भारतीय अर्थव्यवस्था
चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध
- 25 May 2022
- 19 min read
प्रिलिम्स के लिये:चीनी, खुदरा मुद्रास्फीति दर, थोक मुद्रास्फीति, कच्चे पाम तेल पर कृषि उपकर, सोयाबीन तेल, कच्चा सूरजमुखी तेल, गेहूँ निर्यात, एआईडीसी मेन्स के लिये:बढ़ती मुद्रास्फीति और मुद्दे, वृद्धि एवं विकास, मुद्रास्फीति से निपटने के लिये सरकार के कदम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सरकार ने चीनी के निर्यात पर रोक लगाने की घोषणा की।
- साथ ही उपभोक्ताओं को आवश्यक राहत प्रदान करने के लिये 20 लाख मीट्रिक टन वार्षिक कच्चे सोयाबीन और सूरजमुखी तेल के आयात पर सीमा शुल्क तथा कृषि अवसंरचना विकास उपकर (AIDC) को दो वित्तीय वर्षों (2022-23 व 2023-24) के लिये छूट दी गई।
- आयात शुल्क में छूट से घरेलू कीमतों को कम करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद मिलेगी।
कृषि अवसंरचना विकास उपकर:
- उपकर एक प्रकार का विशेष प्रयोजन कर है जो मूल कर दरों के ऊपर लगाया जाता है।
- नए AIDC का उद्देश्य कृषि बुनियादी ढाँचे के विकास पर खर्च करने के लिये धन जुटाना है।
- एआईडीसी का उपयोग न केवल उत्पादन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से बल्कि कृषि उत्पादन को कुशलतापूर्वक संरक्षित और संसाधित करने में मदद करने के उद्देश्य से कृषि बुनियादी ढाँचे में सुधार के लिये किया जाना प्रस्तावित है।
लिये गए निर्णयों का कारण:
- चीनी निर्यात पर प्रतिबंध:
- कारण:
- ये कदम "चीनी की घरेलू उपलब्धता और मूल्य स्थिरता" को बनाए रखने के लिये उठाए गए।
- यह निर्णय "चीनी के निर्यात में अभूतपूर्व वृद्धि" और देश में चीनी का पर्याप्त भंडार बनाए रखने की आवश्यकता के मद्देनज़र लिया गया था।
- यह छह साल में पहली बार है कि केंद्र चीनी निर्यात को विनियमित कर रहा है।
- छूट:
- चीनी मिलें और व्यापारी जिनके पास सरकार से विशिष्ट अनुमति प्राप्त है, वे केवल 31 अक्तूबर, 2022 तक या अगले आदेश तक चीनी (कच्ची, परिष्कृत और सफेद चीनी सहित) का निर्यात कर सकेंगे।
- इसके अतिरिक्त यह प्रतिबंध यूरोपीय संघ (ईयू) और संयुक्त राज्य अमेरिका को निर्यात के लिये लागू नहीं है।
- चीनी मिलें और व्यापारी जिनके पास सरकार से विशिष्ट अनुमति प्राप्त है, वे केवल 31 अक्तूबर, 2022 तक या अगले आदेश तक चीनी (कच्ची, परिष्कृत और सफेद चीनी सहित) का निर्यात कर सकेंगे।
- कारण:
- खाद्य तेल का शुल्क मुक्त आयात:
- भारत में खाद्य तेल की कीमतों में उछाल के मद्देनज़र इसकी घोषणा की गई थी।
- भारत दुनिया के सबसे बड़े वनस्पति तेल आयातकों में से एक है और अपनी 60% ज़रूरतों के लिए आयात पर निर्भर है।
- इस बीच यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद खाद्य तेल की कीमतों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
- भारत में सूरजमुखी का तेल मुख्य रूप से यूक्रेन और रूस से आयात किया जाता है।
- फरवरी 2022 में कच्चे पाम तेल पर कृषि उपकर को पहले के 7.5% से घटाकर 5% कर दिया गया था।
- भारत में खाद्य तेल की कीमतों में उछाल के मद्देनज़र इसकी घोषणा की गई थी।
- गंभीर मुद्रास्फीति दबावों को नियंत्रित करने के लिये:
- खाद्य, ईंधन और फसल पोषक तत्त्वों की बढ़ती कीमतों के साथ गंभीर मुद्रास्फीति दबावों को नियंत्रित करने के सरकार के प्रयासों को ध्यान में रखते हुए ये कदम उठाए गए।
- अप्रैल 2022 में खुदरा मुद्रास्फीति की दर आठ साल के उच्च स्तर 7.79% पर पहुँच गई थी, जबकि थोक मुद्रास्फीति लगातार 13 महीनों से दोहरे अंकों में रही है।
- अप्रैल 2022 के लिये तेल और वसा हेतु मुद्रास्फीति दर 17.28% दर्ज की गई नवीनतम प्रिंट के साथ खुदरा खाद्य तेल मुद्रास्फीति वर्ष 2021 के दौरान 20-35% के स्तर पर रही।
- खाद्य, ईंधन और फसल पोषक तत्त्वों की बढ़ती कीमतों के साथ गंभीर मुद्रास्फीति दबावों को नियंत्रित करने के सरकार के प्रयासों को ध्यान में रखते हुए ये कदम उठाए गए।
मुद्रास्फीति के दबाव को नियंत्रित करने हेतु अन्य उपाय:
- भारत द्वारा:
- पेट्रोल और डीज़ल के टैक्स में कटौती:
- सप्ताहांत में केंद्र ने बढ़ते मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने के अपने प्रयासों के तहत गैसोलीन, डीज़ल, कोकिंग कोल और स्टील के कच्चे माल पर कर कटौती की घोषणा की।
- ईंधन करों में कटौती से जब इसका पूरा प्रभाव दिखाई देगा अर्थात् जून 2022 में मुद्रास्फीति को सीधे लगभग 20 आधार अंकों तक कम करने में मदद मिल सकती है।
- रेपो दर में कमी:
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने मई 2022 में आउट-ऑफ-टर्न मौद्रिक नीति बैठक में रेपो दर में 40 बीपीएस की कमी करते हुए मुद्रास्फीति में खाद्य और ईंधन की उच्च कीमतों पर चिंता व्यक्त की थी।
- गेहूंँ निर्यात पर प्रतिबंध:
- इससे पहले सरकार ने गेहूंँ के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला किया था।
- भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूंँ उत्पादक है और इसने मुद्रास्फीति की चिंताओं के बावज़ूद अपनी विशाल आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा की रक्षा के लिये निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का विकल्प चुना है।
- इससे पहले सरकार ने गेहूंँ के निर्यात पर रोक लगाने का फैसला किया था।
- पेट्रोल और डीज़ल के टैक्स में कटौती:
- एशिया में:
- इंडोनेशिया का पाम ऑयल निर्यात पर प्रतिबंध:
- विश्व के सबसे बड़े उत्पादक, निर्यातक और पाम ऑयल के उपभोक्ता इंडोनेशिया ने घरेलू खाना पकाने के तेल की कमी एवं बढ़ती कीमतों को कम करने के लिये इसके व्यापार और कच्चे माल के सभी निर्यात पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की है।
- मलेशिया ने विदेशों में चिकन की बिक्री रोकी:
- मलेशिया 1 जून से महीने में होने वाले 36 लाख मुर्गियों के निर्यात को रोक देगा और उत्पादन तथा कीमतों में स्थिरता की स्थिति होने तक गेहूंँ के आयात के लिये अनुमोदित परमिट की आवश्यकता को समाप्त कर देगा।
- इंडोनेशिया का पाम ऑयल निर्यात पर प्रतिबंध:
चीनी निर्यातक के रूप में भारत की भूमिका:
- भारत दुनिया में चीनी का सबसे बड़ा उत्पादक और ब्राज़ील के बाद दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक है।
- यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब देश का निर्यात अब तक के सबसे ऊंँचे स्तर पर रहने की अपेक्षा है।
- चीनी मिलों से लगभग 82 लाख मीट्रिक टन चीनी निर्यात के लिये भेजी गई है और लगभग 78 लाख मीट्रिक टन निर्यात किया जा चुका है।
- चालू चीनी वर्ष (2021-22) में चीनी का निर्यात अब तक के उच्चतम स्तर पर है।
- वर्ष के अंत में चीनी का क्लोजिंग स्टॉक 60-65 लाख मीट्रिक टन रहता है जो घरेलू उपयोग के लिये आवश्यक लगभग तीन महीने के स्टॉक के बराबर है।
भारत में खाद्य तेल अर्थव्यवस्था के बारे में:
- इसकी दो प्रमुख विशेषताएंँ हैं जिन्होंने इस क्षेत्र के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
- पहला 1986 में तिलहन पर प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना थी, जिसे बाद में वर्ष 2014 में तिलहन और पाम ऑयल (NMOOP) पर राष्ट्रीय मिशन में बदल दिया गया था।
- इसके अलावा इसे NFSM (राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन) में शामिल कर दिया गया था।
- इससे तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के सरकार के प्रयासों को बल मिला।
- दूसरी प्रमुख विशेषता जिसका खाद्य तिलहन/तेल उद्योग की वर्तमान स्थिति पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, वह है उदारीकरण का कार्यक्रम, जो खुले बाज़ार को अधिक स्वतंत्रता देता है और सुरक्षा तथा नियंत्रण के बज़ाय स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा एवं स्व-नियमन को प्रोत्साहित करता है।
- पहला 1986 में तिलहन पर प्रौद्योगिकी मिशन की स्थापना थी, जिसे बाद में वर्ष 2014 में तिलहन और पाम ऑयल (NMOOP) पर राष्ट्रीय मिशन में बदल दिया गया था।
- ‘पीली क्रांति’ भारत में चलाई गई प्रमुख क्रांतियों में से एक है जिसे घरेलू मांग को पूरा करने के लिये देश में खाद्य तिलहन के उत्पादन को बढ़ाने के लिये शुरू किया गया था।
- सरकार ने तिलहन के लिये खरीफ रणनीति 2021 भी शुरू की है।
- इस रणनीति के माध्यम से तिलहन के अंतर्गत अतिरिक्त 6.37 लाख हेक्टेयर क्षेत्र लाया जाएगा और साथ ही 120.26 लाख क्विंटल तिलहन तथा 24.36 लाख टन खाद्य तेल के उत्पादन का अनुमान है।
- भारत में आमतौर पर उपयोग किये जाने वाले खाद्य तेल: देश में खपत होने वाले प्रमुख खाद्य तेल सरसों, सोयाबीन, मूंँगफली, सूरजमुखी, तिल का तेल, नाइजर बीज, कुसुम बीज, अरंडी और अलसी (प्राथमिक स्रोत) तथा नारियल, ताड़ का तेल, बिनौला, चावल की भूसी, विलायक निकाले गए तेल, पेड़ व वन मूल तेल।
आगे की राह
- हालांँकि इस निर्णय का अर्थव्यवस्था में कीमतों के दबाव पर एक मध्यम प्रभाव पड़ेगा, चिंता यह है कि मुद्रास्फीति की जड़ें मज़बूत हो गई हैं तथा इसके RBI के मध्यम अवधि के मुद्रास्फीति लक्ष्य 2-6% से ऊपर रहने की संभावना है।
- आयात नीति में एकरूपता होनी चाहिये क्योंकि यह अग्रिम रूप से उचित बाज़ार संकेत प्रदान करती है। आयात शुल्क के माध्यम से हस्तक्षेप करना कोटा से बेहतर है जिससे अधिक हानि होती है।
- यह उपग्रह रिमोट सेंसिंग और भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) तकनीकों का उपयोग करके अधिक सटीक फसल पूर्वानुमान की भी मांग करता है ताकि फसल वर्ष में बहुत पहले से कमी/अधिशेष को इंगित किया जा सके।
प्रश्न. कीमतों के सामान्य स्तर में वृद्धि के कारण हो सकती है: (2013)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: d
प्रश्न. निम्नलिखित में से किस एक का अपने प्रभाव में सर्वाधिक स्फीतिकारी होने की संभावना है? (2013) (A) लोक ऋण की चुकौती उत्तर: D व्याख्या:
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2013)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (A) केवल 1 उत्तर:A व्याख्या:
प्रश्न. भारत में मुद्रास्फीति के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा सही है? (2015) (A) भारत में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना केवल भारत सरकार की ज़िम्मेदारी है उत्तर: C व्याख्या:
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