भारतीय राजव्यवस्था
बिलकिस बानो मामला और परिहार
- 10 Jan 2024
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प्रिलिम्स के लिये:बिलकिस बानो मामला और परिहार, दंड का परिहार, 2002 दंगे, सर्वोच्च न्यायालय, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, अनुच्छेद 72 मेन्स के लिये:बिलकिस बानो मामला और परिहार, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ एवं हस्तक्षेप तथा उनकी रूपरेखा और कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात राज्य में वर्ष 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो के साथ सामूहिक बलात्कार तथा उसके परिवार के सात सदस्यों की हत्या में शामिल 11 दोषियों को दंड परिहार देने के गुजरात सरकार के निर्णय को रद्द कर दिया है।
बिलकिस बानो मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उक्त गर्भवती महिला बिलकिस बानो के साथ क्रूर सामूहिक बलात्कार किया गया था तथा उसकी तीन वर्ष की बेटी सहित परिवार के सात सदस्यों को दंगाइयों ने मार डाला था।
- व्यापक विधिक कार्यवाही के बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation- CBI) ने मामले की जाँच की।
- वर्ष 2004 में बिलकिस को जान से मारने की धमकियाँ मिलने के बाद SC ने मुकदमे को गुजरात से मुंबई न्यायालय स्थानांतरित कर दिया तथा केंद्र सरकार को एक विशेष लोक अभियोजक (Public Prosecutor) नियुक्त करने का निर्देश दिया।
- वर्ष 2008 में मुंबई की एक न्यायालय ने 11 व्यक्तियों को सामूहिक बलात्कार तथा हत्या में शामिल होने के लिये दोषी सिद्ध किया जो बिलकिस बानो को न्याय दिलाने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम था।
- हालाँकि अगस्त 2022 में गुजरात सरकार ने इन 11 दोषियों को परिहार/माफी दे दी जिससे उनकी रिहाई हो गई। इस निर्णय ने संबद्ध छूट देने के लिये उत्तरदायी प्राधिकरण तथा क्षेत्राधिकार के संबंध में चिंताओं के कारण विवाद एवं विधिक चुनौतियों को उजागर किया।
गुजरात सरकार की दंड परिहार अनुदान को रद्द करने वाला सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय क्या है?
- अधिकार की कमी और छुपाए गए तथ्य:
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि गुजरात सरकार के पास दंड परिहार के आदेश जारी करने का अधिकार या क्षेत्राधिकार नहीं है।
- CrPC की धारा 432 के तहत, राज्य सरकारों के पास किसी दंड को निलंबित करने या क्षमा करने की शक्ति है। लेकिन न्यायालय ने कहा कि कानून की धारा 7(B) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि उपयुक्त सरकार वह है जिसके अधिकार क्षेत्र में अपराधी को सज़ा सुनाई जाती है।
- इसने बताया कि दंड परिहार देने का निर्णय उस राज्य के अधिकार क्षेत्र में होना चाहिये जहाँ दोषियों को सज़ा सुनाई गई थी, न कि जहाँ अपराध हुआ था या जहाँ उन्हें कैद किया गया था।
- दंड परिहार प्रक्रिया की आलोचना:
- न्यायालय ने यह उल्लेख करते हुए दंड परिहार प्रक्रिया में गंभीर खामियों को उजागर किया है कि आदेशों पर उचित विचार नहीं किया गया और तथ्यों को छिपाकर प्राप्त किया गया, जो न्यायालय के साथ धोखाधड़ी है।
- सत्ता का अतिरेक और गैरकानूनी प्रयोग:
- न्यायालय ने गुजरात सरकार की अतिरेक की आलोचना करते हुए कहा कि उसने दंड परिहार के आदेश जारी करने में उस शक्ति का गैरकानूनी तरीके से प्रयोग किया जो महाराष्ट्र सरकार के पास थी।
- स्वतंत्रता याचिका के निर्देश और अस्वीकृति:
- अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिये दोषियों की याचिका को खारिज करते हुए, न्यायालय ने उन्हें दो सप्ताह के भीतर जेल के अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।
परिहार क्या है?
