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भारतीय विरासत और संस्कृति

भीतरगाँव का ईंटों से निर्मित मंदिर

  • 12 Dec 2018
  • 4 min read

संदर्भ


कानपुर (उत्तर प्रदेश) के भीतरगाँव में स्थित मंदिर ईंट से निर्मित सबसे पुराने मंदिरों में से एक है।

  • इसका निर्माण गुप्त साम्राज्य के दौरान 5वीं शताब्दी A.D. में किया गया था।
  • इसे सबसे प्राचीन हिन्दू पवित्र स्थान माना जाता है जिसमें ऊँची छत और शिखर है। इसने उत्तर भारत में मंदिर वास्तुकला की वृहद् नागर शैली का मार्ग प्रशस्त किया।

मंदिर वास्तुकला का संक्षिप्त इतिहास

  • वैदिक काल के दौरान मंदिर वास्तुकला के अस्तित्व का कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
  • कई पीढ़ियों तक पूजा-पाठ की पद्धतियों के अनुसरण ने मंदिर संरचनाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त किया।
  • तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व से रॉक-कट वास्तुकला का विकास शुरू हुआ। यद्यपि प्राचीनतम रॉक-कट वस्तुकला का संबंध मौर्य वंश से है लेकिन उत्तर मौर्य काल में निर्मित अजंता की गुफाएँ सबसे पुराने रॉक-कट मंदिरों के उदाहरण हैं।
  • जैसे-जैसे मानव ने प्रगति की और नई तकनीकों को सीखा, रॉक-कट मंदिरों की बजाय पत्थर निर्मित मंदिरों के निर्माण को बढ़ावा दिया, चूँकि पत्थर हर जगह आसानी से उपलब्ध नहीं थे, इसलिये उसने ईंट से मंदिरों के निर्माण का रास्ता प्रशस्त किया।
  • गंगा के मैदानी इलाकों में कई ईंट निर्मित संरचनाएँ अस्तित्व में आईं क्योंकि इस क्षेत्र की मिटटी कछारी (Alluvial) है तथा पत्थरों और चट्टानों की यहाँ कमी है।
  • समय के बढ़ने के साथ-साथ एक तरफ जहाँ चट्टानों और पत्थरों से निर्मित मंदिर सुरक्षित खड़े रहे, वहीँ ईंट निर्मित मंदिर स्वयं को बचाने में असफल रहे। लेकिन भीतरगाँव का ईंट निर्मित मंदिर बदलते समय के साथ भी सुरक्षित खड़ा है, मंदिर की यही विशेषता इसे खास बनाती है।

भीतरगाँव मंदिर की वास्तुकला

Bhitar Gaon Temple

  • मंदिर का प्रवेश द्वारा पहली बार अर्द्ध-वृत्ताकार द्वारों के उपयोग को दर्शाता है।
  • अलेक्जेंडर कनिंघम (भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के प्रथम महानिदेशक, 1871) ने इसे 'हिंदू आर्क' (Hindu Arc) कहा जो कि भारत-विशिष्ट था।
  • मंदिर के आंतरिक भाग (गर्भ गृह) के ऊपर एक लंबी पिरामिडनुमा चोटी (शिखर) है। यह शिखर भारत के नागर मंदिर वास्तुकला की मानक विशेषता बन गया।
  • मंदिर की दीवारें शिव, पार्वती, गणेश, विष्णु आदि देवी- देवताओं की टेराकोटा मूर्तियों से सजाई गई हैं।
  • कनिंघम के अनुसार, मंदिर के पीछे वाराह अवतार की मूर्ति की वज़ह से यह अनुमान लगाया जाता है कि शायद यह एक विष्णु मंदिर था।

नागर, द्रविड़ तथा वेसर मंदिर


अलग-अलग क्षेत्रों के मंदिर, वास्तुकला के मामले में एक-दूसरे से थोड़े भिन्न हैं- जैसे ओडिशा, कश्मीर तथा बंगाल के मंदिरों की अलग-अलग विशिष्टता है लेकिन, आमतौर पर इन्हें मंदिर वास्तुकला की तीन श्रेणियों- नागर (उत्तर), द्रविड़ (दक्षिण) तथा वेसर शैली में वर्गीकृत किया जा सकता है।

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