भारत की शहर-प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण, 2023 | 03 Nov 2023
प्रिलिम्स के लिये:भारत की शहर-प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण 2023, स्थानीय सरकारें, पंचायती राज संस्थान (PRI), 74वाँ संशोधन अधिनियम। मेन्स के लिये:भारत की शहर-प्रणालियों का वार्षिक सर्वेक्षण 2023, विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप व उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे। |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
एक गैर-लाभकारी संस्थान जनाग्रह सेंटर फॉर सिटिज़नशिप एंड डेमोक्रेसी द्वारा प्रकाशित भारत के सिटी-सिस्टम्स (ASICS) 2023 का वार्षिक सर्वेक्षण भारतीय शहरों में स्थानीय सरकारों के समक्ष आने वाली चुनौतियों और बाधाओं पर प्रकाश डालता है।
ASICS रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- पूर्वी राज्यों में बेहतर शहरी कानून:
- पूर्वी राज्यों, जिनमें बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल शामिल हैं, में दक्षिणी राज्यों के बाद अपेक्षाकृत बेहतर शहरी कानून मौजूद हैं।
- पारदर्शिता की कमी:
- शहरी विधान सार्वजनिक डोमेन में सुलभ प्रारूप में उपलब्ध नहीं हैं। केवल 49% राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों ने संबंधित राज्य शहरी विभागों की वेबसाइटों पर नगरपालिका कानून प्रदर्शित किये हैं।
- सक्रिय मास्टर प्लान का अभाव:
- भारत में राज्यों की लगभग 39% राजधानियों में सक्रिय मास्टर प्लान का अभाव है।
- स्थानीय सरकारों का वित्त पर सीमित नियंत्रण:
- भारतीय शहरों में अधिकांश स्थानीय सरकारें वित्तीय रूप से अपनी संबंधित राज्य सरकारों पर निर्भर हैं, जिससे उनकी वित्तीय स्वायत्तता सीमित हो गई है।
- भारतीय शहरों में स्थानीय सरकारों का कराधान, उधार और बजट अनुमोदन सहित प्रमुख वित्तीय मामलों पर सीमित नियंत्रण है, ज़्यादातर मामलों में राज्य सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
- केवल असम ही अपनी शहरी सरकारों को सभी प्रमुख कर वसूलने का अधिकार देता है। पाँच राज्यों- बिहार, झारखंड, ओडिशा, मेघालय और राजस्थान को छोड़कर- अन्य सभी की शहरी सरकारों को धनराशि उधार लेने से पूर्व राज्य से स्वीकृति लेनी होगी।
- शहरी श्रेणियों में विषमता:
- विभिन्न शहरी श्रेणियों में वित्त पर प्रभाव और नियंत्रण के स्तर में असमानताएँ हैं, जिनमें मेगासिटी (>4 मिलियन जनसंख्या), बड़े शहर (1-4 मिलियन), मध्यम शहर (0.5 मिलियन-1 मिलियन), छोटे शहर (<0.5 मिलियन) शामिल हैं।
- मेगासिटी में मेयर सीधे नहीं चुने जाते हैं और उनका कार्यकाल पाँच वर्ष का नहीं होता है, जबकि छोटे शहरों में मेयर सीधे चुने जाते हैं लेकिन शहर के वित्त पर उनका अधिकार सीमित होता है।
- कर्मचारियों की नियुक्तियों पर सीमित अधिकार:
- मेयर और नगर परिषदों के पास वरिष्ठ प्रबंधन टीमों सहित कर्मचारियों की नियुक्ति तथा पदोन्नति से संबंधित सीमित अधिकार हैं, जिससे जवाबदेही तथा कुशल प्रशासन में चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं।
- वित्तीय पारदर्शिता चुनौतियाँ:
- त्रैमासिक वित्तीय लेखापरीक्षित विवरणों की कमी और वार्षिक लेखापरीक्षित वित्तीय विवरणों के सीमित प्रसार के कारण भारतीय शहरों को वित्तीय पारदर्शिता में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह समस्या बड़े शहरों में अधिक है।
- देश के केवल 28% शहर ही अपने वार्षिक लेखापरीक्षित वित्तीय विवरण प्रसारित करते हैं। यदि केवल मेगासिटी पर विचार किया जाए तो यह संख्या और भी कम होकर 17% हो जाती है।
- जबकि बड़े शहर अपने शहर का बजट प्रकाशित करते हैं, छोटे शहर पिछड़ जाते हैं और उनमें से केवल 40% -65% ही उस जानकारी को प्रकाशित करते हैं।
- स्टाफ की कमी:
- भारत के नगर निगमों में 35% पद खाली हैं। नगर पालिकाओं में 41% पद रिक्त होने और नगर पंचायतों में 58% पद रिक्त होने से रिक्ति उत्तरोत्तर बदतर होती जा रही है।
- वैश्विक महानगरों के साथ तुलना:
- न्यूयॉर्क, लंदन और जोहान्सबर्ग जैसे वैश्विक महानगरों के साथ तुलना करने पर प्रति एक लाख आबादी पर शहर के कर्मचारियों की संख्या तथा इन शहरों को दी गई प्रशासनिक शक्तियों में महत्त्वपूर्ण अंतर दिखाई देता है।
