बेलागवी सीमा विवाद | 28 Dec 2021
प्रिलिम्स के लिये:एस.के. धर समिति, जे.वी.पी. समिति, महाजन समिति, राज्य पुनर्गठन अधिनियम। मेन्स के लिये:भारत में राज्यों का पुनर्गठन और संबंधित विवाद। |
चर्चा में क्यों?
कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों के मध्य बेलागवी को लेकर दशकों पुराना विवाद तथा महाराष्ट्र जिसे बेलगाम ज़िला कहता है फिर से सुर्खियों में बना हुआ है।
- बेलगाम या बेलागवी वर्तमान में कर्नाटक राज्य का हिस्सा है लेकिन महाराष्ट्र द्वारा इस पर अपना दावा किया जाता है।
प्रमुख बिंदु
- बेलागवी सीमा विवाद के बारे में:
- वर्ष 1957 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956 के कार्यान्वयन से आहत महाराष्ट्र ने कर्नाटक के साथ अपनी सीमा के पुन: समायोजन की मांग की।
- महाराष्ट्र ने अधिनियम की धारा 21 (2) (b) को लागू किया और कर्नाटक में मराठी भाषी क्षेत्रों को जोड़ने पर अपनी आपत्ति व्यक्त करते हुए गृह मंत्रालय को एक ज्ञापन सौंपा।
- महाराष्ट्र द्वारा 2,806 वर्ग मील के क्षेत्र पर अपना दावा प्रस्तुत किया गया जिसमें 814 गाँव शामिल थे और लगभग 6.7 लाख की कुल आबादी के साथ बेलागवी, कारवार और निप्पनी की तीन शहरी बस्तियाँ। स्वतंत्रता से पहले ये सभी मुंबई प्रेसीडेंसी का हिस्सा थे।
- ये गाँव उत्तर-पश्चिमी कर्नाटक के बेलागवी, उत्तर कन्नड़ और उत्तर-पूर्वी कर्नाटक के बीदर और गुलबर्गा ज़िलों में फैले हुए हैं जो सभी महाराष्ट्र के साथ सीमा साझा करते हैं।
- बाद में जब दोनों राज्यों द्वारा चार सदस्यीय समिति का गठन किया गया, तो महाराष्ट्र ने मुख्य रूप से लगभग 3.25 लाख की आबादी और 1,160 वर्ग मील के कुल क्षेत्रफल के साथ कन्नड़ भाषी 260 गांँवों को स्थानांतरित करने की इच्छा व्यक्त की।।
- यह 814 गांँवों और तीन शहरी बस्तियों की मांग को स्वीकार करने के बदले में था, जिसे कर्नाटक राज्य द्वारा मानने से इनकार कर दिया गया।
- महाराष्ट्र के दावे का आधार:
- अपनी सीमा के पुन: समायोजन की मांग करने का महाराष्ट्र का दावा भाषायी बहुमत और लोगों की इच्छाओं के आधार पर था। बेलागवी और आसपास के क्षेत्रों पर दावा मराठी भाषी लोगों और भाषायी एकरूपता पर आधारित था, अतः इसने कारवार और सुपा पर अपना दावा प्रस्तुत किया क्योंकि यहाँ कोंकणी को मराठी की उपबोली के रूप में बोला जाता है।
- यह तर्क इस सिद्धांत पर आधारित था कि गाँव गणना की इकाई हैं और प्रत्येक गाँव में भाषायी जनसंख्या की गणना की जाती है। महाराष्ट्र ऐतिहासिक तथ्य की ओर भी इशारा करता है कि इन मराठी भाषी क्षेत्रों में राजस्व रिकॉर्ड भी मराठी भाषा में ही रखा जाता है।
- कर्नाटक की स्थिति:
- कर्नाटक ने तर्क दिया है कि राज्य पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार सीमाओं का समझौता अंतिम है।
- राज्य की सीमा न तो अस्थायी थी और न ही लचीली। राज्य का तर्क है कि यह मुद्दा उन सीमा मुद्दों को फिर से खोल देगा जिन परअधिनियम के तहत विचार नहीं किया गया है, अत: ऐसी मांग की अनुमति नहीं दी जानी चाहिये।
- समस्या के समाधान के लिये उठाए गए कदम:
- वर्ष 1960 में दोनों राज्य प्रत्येक राज्य के दो प्रतिनिधियों के साथ एक चार सदस्यीय समिति गठित करने पर सहमत हुए। निकटता के मुद्दे को छोड़कर समिति एक सर्वसम्मत निर्णय पर नहीं पहुँच सकी।
- 1960 और 1980 के दशक के बीच कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने इस उलझे हुए मुद्दे का समाधान खोजने के लिये कई बार मुलाकात की, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ।
- केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया:
- केंद्र सरकार ने स्थिति का आकलन करने के लिये वर्ष 1966 में महाजन समिति का गठन किया। दोनों पक्षों, महाराष्ट्र और तत्कालीन मैसूर राज्य के प्रतिनिधि समिति का हिस्सा थे।
- 1967 में समिति ने सिफारिश की कि कर्नाटक के कारवार, हलियाल और सुपर्णा तालुका के कुछ गाँव महाराष्ट्र को दे दिये जाएँ लेकिन बेलागवी को दक्षिणी राज्य के साथ छोड़ दिया।
- सर्वोच्च न्यायालय का जवाब:
