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भारतीय अर्थव्यवस्था

बेनामी संपत्ति लेन-देन निषेध अधिनियम, 1988

  • 25 Oct 2018
  • 6 min read

संदर्भ

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्‍यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बेनामी संपत्ति लेन-देन निषेध अधिनियम (Benami Property Transactions Act - PBPT), 1988 के तहत निर्णायक प्राधिकरण (Adjudicating Authority) के गठन और अपीलीय न्‍यायाधिकरण (Appellate Tribunal) की स्‍थापना को स्‍वीकृति दे दी है।

मुख्‍य बिंदु

I. पीबीपीटी अधिनियम के तहत तीन अतिरिक्‍त खंडपीठों के साथ निर्णायक प्राधिकरण का गठन और अपीलीय न्‍यायाधिकरण की स्‍थापना की जाएगी।

II. निर्णायक प्राधिकरण की खंडपीठों और अपीलीय न्‍यायाधिकरण को अधिकारीगण एवं कर्मचारीगण उपलब्‍ध कराए जाएंगे। आयकर विभाग/केंद्रीय प्रत्‍यक्ष कर बोर्ड (Central Board of Direct Taxes - CBDT) में समान स्‍तर/रैंक वाले वर्तमान पदों का उपयोग अन्‍यत्र करके यह काम पूरा किया जाएगा।

III. निर्णायक प्राधिकरण और अपीलीय न्‍यायाधिकरण दिल्‍ली के राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र (National Capital Territory of Delhi - NCTD) में ही अवस्‍थित होंगे।

IV. निर्णायक प्राधिकरण की खंडपीठ कोलकाता, मुंबई और चेन्‍नई में अवस्थित हो सकती है। प्रस्‍तावित निर्णायक प्राधिकरण के अध्‍यक्ष के साथ सलाह-मशवि‍रा करने के बाद ही इस बारे में आवश्‍यक अधिसूचना जारी की जाएगी।

लाभ

  • पर्युक्‍त मंजूरी मिल जाने से निर्णायक प्राधिकरण को सौंपे गए मामलों का कारगर एवं बेहतर निपटान संभव होगा और इसके साथ ही निर्णायक प्राधिकरण के ऑर्डर के खिलाफ अपीलीय न्‍यायाधिकरण में की जाने वाली अपील का भी त्‍वरित निपटान संभव हो पाएगा।
  • निर्णायक प्राधिकरण के गठन से PBPT अधिनियम के तहत की जाने वाली प्रशासनिक कार्रवाई की प्रथम चरण की समीक्षा करने में मदद मिलेगी।
  • प्रस्‍तावित अपीलीय न्‍यायाधिकरण की स्‍थापना से PBPT अधिनियम के तहत निर्णायक प्राधिकरण द्वारा जारी किये जाने वाले ऑर्डर के खिलाफ अपील करने की समुचित व्‍यवस्‍था संभव हो पाएगी।

बेनामी लेन-देन (निषेध) अधिनियम, 1988

बेनामी लेन-देन (निषेध) संशोधन विधेयक, 2015 का उद्देश्य बेनामी लेन-देन (निषेध) अधिनियम, 1988 में संशोधन करना है। इस नए संशोधित कानून से बेनामी संपत्ति को ज़ब्त करने और मुकदमा चलाने का अधिकार प्राप्त हुआ। इस प्रकार प्रमुख राजस्व को विशेष रूप से रियल एस्टेट की बेनामी संपत्ति में काले धन के रूप में लगाए जाने का रास्ता अवरुद्ध होगा।

  • विधेयक में इसके लिये दायरे का विस्तार किया गया है, जिसमें संदिग्ध नामों के तहत खरीदी गई संपत्तियों को भी शामिल किया गया है और ऐसी स्थितियों को भी जोड़ा गया है जिसमें मालिक अपने मालिकाना हक से अंजान होता है। ऐसे सौदों को अंजाम देने वालों की धरपकड़ भी की जाएगी।
  • यदि संपत्ति पत्नी, बच्चे या परिवार के किसी निकट सदस्य के नाम पर है तो वह बेनामी संपत्ति की श्रेणी में नहीं आएगी। लेकिन यदि किसी तीसरे पक्ष के नाम पर दर्ज है, तब उस स्थिति में ऐसी संपत्ति को ज़ब्त किया जा सकता है।
  • संशोधित विधेयक सरकार को यह अधिकार देता है कि वह बेनामी संपत्तियों को ज़ब्त कर सकती है।
  • इसमें सरकार को वैधानिक और प्रशासनिक शक्तियाँ दी गई हैं, जिससे वह बेनामी कानून लागू होने की राह में आने वाली व्यावहारिक कठिनाइयों से पार पाने में सक्षम होगी।
  • आय घोषणा योजना के तहत भी कोई व्यक्ति अपनी बेनामी संपत्ति की घोषणा कर सकता है और उसे बेनामी अधिनियम के प्रावधानों से राहत दी जाएगी।
  • इस विधेयक का उद्देश्य एक व्यापक समावेशी ढाँचा तैयार करना है, जिसमें बेनामी संपत्तियों के बेहतर नियमन हेतु विशेष सुनवाई प्राधिकरण का गठन किया जाएगा।
  • अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक उचित प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। इस विधेयक में चार स्तरीय नियामकीय ढाँचे के गठन का प्रस्ताव है, जिसमें एक पहल अधिकारी, एक स्वीकृति प्राधिकरण, एक प्रशासक और सुनवाई प्राधिकरण होगा।
  • विधेयक में नियमों का उल्लंघन करने की स्थिति में सख्त सज़ा का प्रावधान किया गया है। इसमें बेनामी संपत्ति खरीदने की स्थिति में सात साल की सज़ा हो सकती है। साथ ही एजेंसियों को गलत सूचनाएँ देने के कारण भी पाँच साल जेल में काटने पड़ सकते हैं।
  • संशोधन में एक अपीलीय पंचाट के गठन का भी प्रावधान है, जो अपील की सुनवाई के लिये एक स्वतंत्र निकाय के रूप में काम करे और मामले के उच्च न्यायालय में जाने से पहले ही यहाँ उसकी सुनवाई हो सके।
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