राष्ट्रीय जलमार्ग 2 (ब्रह्मपुत्र) का राष्ट्रीय जलमार्ग 1 (गंगा) से जुड़ाव | 08 Mar 2022

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्देशीय जलमार्ग, भारत-बांग्लादेश (सोनमुरा-दाउदकंडी), भारत-म्याँमार प्रोटोकॉल (कलादान)।

मेन्स के लिये:

अंतर्देशीय जलमार्ग नेटवर्क के लाभ और चुनौतियाँ, अंतर्देशीय जलमार्ग हेतु शुरू की गई पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय बंदरगाह, नौवहन और जलमार्ग मंत्री ने गुवाहाटी (असम) में बांग्लादेश के रास्ते पटना से पांडु बंदरगाह तक खाद्यान्न की पहली खेप के परिवहन का स्वागत किया।

  • असम और पूर्वोत्तर भारत के लिये अंतर्देशीय जल परिवहन के एक नए युग की शुरुआत करते हुए भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI), एनडब्ल्यू-1 और एनडब्ल्यू-2 के बीच एक निर्धारित अनुसूचित नौकायन की योजना बना रहा है।
  • अंतर्देशीय पोत विधेयक, 2021 को अंतर्देशीय जहाज़ो की सुरक्षा और पंजीकरण को विनियमित करने के लिये भी अनुमोदित किया गया था।

महत्व:

  • इंडो बांग्लादेश प्रोटोकॉल रूट (आईबीआरपी) में जहाज़ो के माध्यम से कार्गो की आवाजाही की शुरुआत पूर्वोत्तर के पूरे क्षेत्र के लिये आर्थिक समृद्धि के एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है।
  • यह अंतर्देशीय जल परिवहन के विकास और वृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • यह व्यापार समुदाय को एक व्यवहार्य, आर्थिक और पारिस्थितिक विकल्प भी प्रदान करेगा तथा भारत के पूर्वोत्तर के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • बांग्लादेश के माध्यम से ऐतिहासिक व्यापार मार्गों को फिर से जीवंत करने के निरंतर प्रयास को प्रधानमंत्री गति शक्ति के तहत प्रोत्साहन मिला।
    • यह कल्पना की गई है कि पूर्वोत्तर धीरे-धीरे एक कनेक्टिविटी हब के रूप में परिवर्तित हो जाएगा।
    • पीएम गति शक्ति के तहत एकीकृत विकास योजना की परिकल्पना की गई है ताकि ब्रह्मपुत्र के पर कार्गो की तेज़ी से आवाजाही हो सके।

अंतर्देशीय जलमार्ग:

  • परिचय:
    • भारत में लगभग 14,500 किलोमीटर नौगम्य जलमार्ग है जिसमें नदियाँ, नहरें, बैकवाटर, खाड़ियाँ आदि शामिल हैं।
    • राष्ट्रीय जलमार्ग अधिनियम 2016 के अनुसार, 111 जलमार्गों को राष्ट्रीय जलमार्ग (NWs) घोषित किया गया है।
      • NW-1: गंगा-भागीरथी-हुगली नदी प्रणाली (प्रयागराज-हल्दिया) 1620 किमी. लंबाई के साथ भारत का सबसे लंबा राष्ट्रीय जलमार्ग है।
      • भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (IWAI) विश्व बैंक की तकनीकी और वित्तीय सहायता से गंगा के हल्दिया-वाराणसी खंड (NW-1 का हिस्सा) पर नेविगेशन की क्षमता बढ़ाने के लिये जल मार्ग विकास परियोजना (JMVP) को लागू कर रहा है।
  • इस संबंध में उठाए गए कदम:

भारत में अंतर्देशीय जलमार्ग की उपयोगिता:

  • अंतर्देशीय जल परिवहन (Inland Water Transport- IWT) द्वारा वार्षिक रूप से लगभग 55 मिलियन टन कार्गो का परिवहन किया जा रहा है जो एक ईंधन-कुशल और पर्यावरण अनुकूल साधन है।
    • हालाँकि विकसित देशों की तुलना में भारत में माल ढुलाई के लिये जलमार्ग का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
  • इसका संचालन वर्तमान में गंगा-भागीरथी-हुगली नदियों, ब्रह्मपुत्र, बराक नदी (पूर्वोत्तर भारत), गोवा में नदियों, केरल में बैकवाटर, मुंबई में अंतर्देशीय जल और गोदावरी- कृष्णा नदी के डेल्टा क्षेत्रों में कुछ हिस्सों तक सीमित है।
  • मशीनीकृत जहाज़ों द्वारा इन संगठित संचालनों के अलावा अलग-अलग क्षमता की देशी नावें भी विभिन्न नदियों एवं नहरों में संचालित होती हैं और इस असंगठित क्षेत्र में भी पर्याप्त मात्रा में कार्गो और यात्रियों को ले जाया जाता है।
  • IWT में भारत में अत्यधिक व्यस्त रेलवे और भीड़भाड़ वाले रोडवेज का पूरक बनने की क्षमता है। कार्गो की आवाजाही के अलावा IWT क्षेत्र वाहनों की ढुलाई [फेरी के रोल-ऑन-रोल-ऑफ (रो-रो) मोड] और पर्यटन जैसी संबंधित गतिविधियों को सुविधाजनक बनाता है।