- परिचय:
- परिहार (Remission) एक बिंदु पर किसी दंड या सज़ा की पूर्ण रूप से समाप्ति है। दंड परिहार फर्लो (Furlough) और पैरोल (Parole) दोनों से अलग है क्योंकि इसमें कारावास-जीवन से विराम के विपरीत दंड में कमी कर दी जाती है।
- दंड परिहार में सज़ा की प्रकृति बदलती नहीं है, जबकि अवधि कम हो जाती है अर्थात् शेष सज़ा भुगतने की ज़रूरत नहीं होती है।
- दंड परिहार का प्रभाव यह होता है कि कैदी को एक निश्चित तारीख दी जाती है जिस दिन उसे रिहा किया जाएगा और कानून की नज़र में वह एक स्वतंत्र व्यक्ति होगा।
- हालाँकि दंड परिहार की किसी भी शर्त के उल्लंघन के मामले में इसे रद्द कर दिया जाएगा और अपराधी को वह पूरी अवधि वापस कारावास में व्यतीत करनी होगी जिसके लिये उसे मूल रूप से सज़ा सुनाई गई थी।
- संवैधानिक प्रावधान:
- राष्ट्रपति और राज्यपाल दोनों को संविधान द्वारा क्षमा की संप्रभु शक्ति प्रदान की गई है।
- अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति किसी भी व्यक्ति की सज़ा को क्षमा, लघुकरण, विराम या प्रविलंबन कर सकता है या निलंबित या कम कर सकता है।
- यह सभी मामलों में किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति हेतु किया जा सकता है:
- सज़ा उन सभी मामलों में कोर्ट-मार्शल द्वारा होगी जहाँ सज़ा केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्ति से संबंधित किसी भी कानून के तहत अपराध को संदर्भित करती है और सभी मामलों में मौत की सज़ा होगी।
- यह सभी मामलों में किसी भी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति हेतु किया जा सकता है:
- अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल सज़ा को क्षमा, प्रविलंबन, विराम या परिहार दे सकता है या सज़ा को निलंबित, हटा या कम कर सकता है।
- यह राज्य की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आने वाले मामले में किसी भी कानून के तहत दोषी ठहराए गए किसी भी व्यक्ति के लिये किया जा सकता है।
- अनुच्छेद 72 के तहत राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति का दायरा अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल की क्षमादान शक्ति से अधिक व्यापक है।
- परिहार की सांविधिक शक्ति:
- दंड प्रक्रिया संहिता (CRPC) जेल की सज़ा में दंड परिहार का प्रावधान करती है, जिसका अर्थ है कि पूरी सज़ा या उसका एक हिस्सा रद्द किया जा सकता है।
- धारा 432 के तहत 'उपयुक्त सरकार' किसी सज़ा को पूरी तरह या आंशिक रूप से शर्तों के साथ या उसके बिना निलंबित या माफ कर सकती है।
- धारा 433 के तहत किसी भी सज़ा को उपयुक्त सरकार द्वारा कम किया जा सकता है।
- यह शक्ति राज्य सरकारों को उपलब्ध है ताकि वे जेल की अवधि पूरी करने से पहले कैदियों को रिहा करने का आदेश दे सकें।
- परिहार के ऐतिहासिक मामले:
- लक्ष्मण नस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2000):
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उन कारकों को निर्धारित किया जो परिहार के अनुदान को नियंत्रित करते हैं:
- क्या अपराध बड़े पैमाने पर समाज को प्रभावित किये बिना अपराध का एक व्यक्तिगत कार्य है?
- क्या भविष्य में अपराध की पुनरावृत्ति की कोई संभावना है?
- क्या अपराधी अपराध करने की अपनी क्षमता खो चुका है?
- क्या इस दोषी को अब और कैद में रखने का कोई सार्थक उद्देश्य है?
- दोषी के परिवार की सामाजिक-आर्थिक स्थिति।
- इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने उन कारकों को निर्धारित किया जो परिहार के अनुदान को नियंत्रित करते हैं:
- इपुरु सुधाकर बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2006):
- SC ने माना कि दंड परिहार के आदेश की न्यायिक समीक्षा निम्नलिखित आधारों पर उपलब्ध है:
- दिमाग का उपयोग न करना;
- आदेश दुर्भावनापूर्ण है;
- आदेश अप्रासंगिक या पूर्णतः अप्रासंगिक विचारों पर पारित किया गया है;
- प्रासंगिक सामग्रियों को विचार से बाहर रखा गया;
- आदेश मनमानी से ग्रस्त है।
- SC ने माना कि दंड परिहार के आदेश की न्यायिक समीक्षा निम्नलिखित आधारों पर उपलब्ध है:
- लक्ष्मण नस्कर बनाम पश्चिम बंगाल राज्य (2000):
नोट:
- क्षमादान: यह सज़ा और दोषसिद्धि दोनों को हटा देता है तथा दोषी को सभी सज़ाओं, दंडों एवं अयोग्यताओं से पूरी तरह से मुक्त कर देता है।
- संपरिवर्तन: यह सज़ा के एक रूप को कम सज़ा के साथ प्रतिस्थापित करने को दर्शाता है। उदाहरण के लिये, मौत की सज़ा को कठोर कारावास में बदला जा सकता है।
- राहत: यह किसी विशेष तथ्य, जैसे किसी दोषी की शारीरिक विकलांगता या किसी महिला अपराधी की गर्भावस्था, के कारण मूल रूप से दी गई सज़ा के स्थान पर कम सज़ा देने को दर्शाता है।
- दंडविराम: इसका तात्पर्य अस्थायी अवधि के लिये किसी सज़ा (विशेष रूप से मौत की सज़ा) के निष्पादन पर रोक लगाना है। इसका उद्देश्य दोषी को राष्ट्रपति से माफी या सज़ा में छूट मांगने के लिये समय देना है।
और पढ़ें:
https://www.drishtijudiciary.com/hin/editorial/Remission-in-Bilkis-Bano-Judgment