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जैव विविधता और पर्यावरण

बायोमास को-फायरिंग

  • 14 Jun 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:  

बायोमास और इसके लाभ, डीकार्बोनाइज़ेशन, ग्रीनहाउस गैस। 

मेन्स के लिये:  

बायोमास को-फायरिंग, महत्त्व और चुनौतियांँ। 

चर्चा में क्यों?  

कृषि अवशेषों से निर्मित बायोमास पटियों (पैलेट) की कमी के चलते ताप विद्युत संयंत्रों में कोयले के साथ बायोमास की सह-फायरिंग/को-फायरिंग  हेतु विद्युत मंत्रालय द्वारा दिये गए निर्देश के कार्यान्वयन की गति धीमी हुई है। 

  • केंद्रीय विद्युत मंत्रालय ने फरवरी 2022 में केंद्रीय बज़ट पेश करते हुए देश के प्रत्येक ताप विद्युत संयंत्र में 5-10% को-फायरिंग अनिवार्य कर दी थी। 
  • बायोमास पेलट एक लोकप्रिय प्रकार का बायोमास ईंधन है, जो आमतौर पर लकड़ी के अवशेष, कृषि बायोमास, वाणिज्यिक घास और वानिकी अवशेषों से बनाया जाता है। 

बायोमास: 

  • परिचय: 
    • बायोमास पौधे या पशु अपशिष्ट है जिसे विद्युत या ऊष्मा उत्पन्न करने के लिये ईधन के रूप में जलाया जाता है। उदाहरण लकड़ी, फसलें और जंगलों, यार्डों या खेतों से निकलने वाले अपशिष्ट। 
    • बायोमास हमेशा से देश के लिये महत्त्वपूर्ण एवं लाभदायक ऊर्जा स्रोत रहा है। 
  • लाभ: 
    • यह नवीकरणीय, व्यापक रूप से उपलब्ध, कार्बन-तटस्थ है और इसमें ग्रामीण क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार प्रदान करने की क्षमता है। 
    • यह दृढ़ रूप से ऊर्जा प्रदान करने में भी सक्षम है। देश में कुल प्राथमिक ऊर्जा उपयोग का लगभग 32% अभी भी बायोमास से ही प्राप्त होता है तथा देश की 70% से अधिक आबादी अपनी ऊर्जा आवश्यता हेतु इस पर निर्भर है। 
  • बायोमास विद्युत और सह उत्पादन कार्यक्रम: 
    • परिचय: 
      • इस कार्यक्रम को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया है। 
      • कार्यक्रम के तहत बायोमास के कुशल उपयोग के लिये चीनी मिलों में खोई आधारित सह उत्पादन और बायोमास विद्युत उत्पादन शुरू किया गया है। 
      • विद्युत उत्पादन के लिये उपयोग की जाने वाली बायोमास सामग्री में चावल की भूसी, पुआल, कपास के डंठल, नारियल के गोले, सोया भूसी, डी-ऑयल केक, कॉफी अपशिष्ट, जूट अपशिष्ट, मूंँगफली के छिलके आदि शामिल हैं। 
    • उद्देश्य: 
      • ग्रिड विद्युत उत्पादन हेतु देश के बायोमास संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिये  प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना। 

बायोमास को-फायरिंग: 

