ज्ञानवापी मस्जिद पर ASI की सर्वेक्षण रिपोर्ट | 30 Jan 2024
प्रिलिम्स के लिये:ज्ञानवापी मस्जिद पर एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट, भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI), ज्ञानवापी मस्जिद, कार्बन डेटिंग, उपासना स्थल अधिनियम, 1991 मेन्स के लिये:ज्ञानवापी मस्जिद पर ASI सर्वेक्षण रिपोर्ट, प्राचीन से आधुनिक काल तक कला रूपों, साहित्य और वास्तुकला के मुख्य पहलू। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India- ASI) ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण किया, जहाँ हिंदू देवताओं की मूर्तियों सहित कुल 55 पाषाण मूर्तियाँ मिलीं।
- ASI की रिपोर्ट के अनुसार, "ऐसा लगता है कि 17वीं शताब्दी में औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान एक मंदिर को नष्ट कर दिया गया था और इसके कुछ हिस्से को संशोधित किया गया था तथा मौजूदा संरचना में इनका पुन: उपयोग किया गया था।"
ASI रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- खंडित मूर्तियों की खोज:
- सर्वेक्षण में मस्जिद परिसर के भीतर हनुमान, गणेश और नंदी सहित हिंदू देवताओं की मूर्तियों के अवशेष सामने आए।
- विभिन्न मूर्तियाँ क्षतिग्रस्त अवस्था में पाई गईं, जिनमें शिवलिंग, विष्णु, गणेश, कृष्ण और हनुमान की मूर्तियाँ शामिल थीं।
- योनिपट्ट और शिव लिंग:
- सर्वेक्षण के दौरान एक शिवलिंग का आधार/अधोभाग और कई योनिपट्ट पाए गए।
- एक शिवलिंग भी प्राप्त हुआ जिसका आधार भाग गायब था।
- भारतीय शिलालेख:
- देवनागरी, ग्रंथ, तेलुगु और कन्नड़ लिपियों में लिखे गए 32 शिलालेख पाए गए।
- ये वास्तव में पहले से मौजूद एक हिंदू मंदिर के पत्थर पर उत्कीर्णित शिलालेख हैं जिनका मौजूदा ढाँचे के निर्माण, मरम्मत के दौरान पुन: उपयोग किया गया है।
- संरचना में प्राचीन शिलालेखों के पुन: उपयोग से पता चलता है कि पहले की संरचनाओं को नष्ट कर दिया गया था और उनके हिस्सों को मौजूदा संरचना के निर्माण एवं मरम्मत में पुन: उपयोग किया गया था।
- स्वास्तिक और त्रिशूल के चिह्न:
- संरचना पर स्वास्तिक और त्रिशूल समेत अन्य चिह्न पाए गए।
- स्वास्तिक को विश्व के सबसे प्राचीन प्रतीकों में से एक माना जाता है और इसका उपयोग सभी प्राचीन सभ्यताओं में किया गया है।
- त्रिशूल (भगवान शिव का विशिष्ट शस्त्र) का प्रतीक आमतौर पर हिंदुओं द्वारा प्रमुख प्रतीकों में से एक के रूप में उपयोग किया जाता है, विशेष रूप से शैव और शाक्तों द्वारा भी।
- संरचना पर स्वास्तिक और त्रिशूल समेत अन्य चिह्न पाए गए।
- फारसी शिलालेख वाले सिक्के और बलुआ पत्थर की शिलापट्ट:
- सर्वेक्षण के दौरान सिक्के, फारसी में उत्कीर्णित एक बलुआ पत्थर का स्लैब/शिलापट्ट और अन्य कलाकृतियों जैसी वस्तुएँ मिलीं।
- शिलापट्टों पर फारसी में शिलालेख पाए गए, जो 17वीं शताब्दी में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के शासनकाल के दौरान मंदिर के विध्वंस का विवरण प्रदान करते हैं।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) क्या है?
- संस्कृति मंत्रालय के तहत ASI देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम,1958 के तहत देश के भीतर सभी पुरातात्त्विक उपक्रमों की देख-रेख करता है।
- यह 3,650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसकी गतिविधियों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज और उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण तथा रखरखाव आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को “भारतीय पुरातत्त्व का जनक” भी कहा जाता है।
ज्ञानवापी मस्जिद में सर्वेक्षण में किस विधि का उपयोग किया गया था?
- भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद का एक विस्तृत गैर-आक्रामक सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया, ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि मस्जिद का निर्माण पहले से मौजूद मंदिर की संरचना के ऊपर किया गया अथवा नहीं।
- भारत में ऐसे कई स्थल हैं जहाँ खुदाई की अनुमति नहीं है, ऐसे में इन निर्मित संरचनाओं के आतंरिक भाग की जाँच हेतु प्रयोग में लायी जाने वाली विधि गैर-आक्रामक विधि कहलाती है।
- विधियों के प्रकार:
- सक्रिय विधि: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक की सहायता से विद्युत धाराओं को प्रवाहित कर निर्दिष्ट स्थान के घनत्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग जैसे भौतिक गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है।
- भूकंपीय तकनीक: उपसतही संरचनाओं का अध्ययन करने के लिये शॉक वेव्स का उपयोग।
- विद्युत चुंबकीय विधियाँ: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक से प्राप्त विद्युत चुंबकीय प्रतिक्रियाओं की माप।
- निष्क्रिय तरीके: मौजूदा भौतिक गुणों की जाँच करने में सहायक।
- मैग्नेटोमेट्री: यह नीचे दबी हुई संरचनाओं के कारण उत्पन्न होने वाली चुंबकीय विसंगतियों का पता लगाने में मदद करती है।
- गुरुत्वाकर्षण सर्वेक्षण: यह विधि उपसतही विशेषताओं के कारण उत्पन्न होने वाले गुरुत्वाकर्षण बल भिन्नता को मापने में सहायता करती है।
- ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार(GPR):
- ज़मीन के नीचे पड़े/दबे पुरातात्त्विक विशेषताओं का 3D मॉडल बनाने के लिये पुरातात्त्विक विभाग द्वारा GPR तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
- उपसतह से वापसी संकेतों के समय और परिमाण को रिकॉर्ड करने के लिये GPR एक सरफेस एंटीना के माध्यम से एक संक्षिप्त रडार आवेग प्रसारित करता है।
- रडार किरणें एक शंकु की आकार में फैलती हैं, जिससे बनने वाले प्रतिबिंब प्रत्यक्ष तौर पर भौतिक आयामों के अनुरूप नहीं होते हैं।
- कार्बन डेटिंग:
- कार्बन-14 (C-14) के रेडियोधर्मी क्षय के आधार पर कार्बनिक पदार्थों की आयु का पता करने के लिये व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली विधि हैं।
- सक्रिय विधि: इलेक्ट्रोमैग्नेटिक की सहायता से विद्युत धाराओं को प्रवाहित कर निर्दिष्ट स्थान के घनत्व, विद्युत प्रतिरोध और तरंग वेग जैसे भौतिक गुणों का अनुमान लगाया जा सकता है।
क्या है ज्ञानवापी मस्जिद विवाद?
- मंदिर का विध्वंस:
- यह प्रचलित मान्यता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण वर्ष 1669 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर करवाया था।
- साकी मुस्तैद खान की मासीर-ए-आलमगिरी, एक फारसी भाषा का इतिहास (वर्ष 1707 में औरंगज़ेब की मृत्यु के तुरंत बाद लिखा गया) में यह भी उल्लेख किया गया है कि औरंगज़ेब ने वर्ष 1669 में गवर्नर अबुल हसन को आदेश देकर मंदिर को ध्वस्त कर दिया था।
- ASI की रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्जिद के एक कमरे के अंदर पाए गए अरबी-फारसी शिलालेख में उल्लेख है कि मस्जिद का निर्माण औरंगज़ेब के 20वें शाही वर्ष (1676-77 ईस्वी) में किया गया था।
- इतिहासकार ऑड्रे ट्रुश्के (Historian Audrey Truschke) ने लिखा है कि औरंगज़ेब ने वर्ष 1669 में बनारस के विश्वनाथ मंदिर (विश्वेश्वर) का बड़ा हिस्सा ढहा दिया था। यह मंदिर अकबर के शासनकाल के दौरान राजा मान सिंह द्वारा बनवाया गया था, जिनके परपोते जय सिंह ने वर्ष 1666 में शिवाजी को मुगल दरबार से भागने में मदद की थी।
- यह प्रचलित मान्यता है कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण वर्ष 1669 में मुगल शासक औरंगज़ेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़कर करवाया था।
