इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली अपडेट्स


शासन व्यवस्था

भ्रष्टाचार नियंत्रण कानून के दायरे में मानद विश्वविद्यालय

  • 29 Apr 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:  

मानद विश्वविद्यालय, भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम 

मेन्स लिये: 

भारतीय लोकतंत्र में उच्चतम न्यायलय की भूमिका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि किसी भी ‘मानद विश्वविद्यालय’ (Deemed University) में रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार के मामलों की सुनवाई ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम (Prevention of Corruption Act), 1988’ के तहत की जा सकती है।

मुख्य बिंदु:

  • उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया कि मानद विश्वविद्यालयों से जुड़े हुए व्यक्ति, अधिकारी आदि ‘लोक सेवक' (Public Servant) की परिभाषा के तहत आते हैं और ऐसे लोगों पर भ्रष्टाचार विरोधी कानून के तहत सुनवाई कर सजा दी जा सकती है।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, हालाँकि पारंपरिक रूप से मानद विश्वविद्यालयों के अधिकारियों को ‘लोक सेवक’ के रूप में नहीं देखा जाता परंतु वे बड़े पैमाने पर राज्य, जनता और समुदाय के हितों में कार्य करते हैं।
  • मानद विश्वविद्यालय ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम, 1988’ की धारा-2(c)(xi) के तहत ‘विश्वविद्यालय’ (की परिभाषा/संज्ञा) के दायरे में आते हैं।  
  • ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम (University Grants Commission Act), 1956’ के तहत एक मानद संस्थान के भी किसी विश्वविद्यालय की तरह ही समान सार्वजनिक कर्त्तव्य हैं। जैसे- सार्वजनिक रूप से स्वीकार्य शैक्षिक डिग्री देना आदि।  
  • उच्चतम न्यायालय के अनुसार, ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम, 1988’ का उद्देश्य पारंपरिक रूप से ‘लोक सेवक’ के रूप में पहचाने जाने वाले लोगों से ध्यान हटाकर उन लोगों की तरफ ध्यान दिलाना था जो वास्तव में ‘लोक सेवा’ के कार्यों से जुड़े हुए हैं।

मानद विश्वविद्यालय:   

  • ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956’ की धारा-3 के तहत केंद्र सरकार द्वारा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सलाह पर किसी उच्च शिक्षण संस्थान (विश्वविद्यालय को छोड़कर) को मानद विश्वविद्यालय की संज्ञा दी जा सकती है।
  • मानद विश्वविद्यालय घोषित किये जाने की स्थिति में ‘विश्वविद्यालय अनुदान आयोग अधिनियम, 1956’ के तहत ‘विश्वविद्यालय’ पर लगने वाले सभी उपबंध संबंधित संस्थान पर भी लागू होंगे।

लोक सेवक:   

  • ‘भ्रष्टाचार नियंत्रण अधिनियम, 1988’ की धारा 2(c)(xi) में किसी विश्वविद्यालय का कुलपति, शासकीय समिति का सदस्य, प्राध्यापक, रीडर, प्रवक्ता या कोई अन्य अध्यापक अथवा कर्मचारी आदि को  लोक सेवक की परिभाषा के अंतर्गत रखा गया है।

निष्कर्ष:    

हाल के कुछ वर्षों में देश में मानद विश्वविद्यालयों की संख्या में तेज़ी से वृद्धि हुई है। यह भी देखा गया है कि कई मामलों में मानद विश्वविद्यालय पारंपरिक विश्वविद्यालयों की जटिल कार्यप्रणाली के विपरीत आसानी से छात्रों और नियोक्ताओं की आवश्यकता के अनुरूप स्वयं को ढालने में अधिक सफल रहे हैं। हालाँकि ऐसे संस्थानों से जुड़े कानूनों की व्याख्या में स्पष्टता न होने के कारण कुछ संस्थानों ने इसका गलत लाभ उठाने का प्रयास भी किया है। ऐसे में उच्चतम न्यायलय के हालिया फैसले के बाद ‘मानद विश्वविद्यालयों’ की कार्यप्रणाली में अधिक पारदर्शिता लाने तथा उनकी बेहतर निगरानी करने में सफलता प्राप्त होगी।

स्रोत: द हिंदू

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2