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भारतीय अर्थव्यवस्था

बैंकों द्वारा ऋण भुगतान पर पुनः अधिस्थगन की मांग

  • 22 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये: 

गैर निष्पादित संपत्तियाँ, COVID-19.

मेंस के लिये:

बैंकिंग क्षेत्र पर COVID-19 का प्रभाव 

चर्चा में क्यों:  

हाल ही में देश में COVID-19 के प्रसार को रोकने हेतु लॉकडाउन को 31 मई, 2020 तक बढ़ाए जाने के बाद कई बैंकों ने एक बार पुनः ऋण भुगतान पर 90 दिनों का अतिरिक्त अधिस्थगन (Moratorium) लगाए जाने की मांग की है।

प्रमुख बिंदु:  

  • हाल ही में ‘भारतीय रिज़र्व बैंक’ (Reserve Bank of India-RBI) के शीर्ष अधिकारियों और बैंकों तथा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी (Non-Banking Financial Company- NBFC) के प्रमुखों की एक बैठक में ऋण भुगतान पर अस्थायी स्थगन को 31 अगस्त, 2020 तक बढ़ाए जाने की मांग की गई है।
  • कई बैंकों और NBFCs ने वर्तमान आर्थिक संकट से उबरने के लिये एक ऋण पुनर्गठन योजना (Loan Restructuring Scheme) लागू किये जाने की मांग की है।  
  • साथ ही बैंकों ने तनावग्रस्त संपत्तियों को ‘गैर निष्पादित संपत्तियों’ (Non-Performing Assets-NPA) के रूप में चिन्हित करने की अवधि को 90 दिनों से बढ़ाकर 180 दिन करने की मांग की है। 
  • गौरतलब है कि COVID-19 के कारण उत्पन्न हुई आर्थिक चुनौतियों को देखते हुए 27 मार्च, 2020 को RBI ने बैंकों द्वारा दिये गए ऋण के भुगतान पर 90 दिनों (1 मार्च से 31 मई तक) के अस्थायी स्थगन की घोषणा की थी।

ऋण भुगतान पर स्थगन की मांग का कारण:  

  • वर्तमान में देशभर में लागू लॉकडाउन के कारण देश के अधिकांश उद्योगों और व्यवसायों की आय में भारी गिरावट देखी गई है।
  • हालाँकि हाल ही में सरकार द्वारा कई क्षेत्रों में औद्योगिक गतिविधियों और यातायात को शुरू करने की अनुमति दी गई है परंतु लॉकडाउन के दौरान औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखला के प्रभावित होने और बेरोज़गारी के बढ़ने से अधिकांश उद्योग मई माह में पूर्ण रूप से अपना उत्पादन नहीं शुरू कर सकेंगे।
  • लॉकडाउन और अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के कारण पहले से ही बैंकों की गैर-निष्पादित संपत्तियों में वृद्धि देखी गई है।      

चुनौतियाँ: 

  • लॉकडाउन को 31 मई तक बढ़ाए जाने के बाद यदि RBI ऋण भुगतान में छूट को तीन माह के लिये आगे बढ़ाता है तो इसका अर्थ होगा कि कंपनियों को 31 अगस्त तक बैंकों को कोई भुगतान नहीं करना होगा।
  • परंतु इस छूट के साथ सितंबर माह में कंपनियों द्वारा अपनी देनदारी की पूरी राशि को एक साथ चुका पाने की संभावनाएँ भी बहुत कम हैं, ऐसी स्थिति में वर्तमान नियमों के तहत इन कंपनियों के खाते NPA की श्रेणी में आ जाएंगे।   
  • रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (CRISIL) के अनुसार, वर्तमान वित्तीय वर्ष में NPAs में 150-200 बेसिस प्वाइंट की वृद्धि का अनुमान है। 
  • लॉकडाउन के कारण बैंकों द्वारा दिये गए ऋण पर वसूली और उनके निस्तारण में  गिरावट आएगी, जिसके परिणामस्वरूप NPA के मामलों में वृद्धि देखने को मिल सकती है। 
  • वर्तमान में बैंकों के लिये RBI द्वारा 7 जून, 2019 को जारी परिपत्र (June 7 Circular) के कड़े नियम भी एक बड़ी समस्या हैं, जिसके अनुसार बैंकों के लिये तनाव ग्रस्त परिसंपत्तियों की पहचान कर 30 दिनों के अंदर डिफाॅल्ट की समीक्षा शुरू करना अनिवार्य है।   

NPAs से निपटने हेतु RBI के दिशा-निर्देश:

  • RBI के निर्देशों के अनुसार, ऐसे सभी ऋण जो अतिदेय (Overdue) हों पर अभी NPA न हुए हो और उनके लिये अधिस्थगन की मंज़ूरी दी गई हो, के लिये बैंकों को 10% की प्रोविज़निंग की व्यवस्था करनी चाहिये।
  • विशेषज्ञों के अनुसार, हालाँकि इन प्रयासों के माध्यम से वित्तीय वर्ष 2020-21 के दौरान नए NPAs की प्रोविज़निंग की जा सकती है परंतु ऋण भुगतान पर अधिस्थगन की अवधि के बाद परिसंपत्तियों की गुणवत्ता का प्रबंधन बैंकों के लिये महत्त्वपूर्ण विषय होगा।  

समाधान: 

  • वर्तमान आर्थिक परिस्थितियों को देखते हुए RBI द्वारा बैंकों को मौजूदा ऋणों के व्यापक पुनर्गठन और ऋण के संबंध में 90 दिन के मानक के पुनर्वर्गीकरण (Reclassification) हेतु कुछ छूट दी जानी चाहिये। 
  • विशेषज्ञों के अनुसार, RBI को यह स्पष्ट करना चाहिये कि कार्यशील पूंजी पर बढ़ा हुआ ऋण COVID से जुड़े ऋण (COVID Debt) की श्रेणी में आता है या नहीं। 

निष्कर्ष: COVID-19 कारण देश में खुदरा क्षेत्र के साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी वित्तीय तरलता में काफी कमी आई है। RBI द्वारा मार्च 2020 में ऋण भुगतान पर अधिस्थगन की घोषणा के बाद बैंकों में इस छूट का लाभ लेने वालों में खुदरा क्षेत्र और कृषि ऋण जैसे छोटे ऋण धारकों की संख्या अधिक थी। विशेषज्ञों के अनुसार लॉकडाउन के बढ़ने और औद्योगिक आपूर्ति श्रृंखला के प्रभावित होने के कारण औद्योगिक क्षेत्र के ऋण भुगतान में गिरावट आएगी और वर्तमान के कड़े नियमों के कारण यह आर्थिक चुनौती और भी जटिल हो सकती है। अतः वर्तमान परिस्थिति में RBI को उद्योगों और बैंकिंग क्षेत्र के हितों को ध्यान में रखते हुए ऋण भुगतान की बाध्यताओं और NPA से जुड़े नियमों में कुछ छूट देने पर विचार करना चाहिये।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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