राजगोपालाचारी
- 10 Dec 2021
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प्रिलिम्स के लियेसी. राजगोपालाचारी, महात्मा गांधी, असहयोग आंदोलन मेन्स के लियेभारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सी. राजगोपालाचारी की भूमिका |
प्रमुख बिंदु
हाल ही में ‘सी. राजगोपालाचारी’ की 143वीं जयंती मनाई गई।
- उन्हें स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान तथा प्रशासनिक एवं बौद्धिक कौशल के लिये याद किया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- चक्रवर्ती राजगोपालाचारी
- राजाजी के नाम से मशहूर चक्रवर्ती राजगोपालाचारी का जन्म 10 दिसंबर, 1878 को हुआ था।
- उन्होंने मद्रास (अब चेन्नई) में प्रेसीडेंसी कॉलेज से कानून की पढ़ाई की और वर्ष 1900 में ‘सेलम’ में अपनी प्रैक्टिस शुरू की।
- वर्ष 1916 में ‘उन्होंने तमिल साइंटिफिक टर्म्स सोसाइटी’ का गठन किया, यह एक ऐसा संगठन जिसने रसायन विज्ञान, भौतिकी, गणित, खगोल विज्ञान और जीव विज्ञान के वैज्ञानिक शब्दों का सरल तमिल शब्दों में अनुवाद किया।
- वह वर्ष 1917 में सलेम की नगर पालिका के अध्यक्ष बने और वहाँ दो वर्ष तक सेवा की।
- वर्ष 1955 में उन्हें भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
- 25 दिसंबर, 1972 को उनका निधन हो गया।
राजनीतिक जीवन
- स्वतंत्रता से पूर्व:
- वह भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस में शामिल हुए और वहाँ उन्होंने कानूनी सलाहकार के रूप में काम किया।
- वर्ष 1917 में उन्होंने देशद्रोह के आरोपों के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्त्ता- पी. वरदराजुलु नायडू का बचाव किया।
- उन्हें वर्ष 1937 में मद्रास प्रेसीडेंसी के पहले प्रधानमंत्री के रूप में चुना गया था।
- वर्ष 1939 में राजगोपालाचारी ने अस्पृश्यता और जातिगत पूर्वाग्रह को खत्म करने के लिये एक कदम उठाया और मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण और क्षतिपूर्ति अधिनियम जारी किया।
- मद्रास मंदिर प्रवेश प्राधिकरण के बाद दलितों को मंदिरों के अंदर प्रवेश करने की अनुमति दी गई।
- विभाजन के समय उन्हें पश्चिम बंगाल के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया गया था।
- वर्ष 1947 में लॉर्ड माउंटबेटन की अनुपस्थिति के दौरान अंतिम ब्रिटिश वायसराय और स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल राजगोपालाचारी को अस्थायी रूप से पद संभालने के लिये चुना गया था।
- इसलिये वह भारत के अंतिम गवर्नर जनरल थे।
- स्वतंत्रता के पश्चात:
- राजगोपालाचारी ने अप्रैल 1952 में मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार संभाला।
- मद्रास के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने शिक्षा प्रणाली में सुधार और समाज में बदलाव लाने में सक्रिय रूप से भाग लिया।
- उन्होंने तमिल स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य भाषा भी बनाया।
- उनके इस कदम से उनके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुआ, जिसके बाद राजगोपालाचारी ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
- वह सामाजिक रूढ़िवादी थे लेकिन मुक्त बाज़ार अर्थव्यवस्था का समर्थन करते थे।
- वह वर्ण व्यवस्था को समाज में पुनः लाना चाहते थे।
- वह समाज के लिये धर्म के महत्त्व में विश्वास करते थे।
- वर्ष 1950 में सरदार पटेल की मृत्यु के बाद राजगोपालाचारी को गृह मंत्री बनाया गया था।
- वर्ष 1959 में, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और स्वतंत्र पार्टी की स्थापना की।
- स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:
- असहयोग आंदोलन:वह महात्मा गांधी से पहली बार वर्ष 1919 में मद्रास (अब चेन्नई) में मिले और गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
- वर्ष 1920 में उन्हें वेल्लोर में दो साल की जेल भी हुई थी।
- जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने गांधी के हिंदू-मुस्लिम सद्भाव और अस्पृश्यता के उन्मूलन के सिद्धांतों को बढ़ावा देने के लिये अपना आश्रम खोला।
- वे खादी के भी समर्थक थे।
- वायकोम सत्याग्रह: वे अस्पृश्यता के खिलाफ वायकोम सत्याग्रह आंदोलन (Vaikom Satyagraha Movement) में भी शामिल थे।
- दांडी मार्च: वर्ष 1930 में जब गांधी जी ने नमक कानून तोड़ने के लिये दांडी मार्च का नेतृत्व किया, तो राजगोपालाचारी ने मद्रास प्रेसीडेंसी दांडी मार्च के समर्थन में वेदारण्यम में एक मार्च निकाला।
- वह गांधी के अखबार यंग इंडिया के संपादक भी बने।
- भारत छोड़ो आंदोलन: भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, राजगोपालाचारी ने गांधी का विरोध किया।
- उनका विचार था कि अंग्रेज अंततः देश छोड़ने ही वाले थे तो एक और सत्याग्रह शुरू करना एक अच्छा निर्णय नहीं था।
- असहयोग आंदोलन:वह महात्मा गांधी से पहली बार वर्ष 1919 में मद्रास (अब चेन्नई) में मिले और गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया।
- साहित्यिक योगदान:
- इस पुस्तक ने 1958 में तमिल भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता।
- उन्होंने रामायण का तमिल अनुवाद लिखा, जिसे बाद में चक्रवर्ती थिरुमगन के रूप में प्रकाशित किया गया।
- इस पुस्तक ने 1958 में तमिल भाषा में साहित्य अकादमी पुरस्कार जीता।