- विधिक लड़ाई:
- ज्ञानवापी मस्जिद का मामला वर्ष 1991 से न्यायालय के अधीन है जब काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के वंशज सहित तीन लोगों ने वाराणसी के सिविल न्यायाधीश के न्यायालय में मुकदमा दायर किया था तथा यह दावा किया था कि औरंगज़ेब ने भगवान विश्वेश्वर के मंदिर को ध्वस्त कर दिया था और उस पर एक मस्जिद का निर्माण किया इसलिये यह भूमि उन्हें वापस दी जानी चाहिये।
- 18 अगस्त 2021 को वाराणसी के संबद्ध न्यायालय में पाँच महिलाओं ने याचिका दायर कर माता शृंगार गौरी के मंदिर में उपासना करने की मांग की जिसे स्वीकार करते हुए न्यायालय ने माता शृंगार गौरी मंदिर की वर्तमान स्थिति जानने के लिये एक आयोग का गठन किया।
- वाराणसी कोर्ट ने आयोग से माता शृंगार गौरी की मूर्ति तथा ज्ञानवापी परिसर की वीडियोग्राफी कर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा था।
- हिंदू पक्ष ने साक्ष्य के तौर पर ज्ञानवापी परिसर का विस्तृत नक्शा न्यायालय के समक्ष पेश किया। यह नक्शा मस्जिद के प्रवेश द्वार के समीप स्थित हिंदू देवता मंदिरों के साथ-साथ विश्वेश्वर मंदिर, ज्ञानकूप (मुक्ति मंडप), प्रमुख नंदी प्रतिमा तथा व्यास परिवार के तहखाने जैसे स्थलों की पुष्टि करता है।
- मुस्लिम पक्ष ने दलील दी कि उपासना स्थल अधिनियम, 1991 के तहत इस विवाद पर कोई निर्णय नहीं दिया जा सकता।
- उपासना स्थल (विशेष उपबंध) अधिनियम, 1991 की धारा 3 के तहत किसी उपासना स्थल को एक अलग धार्मिक संप्रदाय अथवा एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक पृथक वर्ग के उपासना स्थल में परिवर्तित करना निषिद्ध है।
- वर्तमान में ज्ञानवापी मामला न्यायपालिका के समक्ष लंबित है।
उपासना स्थल अधिनियम 1991 के प्रावधान क्या हैं?
- धर्मांतरण पर रोक (धारा 3):
- यह धारा किसी भी उपासना स्थल के परिवर्तन पर रोक लगाने का प्रावधान करती है अर्थात् कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के उपासना स्थल को उसी धार्मिक संप्रदाय के किसी भिन्न वर्ग या किसी भिन्न धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी वर्ग के उपासना स्थल में परिवर्तित नहीं करेगा।
- धार्मिक प्रकृति का रखरखाव (धारा 4-1):
- यह घोषणा करती है कि 15 अगस्त, 1947 तक अस्तित्व में आए उपासना स्थलों की धार्मिक प्रकृति पूर्ववत बनी रहेगी।
- लंबित मामलों का निवारण (धारा 4-2):
- इसमें कहा गया है कि 15 अगस्त, 1947 को मौजूद किसी भी उपासना स्थल की धार्मिक प्रकृति के परिवर्तन के संबंध में किसी भी न्यायालय के समक्ष लंबित कोई भी मुकदमा या कानूनी कार्यवाही समाप्त हो जाएगी और कोई नया मुकदमा या कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जाएगी।
- अधिनियम के अपवाद (धारा 5):
- यह अधिनियम प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों तथा प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्त्व स्थल अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाले अवशेषों पर लागू नहीं होता है।
- वे मामले भी इसमें शामिल नहीं हैं जो पहले ही लागू हो चुके हैं या सुलझे हुए हैं और इस तरह के विवादों में सिद्धांत लागू होने से पहले तय किये गए रूपांतरण शामिल हैं।
- इस अधिनियम के दायरे के अंतर्गत परिसर, अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के नाम से पहचाने जाने वाले विशिष्ट उपासना स्थल तक विस्तारित नहीं है तथा इसमें स्थल से जुड़ी कानूनी कार्यवाही भी शामिल है।
- दंड (धारा 6):
- यह धारा अधिनियम का उल्लंघन करने पर अधिकतम तीन वर्ष की कैद और ज़ुर्माने सहित दंड निर्दिष्ट करती है।