अंतर्देशीय जलमार्ग नेटवर्क के लाभ:

  • परिवहन का सस्ता तरीका:
    • जलमार्ग उपलब्ध विकल्पों की तुलना में परिवहन का एक सस्ता साधन है, जो माल परिवहन की बिंदु-दर-बिंदु लागत को काफी कम करता है।
    • यह समय, माल और कार्गो के परिवहन की लागत के साथ-साथ राजमार्गों पर भीड़भाड़ और दुर्घटनाओं को भी कम करता है।
    • नेटवर्क को हरित क्षेत्र निवेश की आवश्यकता नहीं है, बल्कि सुधार/उन्नयन के लिये केवल पूंजीगत व्यय (पूंजीगत व्यय) की आवश्यकता है।
  • निर्बाध इंटरकनेक्टिविटी:
    • अंतर्देशीय जलमार्ग नेटवर्क द्वारा "नौवहन योग्य नदी तटों और तटीय मार्गों के साथ भीतरी इलाकों को जोड़ने वाली निर्बाध अंतर्संबंध स्थापित करने में मदद" की उम्मीद की जाती है और ये अंतर्देशीय जलमार्ग "उत्तर-पूर्वी राज्यों को मुख्य भूमि से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने में मददगार साबित हो सकते हैं।"

क्रियान्वयन संबंधी चुनौतियाँ:

  • संपूर्ण वर्ष के दौरान एकसमान नौगम्यता का अभाव:
    • कुछ नदियाँ मौसमी होती हैं और पूरे वर्ष नौवहन क्षमता प्रदान नहीं करती हैं। 111 चिह्नित राष्ट्रीय जलमार्गों में से लगभग 20 कथित तौर पर अव्यवहार्य पाए गए हैं।
  • गहन पूंजी और रखरखाव की आवश्यकता:
    • सभी चिह्नित जलमार्गों के लिये गहन पूंजी एवं रखरखाव की आवश्यकता होती है, जिसका स्थानीय समुदाय द्वारा पर्यावरणीय आधार पर विरोध किया जा सकता है, जिसमें विस्थापन की आशंका भी शामिल है, जिसके चलते कार्यान्वयन की चुनौतियाँ सामने आती हैं।
  • पानी के अन्य उपयोग:
    • पानी के महत्त्वपूर्ण प्रतिस्पर्द्धी उपयोग भी हैं, जैसे- सिंचाई और बिजली उत्पादन आदि जैसी आवश्यकताएँ शामिल हैं। स्थानीय सरकार या अन्य लोगों के लिये इन ज़रूरतों की अनदेखी करना संभव नहीं होगा।
  • केंद्र सरकार का विशेष क्षेत्राधिकार:
    • संसद के एक अधिनियम द्वारा केंद्र सरकार का अनन्य अधिकार क्षेत्र केवल 'राष्ट्रीय जलमार्ग' घोषित किये गए अंतर्देशीय जलमार्गों पर शिपिंग एवं नेविगेशन तक सीमित है।
    • अन्य जलमार्गों में जहाज़ों का उपयोग/नौकायन समवर्ती सूची के दायरे में है या संबंधित राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में है।

आगे की राह

  • प्रतिस्पर्द्धी आवश्यकताओं के साथ पानी एक दुर्लभ संसाधन होने के कारण, परिवहन के लिये इसके उपयोग को उचित ठहराना मुश्किल हो सकता है। हालाँकि, विभिन्न लाभों को ध्यान में रखते हुए और व्यावसायिक व्यवहार्यता, रोज़गार व आर्थिक विकास के कई अवसरों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय जलमार्ग का प्रभावी ढंग से उपयोग किया जा सकता है।
  • एक प्रभावी जलमार्ग नेटवर्क के लिये राष्ट्रीय नेटवर्क और अन्य जलमार्गों के बीच पूरकता को ध्यान में रखते हुए एक बेहतर रूप से समन्वित रणनीति तैयार करने की आवश्यकता होगी।
    • इस रणनीति के लिये विभिन्न अंतर्धाराओं पर बारीकी से ध्यान देना होगा, जिसमें प्रतिस्पर्द्धी उपयोग और संभावित स्थानीय प्रतिरोध आदि शामिल हैं, साथ ही यह भी महत्त्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय परियोजना के त्वरित व सफल कार्यान्वयन हेतु स्थानीय सरकारों के साथ मिलकर काम किया जाए।

स्रोत: पी.आई.बी.