बेनामी लेनदेन अधिनियम | 26 Aug 2022
प्रिलिम्स के लिये:बेनामी संपत्ति, बेनामी लेनदेन, बेनामीदार, मनी लॉन्ड्रिंग मेन्स के लिये:बेनामी लेनदेन के प्रावधान (निषेध) संशोधन अधिनियम 2016, असंवैधानिक प्रावधान |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 की धारा 3(2) को स्पष्ट रूप से स्वैच्छिक होने के आधार पर असंवैधानिक करार दिया।
- धारा 3(2) बेनामी लेनदेन में करने पर सजा का प्रावधान करती है।
- न्यायाधीशों ने माना कि अधिनियम जिसे वर्ष 2016 में संशोधित किया गया था केवल संभावित रूप से लागू किया जा सकता है और संशोधित अधिनियम के लागू होने से पहले सभी अभियोजन या ज़ब्ती की कार्यवाही को रद्द कर दिया।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला सुनाया
- अधिनियम, 2016 की धारा 3(3):
- न्यायालय ने बेनामी लेनदेन करने पर तीन साल के कारावास की सजा और संपत्ति के उचित बाज़ार मूल्य के 25 प्रतिशत तक ज़ुर्माना बढ़ा दी।
- सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि "संबंधित अधिकारी अधिनियम, 2016 के (25 अक्तूबर 2016) के लागू होने से पहले किये गए लेनदेन हेतु आपराधिक मुकदमा चलाने या ज़ब्त करने की कार्यवाही शुरू नहीं कर सकते हैं या जारी नहीं रख सकते हैं। उपरोक्त घोषणा के परिणामस्वरूप ऐसे सभी अभियोजन या ज़ब्ती की कार्यवाही रद्द हो जाएगी।"
- बेनामी संपत्तियों की ज़ब्ती:
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1988 के अधिनियम में बेनामी संपत्तियों को असंवैधानिक रूप से ज़ब्त करने के प्रावधान को भी असंवैधानिक ठहराया और कहा कि 2016 के संशोधित अधिनियम में प्रावधान केवल संभावित रूप से लागू किया जा सकता है।
- चूँकि यह वर्ष 2016 के संशोधन अधिनियम के तहत अन्य आधारों पर विचार की गई स्वतंत्र ज़ब्ती कार्यवाही की संवैधानिकता से संबंधित नहीं है, इसलिये यह उचित मामलों में निर्णय लेने के लिये स्वतंत्र था।
- सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1988 के अधिनियम में बेनामी संपत्तियों को असंवैधानिक रूप से ज़ब्त करने के प्रावधान को भी असंवैधानिक ठहराया और कहा कि 2016 के संशोधित अधिनियम में प्रावधान केवल संभावित रूप से लागू किया जा सकता है।
- धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA), 2002
- सर्वोच्च न्यायालय के हाल ही के एक निर्णय ने PMLA के प्रावधान को बरकरार रखा जो अधिकारियों को असाधारण मामलों में मुकदमे से पहले संपत्ति पर अधिकार करने की अनुमति देता है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि इस तरह के प्रावधान से मनमाने आवेदन की संभावना खत्म हो जाती है
बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम 2016
- परिचय:
- अधिनियम ने मूल अधिनियम बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम 1988 में संशोधन किया और इसका नाम बदलकर बेनामी संपत्ति लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 कर दिया।
- अधिनियम ने बेनामी लेनदेन को एक लेनदेन के रूप में परिभाषित करता है जहाँ:
- एक संपत्ति किसी व्यक्ति के पास होती है या उसे हस्तांतरित की जाती है लेकिन किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रदान या भुगतान की जाती है।
- फर्जी नाम से किया गया लेनदेन
- मालिक को संपत्ति के स्वामित से इनकार करने के बारे में जानकारी नहीं है,
- संपत्ति के लिये दावा प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति ट्रेस करने योग्य नहीं है।
- अपीलीय न्यायाधिकरण:
- यह अधिनियम न्यायनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा पारित किसी भी आदेश के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिये एक अपीलीय न्यायाधिकरण का प्रावधान करता है।
- अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेशों के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की जा सकेगी।
- विशेष न्यायालय को शिकायत दर्ज करने की तारीख से छह महीने के भीतर मुकदमे की सुनवाई पूरी करनी चाहिये।
- यह अधिनियम न्यायनिर्णायक प्राधिकारी द्वारा पारित किसी भी आदेश के विरुद्ध अपीलों की सुनवाई के लिये एक अपीलीय न्यायाधिकरण का प्रावधान करता है।
- प्राधिकरण:
- बेनामी लेनदेन के संबंध में पूछताछ या जाँच करने के लिये अधिनियम ने चार प्राधिकरणों की स्थापना की:
- पहल अधिकारी
- अनुमोदन प्राधिकारी
- प्रशासक
- निर्णायक प्राधिकारी
- यदि पहल अधिकारी को लगता है कि व्यक्ति एक बेनामीदार है तो वह उस व्यक्ति को नोटिस जारी कर सकता है।
- अनुमोदन प्राधिकारी की अनुमति के अधीन पहल अधिकारी नोटिस जारी होने की तारीख से 90 दिनों के लिये संपत्ति को अधिकार में ले सकता है।
- नोटिस अवधि के अंत में, पहला अधिकारी संपत्ति पूर्वकालिक स्थिति के लिये एक आदेश पारित कर सकता है।
- अनुमोदन प्राधिकारी की अनुमति के अधीन पहल अधिकारी नोटिस जारी होने की तारीख से 90 दिनों के लिये संपत्ति को अधिकार में ले सकता है।
- यदि संपत्ति के स्वामित्त्व को जारी रखने के लिये कोई आदेश पारित किया जाता है, तो अधिकारी मामले को न्यायनिर्णायक प्राधिकारी को संदर्भित करेगा।
- न्यायनिर्णयन प्राधिकारी मामले से संबंधित सभी दस्तावेजों और साक्ष्यों की जाँच करेगा और फिर एक आदेश पारित करेगा कि संपत्ति को बेनामी के रूप में रखा जाए या नहीं।
- बेनामी संपत्ति को ज़ब्त करने के आदेश के आधार पर, प्रशासक संपत्ति को निर्धारित तरीके और शर्तों के अधीन प्राप्त तथा प्रबंधित करेगा।
- न्यायनिर्णयन प्राधिकारी मामले से संबंधित सभी दस्तावेजों और साक्ष्यों की जाँच करेगा और फिर एक आदेश पारित करेगा कि संपत्ति को बेनामी के रूप में रखा जाए या नहीं।
- संशोधित कानून निर्दिष्ट अधिकारियों को बेनामी संपत्तियों को अस्थायी रूप से संलग्न करने का अधिकार देता है जिन्हें अंततः ज़ब्त किया जा सकता है।
- बेनामी लेनदेन के संबंध में पूछताछ या जाँच करने के लिये अधिनियम ने चार प्राधिकरणों की स्थापना की:
- दंड:
- यदि कोई व्यक्ति सक्षम न्यायालय द्वारा बेनामी लेन-देन के अपराध में दोषी पाया जाता है, तो उसे कम से कम एक वर्ष की अवधि के लिये कठोर कारावास की सज़ा हो सकती है, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- वह जुर्माने के लिये भी उत्तरदायी होगा जो संपत्ति के उचित बाज़ार मूल्य के 25% तक हो सकता है।
अधिनियम के तहत कुछ महत्त्वपूर्ण शर्तें:
- संपत्ति:
- किसी भी प्रकार की संपत्ति, चाहे चल या अचल, मूर्त या अमूर्त, भौतिक या निगमन और इसमें कोई अधिकार या हित या कानूनी दस्तावेज या उपकरण शामिल हैं जो संपत्ति पर अधिकार का सबूत देते हैं और जहाँ संपत्ति किसी अन्य रूप में रूपांतरण करने में सक्षम है, परिवर्तित रूप में संपत्ति और संपत्ति से आय भी शामिल है।
- बेनामी संपत्ति:
- कोई भी संपत्ति जो बेनामी लेन-देन का विषय है और इसमें ऐसी संपत्ति से प्राप्त आय भी शामिल है।
- बेनामीदार:
- एक व्यक्ति या एक काल्पनिक व्यक्ति, जैसा भी मामला हो, जिसके नाम पर बेनामी संपत्ति हस्तांतरित या धारण की जाती है और इसमें वह व्यक्ति शामिल होता है जो अपना नाम उधार देता है।
- स्वामी:
- ऐसा व्यक्ति चाहे उसकी पहचान ज्ञात हो या नहीं, जिसके लाभ के लिये बेनामी संपत्ति एक बेनामीदार के पास है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. 'बेनामी संपत्ति लेनदेन निषेध अधिनियम, 1988 (PBPT अधिनियम)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2017)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) व्याख्या:
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