  • परिचय: 
    • बायोमास को-फायरिंग कोयला थर्मल संयंत्रों में बायोमास के साथ ईंधन के एक हिस्से को प्रतिस्थापित करने की विधि है। 
    • बायोमास को-फायरिंग द्वारा उच्च दक्षता वाले कोयला बॉयलरों में बायोमास को आंशिक स्थानापन्न ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है। 
      • कोयले को जलाने के लिये डिज़ाइन किये गए बॉयलरों में कोयले और बायोमास का एक साथ दहन किया जाता है। इस उद्देश्य हेतु मौजूदा कोयला विद्युत संयंत्र का आंशिक रूप से पुनर्निर्माण और पुनर्संयोजित किया जाना है। 
      • को-फायरिंग एक कुशल और स्वच्छ तरीके से बायोमास को बिजली में बदलने और बिजली संयंत्र के  ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करने का एक विकल्प है। 
    • बायोमास को-फायरिंग कोयले को डीकार्बोनाइज़ करने के लिये विश्व स्तर पर स्वीकृत एक लागत प्रभावी तरीका है। 
    • भारत एक ऐसा देश है जहांँ आमतौर पर बायोमास को खेतों में जला दिया जाता है, जो आसानी से उपलब्ध एक बहुत ही सरल समाधान का उपयोग करके स्वच्छ कोयले की समस्या को हल करने के प्रति उदासीनता को दर्शाता है। 
  • महत्त्व: 
    • बायोमास को-फायरिंग फसल अवशेषों को खुले में जलाने से होने वाले उत्सर्जन को रोकने का एक प्रभावी तरीका है; यह कोयले का उपयोग करके बिजली उत्पादन की प्रक्रिया को भी डीकार्बोनाइज करता है। 
      • कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बायोमास के साथ 5-7% कोयले को प्रतिस्थापित करने से 38 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की बचत हो सकती है। 
    • यह जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्सर्जन में कटौती करने में मदद कर सकता है, कुछ हद तक कृषि पराली जलाने की भारत की बढ़ती समस्या का समाधान कर सकता है, ग्रामीण क्षेत्रों में रोज़गार पैदा करते हुए कचरे के बोझ को कम कर सकता है। 
    • भारत में अधिक बायोमास उपलब्धता के साथ-साथ कोयले से चलने वाली क्षमता में तेजी से वृद्धि हुई है। 
  • चुनौतिंयांँ:
    • कोयला आधारित बिजली संयंत्रों में बायोमास के साथ 5-7% कोयले को प्रतिस्थापित करने से 38 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की बचत हो सकती है, लेकिन मौजूदा बुनियादी ढांँचा इसे वास्तविकता में बदलने के लिये पर्याप्त मज़बूत नहीं है।  
    • को-फायरिंग के लिये प्रतिदिन लगभग 95,000-96,000 टन बायोमास पैलेट की आवश्यकता होती है, लेकिन देश में 228 मिलियन टन अतिरिक्त कृषि अवशेष उपलब्ध होने के बावजूद भारत की पैलेट निर्माण क्षमता वर्तमान में 7,000 टन प्रतिदिन है।  
    • यह बड़ा अंतर उपयोगिता को मौसमी उपलब्धता और बायोमास पैलेट की अविश्वसनीय आपूर्ति के कारण है।  
    • बायोमास पैलेट को संयंत्र स्थलों पर लंबे समय तक संग्रहीत करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि वे वायु से नमी को जल्दी अवशोषित करते हैं, जिससे उन्हें को-फायरिंग के लिये बेकार कर दिया जाता है। 
    • कोयले के साथ दहन के लिये केवल 14% नमी वाले पैलेट का उपयोग किया जा सकता है। 

अन्य संबंधित पहल: 

आगे की राह 

  • बिजली संयंत्रों में पैलेट निर्माण और को-फायरिंग के इस व्यवसाय मॉडल में किसानों की आंतरिक भूमिका सुनिश्चित करने के लिये प्लेटफॉर्मों की स्थापना की आवश्यकता है। 
  • प्रतिकूल पर्यावरणीय प्रभाव के बिना को-फायरिंग क्षमता का दोहन करने के लिये उभरती अर्थव्यवस्थाओं को प्रौद्योगिकी और नीति तैयार करने की आवश्यकता है।  
  • मिट्टी और जल संसाधनों की सुरक्षा, जैवविविधता, भूमि आवंटन और कार्यकाल, खाद्य कीमतों सहित जैव ऊर्जा के लिये स्थिरता संकेतकों को नीतिगत उपायों में एकीकृत करने की आवश्यकता है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ 

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