- 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि इस मुद्दे को आपसी बातचीत से सुलझाया जाना चाहिये और भाषायी मानदंड पर विचार नहीं किया जाना चाहिये क्योंकि इससे अधिक व्यावहारिक समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
- इस मामले की सुनवाई अभी भी सर्वोच्च न्यायालय में चल रही है।
- विभिन्न राज्यों के बीच अन्य सीमा विवाद:
भारत में राज्यों का पुनर्गठन:
- वर्ष 1947 में स्वतंत्रता के समय भारत में लगभग 550 असंबद्ध रियासतें शामिल थीं।
- वर्ष 1950 में संविधान में भारतीय संघ के राज्यों का चार गुना वर्गीकरण था- भाग A, भाग B, भाग C और भाग D राज्य।
- भाग A राज्यों में ब्रिटिश भारत के नौ तत्कालीन गवर्नर प्रांत शामिल थे।
- भाग B राज्यों में विधायिकाओं के साथ नौ पूर्ववर्ती रियासतें शामिल थीं।
- भाग C राज्यों में तत्कालीन मुख्य आयुक्त के अंतर्गत ब्रिटिश भारत प्रांत और कुछ पूर्ववर्ती रियासतें शामिल थीं।
- भाग D राज्य में केवल अंडमान और निकोबार द्वीप समूह शामिल थे।
- उस समय राज्यों का समूहीकरण भाषायी या सांस्कृतिक विभाजन के बजाय राजनीतिक और ऐतिहासिक विचारों के आधार पर किया जाता था, लेकिन यह एक अस्थायी व्यवस्था थी।
- बहुभाषी प्रकृति और विभिन्न राज्यों के बीच मौजूद मतभेदों के कारण राज्यों को स्थायी आधार पर पुनर्गठित करने की आवश्यकता थी।
- इस संदर्भ में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन की आवश्यकता पर गौर करने के लिये सरकार द्वारा 1948 में एस.के. धर समिति का गठन किया गया था।
- आयोग द्वारा भाषायी आधार पर नहीं बल्कि ऐतिहासिक और भौगोलिक आधार को शामिल करते हुए प्रशासनिक सुविधा के आधार पर राज्यों के पुनर्गठन को प्राथमिकता दी गई।
- इससे बहुत आक्रोश पैदा हुआ और एक अन्य भाषायी प्रांत समिति की नियुक्ति की गई।
- दिसंबर 1948 में इस मुद्दे का अध्ययन करने के लिये जवाहरलाल नेहरू, वल्लभ भाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैया की जेवीपी समिति का गठन किया गया था।
- समिति ने अप्रैल 1949 में प्रस्तुत अपनी रिपोर्ट में भाषायी आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के विचार को खारिज़ करते हुए कहा कि जनता की मांग के आलोक में इस मुद्दे को नए सिरे से देखा जा सकता है।
- हालाँकि अक्तूबर 1953 में विरोध के कारण भारत सरकार ने तेलुगू भाषायी क्षेत्रों को मद्रास राज्य से अलग करके पहला भाषायी राज्य बनाया जिसे आंध्र राज्य के रूप में जाना जाता है।
- 22 दिसंबर, 1953 को जवाहरलाल नेहरू ने राज्यों के पुनर्गठन पर विचार करने के लिये फज़ल अली के नेतृत्व में एक आयोग का गठन किया।
- आयोग ने 1955 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की तथा सुझाव दिया कि पूरे देश को 16 राज्यों और तीन केंद्र प्रशासित क्षेत्रों में विभाजित किया जाना चाहिये।
- सरकार ने सिफारिशों से पूरी तरह सहमत न होते हुए नवंबर 1956 में पारित राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत देश को 14 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया।
- वर्ष 1956 में राज्यों के बड़े पैमाने पर पुनर्गठन के बाद भी लोकप्रिय आंदोलनों और राजनीतिक परिस्थितियों के दबाव के कारण भारत के राजनीतिक मानचित्र में निरंतर परिवर्तन होते रहे।
- 5 अगस्त, 2019 को भारत के राष्ट्रपति ने संविधान के अनुच्छेद 370 के खंड (1) द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए संविधान (जम्मू और कश्मीर के लिये आवेदन) आदेश, 2019 जारी किया था।
- इसके द्वारा जम्मू और कश्मीर राज्य को दो नए केंद्रशासित प्रदेशों (UTs)- जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख में विभाजित कर दिया गया।
- हाल ही में दादरा और नागर हवेली तथा दमन और दीव (केंद्रशासित प्रदेशों का विलय) अधिनियम, 2019 द्वारा केंद्रशासित प्रदेशों (UTs)- दमन और दीव (D&D) तथा दादरा और नागर हवेली (DNH) का विलय कर दिया गया है।
- वर्तमान में भारत में 28 राज्य और 8 केंद्रशासित प्रदेश हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस