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ऑरोरा यानी ध्रुवीय ज्योति की उत्पत्ति की वजह पता चली

  • 17 Feb 2018
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?
पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर ऑरोरा यानी ध्रुवीय ज्योति की उत्पत्ति की परिघटना के पीछे छुपे वैज्ञानिक रहस्यों को सुलझा लिया गया है। अब तक इस घटना के भौतिक कारणों का पता नहीं लगाया जा सका था, लेकिन जापान के यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के परिणामस्वरूप इस परिघटना के पीछे छुपे भौतिक कारणों का पता लगाने में सफलता हासिल कर लिया है।

ऑरोरा है क्या?

  • सामान्यतौर पर रात के समय या सुबह होने से ठीक पहले पृथ्वी के दोनों ध्रुवों अर्थात दक्षिणी और उत्तरी ध्रुव के आसमान में हरे, लाल और नीले रंग के मिश्रण से उत्पन्न इस प्रकाश को ऑरोरा कहते हैं। 
  • विभिन्न प्रकार के ऑरोरा में से कुछ सूर्योदय से पहले भी दिखाई देते हैं।
  • इस अद्भुत प्राकृतिक नजारे को विश्व के अजूबों में गिना जाता है। 
  • ध्रुवों के पास ही इनकी स्थानीय उत्पत्ति की वज़ह से इन्हें ध्रुवीय ज्योति, उत्तर ध्रुवीय ज्योति या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति कहा जाता है।
  • उत्तरी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को सुमेरु ज्योति (Aurora Borealis) या उत्तर ध्रुवीय ज्योति के नाम से जाना जाता है।
  • वहीं, दक्षिणी अक्षांशों की ध्रुवीय ज्योति को कुमेरु ज्योति (Aurora Australis) या दक्षिण ध्रुवीय ज्योति के नाम से जाना जाता है।

उत्पत्ति के पीछे भौतिक कारण

  • वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन में पाया है कि ऑरोरा की उत्पत्ति इलेक्ट्रॉन और प्लाज़्मा तरंगों के परस्पर मिलने से होती है।
  • इलेक्ट्रॉन और प्लाज़्मा तरंगों के परस्पर मिलने की यह प्रक्रिया पृथ्वी के बाहरी वातावरण के मैग्नेटोस्फेयर में होती है।
  • मैग्नेटोस्फेयर के इलैक्ट्रिक कण ग्रह के चुम्बकीय क्षेत्र से नियंत्रित होते हैं।

प्रक्रिया

  • भौतिक कारण का पता लगाने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार, जैसे ही मैग्नेटोस्फेयर में परिवर्तन होता है वैसे ही सौर वायु ऊर्जा निकलती है। इस सौर वायु ऊर्जा की वजह से ऑरोरल सबस्टॉर्म उत्पन्न होता है। 
  • मैग्नेटोस्फेयर में आए परिवर्तन से खास किस्म की प्लाज़्मा तरंगें निकलती हैं, जिन्हें कोरस तरंग भी कहा जाता है।
  • इन तरंगों से पृथ्वी के बाहरी वातावरण में इलेक्ट्रॉन की बारिश होती है जिस वजह से ध्रुवों पर कई रंगों के मिश्रण से रंगीन प्रकाश की उत्पत्ति होती है।

पता कैसे लगाया गया?

  • पृथ्वी के बाहरी वातावरण में इलेक्ट्रॉन की बारिश का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खास किस्म का सेंसर तैयार किया था। 
  • सेंसर से लैस यंत्र को एक्स्प्लोरेशन ऑफ एनरजाइज़ेशन एंड रेडीएशन इन जियोस्पेस (ईआरजी) नामक सेटेलाइट के माध्यम से अंतरिक्ष में भेजा गया था।

इस अध्ययन के अतिरिक्त लाभ
जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि सेटेलाइट के माध्यम से एकत्रित आँकड़ों का इस्तेमाल करते हुए प्लाज़्मा भौतिकी से जुड़े कई तथ्यों का पता लगाया जा सकेगा।

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