आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों की संख्या में वृद्धि | 21 Sep 2020
प्रिलिम्स के लियेजल जीवन मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम, राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उप-मिशन मेन्स के लियेभारत के जल स्रोतों में बढ़ता आर्सेनिक एवं फ्लोराइड का स्तर |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संसद में साझा किये गए आँकड़ों के अनुसार, पिछले पाँच वर्षों (2015-20) में भारत में आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों की संख्या में 145% की वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु:
- वर्ष 2015 में भारत में 1800 आर्सेनिक-प्रभावित बस्तियाँ थीं। जिनकी संख्या सितंबर, 2020 तक बढ़कर 4421 हो गई।
- बस्तियाँ या वास स्थान (Habitations), एक गाँव में सामुदायिक स्तर पर परिवारों का समूह होती हैं। इसे सेटेलमेंट (Settlements) का सबसे छोटा स्तर कहा जाता है जिसमें घरों की संख्या 10-100 के बीच हो सकती है।
- प्रभावित क्षेत्र: आर्सेनिक से प्रभावित अधिकांश बस्तियाँ गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदी के जलोढ़ मैदानों में अवस्थित हैं। अर्थात् असम, बिहार, पश्चिम बंगाल, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में।
- प्रभावित वास स्थानों के मामले में असम (1853) पहले स्थान पर, जबकि पश्चिम बंगाल (1383) दूसरे स्थान पर है।
- झारखंड, जहाँ वर्ष 2015 में ऐसा कोई वास स्थान नहीं था वहाँ वर्तमान में आर्सेनिक प्रभावित बस्तियों की संख्या 2 है।
- हालाँकि, कर्नाटक में वर्ष 2015 में आर्सेनिक प्रभावित वास स्थानों की संख्या 9 थीं, वहाँ वर्ष 2020 में कोई भी ऐसा वास स्थान नहीं है।
- फ्लोराइड प्रभावित वासस्थानों की संख्या में कमी:
- फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों की संख्या वर्ष 2015 में 12727 से घटकर सितंबर, 2020 तक 5485 हो गई है।
- फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों की संख्या के मामले में राजस्थान (2956) पहले स्थान पर जबकि बिहार (861) दूसरे स्थान पर था।
- फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों की संख्या वर्ष 2015 में 12727 से घटकर सितंबर, 2020 तक 5485 हो गई है।
- जब तक कि नल कनेक्शन के माध्यम से पेयजल की आपूर्ति नहीं की जाती है तब तक जल जीवन मिशन (Jal Jeevan Mission- JJM) के तहत, पेयजल एवं खाना पकाने की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये सामुदायिक जल शोधन संयंत्रों (Community Water Purification Plants- CWPP) के माध्यम से ऐसी गुणवत्ता (आर्सेनिक एवं फ्लोराइड) प्रभावित बस्तियों को प्राथमिकता दी गई है।
- जल जीवन मिशन (JJM) को वर्ष 2019 में वर्ष 2024 तक प्रत्येक घर में पाइप के द्वारा जलापूर्ति करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था।
- जल जीवन मिशन (JJM) के तहत, राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को आवंटन राशि का 2% तक का उपयोग जल गुणवत्ता जाँच एवं निगरानी (Water Quality Monitoring & Surveillance- WQM & S) गतिविधियों के लिये किया जा सकता है।
- केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) के तहत एक नया उप कार्यक्रम राष्ट्रीय जल गुणवत्ता उप-मिशन (National Water Quality Sub-Mission- NWQSM) वर्ष 2017 में शुरू किया गया था ताकि लगभग 28000 आर्सेनिक एवं फ्लोराइड प्रभावित वास स्थानों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की तत्काल आवश्यकता को पूरा किया जा सके।
- NWQSM का लक्ष्य मार्च 2021 तक स्थायी आधार पर स्वच्छ पेयजल के साथ आर्सेनिक/फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों में सभी ग्रामीण आबादी को कवर करना है।
- NWQSM को 25000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया था।
- NRDWP को वर्ष 2009 में शुरू किया गया था जहाँ जल की उपलब्धता को स्थिरता, पर्याप्तता, सुविधा, सामर्थ्य एवं इक्विटी के संदर्भ में सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया था।
- NRDWP एक केंद्र प्रायोजित योजना है जिसमें केंद्र एवं राज्यों के बीच राशि का वितरण 50:50 के आधार पर निर्धारित किया गया है।
- NWQSM का लक्ष्य मार्च 2021 तक स्थायी आधार पर स्वच्छ पेयजल के साथ आर्सेनिक/फ्लोराइड प्रभावित बस्तियों में सभी ग्रामीण आबादी को कवर करना है।
आर्सेनिक विषाक्तता:
- आर्सेनिक प्राकृतिक रूप से कई देशों की भू-सतह एवं भू-जल में उच्च स्तर पर मौज़ूद है। यह अकार्बनिक रूप में अत्यधिक विषाक्त होता है।
- पीने, भोजन तैयार करने एवं खाद्य फसलों की सिंचाई के लिये उपयोग किये जाने वाले दूषित जल में आर्सेनिक स्तर सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये सबसे बड़ा खतरा है।
- पेयजल एवं भोजन के उपयोग में लाये जाने वाले जल में लंबे समय तक आर्सेनिक की मौजूदगी से कैंसर, त्वचा रोग, हृदय रोग एवं मधुमेह हो सकता है।
- पीने के पानी की गुणवत्ता के लिये वर्ष 2011 के विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, भू-जल में आर्सेनिक की वैध सीमा 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर है।
- हालाँकि, भारत में पेयजल की वैध सीमा को हाल ही में 0.05 मिलीग्राम प्रति लीटर से 0.01 मिलीग्राम प्रति लीटर तक संशोधित किया गया है।
फ्लोराइड विषाक्तता:
- अत्यधिक फ्लोराइड का उपभोग स्वाभाविक रूप से समृद्ध भूजल की अत्यधिक खपत के कारण होता है विशेष रूप से गर्म जलवायु में जहाँ जल की खपत अधिक होती है या जहाँ उच्च फ्लोराइडयुक्त जल का उपयोग भोजन की तैयारी या फसलों की सिंचाई में किया जाता है।
- अत्यधिक फ्लोराइड के उपभोग से डेंटल फ्लोरोसिस (दाँतों की सड़न) या क्रिपलिंग स्कल्टन फ्लोरोसिस (Crippling Skeletal Fluorosis) हो सकता है जो अस्थि विकृति से संबंधित है।