- प्रत्येक एक लाख की आबादी पर न्यूयॉर्क में 5,906 और लंदन में 2,936 शहरी कर्मचारी हैं, जबकि बेंगलुरु में इनकी संख्या केवल 317, हैदराबाद में 586 और मुंबई में 938 है। न्यूयॉर्क जैसे शहरों को भी कर लगाने, अपने स्वयं के बजट को मंज़ूरी देने, निवेश करने और अनुमोदन के बिना उधार लेने का अधिकार दिया गया है।
स्थानीय सरकार:
- परिचय:
- स्थानीय स्वशासन ऐसे स्थानीय निकायों द्वारा स्थानीय मामलों का प्रबंधन है जो स्थानीय लोगों द्वारा चुने गए हैं।
- स्थानीय स्वशासन में ग्रामीण और शहरी दोनों सरकारें शामिल हैं।
- यह सरकार का तृतीय स्तर है।
- इस संचालन में 2 प्रकार की स्थानीय सरकारें हैं - ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें और शहरी क्षेत्रों में नगर पालिकाएँ।
- ग्रामीण स्थानीय सरकारें:
- पंचायती राज संस्था (PRI) भारत में ग्रामीण स्थानीय स्वशासन की एक प्रणाली है।
- ज़मीनी स्तर पर लोकतंत्र का निर्माण करने के लिये 73वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1992 के माध्यम से PRI को संवैधानिक बनाया गया और देश में ग्रामीण विकास का कार्य सौंपा गया।
- शहरी स्थानीय सरकारें:
- शहरी स्थानीय सरकारों की स्थापना लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण के उद्देश्य से की गई थी।
- भारत में आठ प्रकार की शहरी स्थानीय सरकारें हैं- नगर निगम, नगर पालिका, अधिसूचित क्षेत्र समिति, शहरी क्षेत्र समिति, छावनी बोर्ड, टाउनशिप, पोर्ट ट्रस्ट तथा विशेष प्रयोजन एजेंसी।
- शहरी स्थानीय सरकार से संबंधित 74वाँ संशोधन अधिनियम पी.वी. नरसिम्हा राव की सरकार के शासनकाल के दौरान पारित किया गया था। यह 1 जून, 1993 को लागू हुआ।
- इसमें भाग IX-A को जोड़ा गया और इसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक प्रावधान शामिल हैं।
- संविधान में 12वीं अनुसूची जोड़ी गई। इसमें नगर पालिकाओं के 18 कार्यात्मक अनुच्छेद शामिल हैं जो अनुच्छेद 243 W से संबंधित हैं।
भारतीय शहरों में स्थानीय शासन को बढ़ाने हेतु आवश्यक कार्य:
- राजकोषीय स्वायत्तता का सुदृढ़ीकरण:
- स्थानीय सरकारों को करों की एक विस्तृत शृंखला एकत्र करने के लिये सशक्त बनाने की आवश्यकता है, जिससे वे स्वतंत्र रूप से राजस्व एकत्रित कर सकें। स्थानीय सरकारें उधार प्राप्त करने के लिये बेहतर ढंग से प्रबंधित नगर पालिकाओं के लिये राज्य सरकार की मंज़ूरी की आवश्यकता को कम करें।
- प्रशासनिक शक्तियों का विकेंद्रीकरण:
- विशेष रूप से नगर निगम आयुक्तों और वरिष्ठ प्रबंधन टीमों के लिये प्रमुख कर्मचारियों की नियुक्तियाँ तथा पदोन्नति करने हेतु स्थानीय सरकारों को प्रशासनिक शक्तियाँ सौंपी जानी चाहिये। इनसे शहर मज़बूत, जवाबदेह संगठनों के निर्माण में सक्षम होंगे।
- पारदर्शिता और नागरिक सहभागिता:
- आंतरिक ऑडिट रिपोर्ट, वार्षिक रिपोर्ट, बैठकों के मिनट और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं सहित नागरिक जानकारी के नियमित प्रकाशन को सुनिश्चित करने के लिये सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में सार्वजनिक प्रकटीकरण कानून को समान रूप से लागू करने की आवश्यकता है। ऐसी जानकारी तक नागरिकों की आसान पहुँच के लिये ऑनलाइन प्लेटफॉर्म स्थापित की जाने चाहिये।
- वैश्विक महानगरों से तुलना और सीख:
- वित्तीय प्रबंधन, स्टाफिंग स्तर और शहरी प्रशासन के लिये सर्वोत्तम प्रथाओं को निर्धारित करने के लिये भारतीय शहरों की वैश्विक महानगरों से तुलना करने के लिये एक प्रणाली निर्धारित करने की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों से प्रभावी रणनीति अपनाने को बढ़ावा देना चाहिये।
- नागरिक भागीदारी और प्रतिक्रिया:
- सार्वजनिक परामर्श, फीडबैक प्रणाली और बजटिंग में सहभागिता के माध्यम से नागरिक सहभागिता को बढ़ावा देना चाहिये। नागरिकों को उनकी चिंताओं और सुझावों को व्यक्त करने के लिये मंच प्रदान करने की आवश्यकता है, जिससे एक अधिक उत्तरदायी स्थानीय सरकार सुनिश्चित हो सके।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने, पारदर्शिता में सुधार करने और नागरिकों को ऑनलाइन सेवाएँ प्रदान करने के लिये डिजिटल गवर्नेंस टूल एवं प्लेटफॉर्म को अपनाने की आवश्यकता है। नौकरशाही बाधाओं को कम करने के लिये ई-गवर्नेंस पहल लागू करना भी आवश्यक है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. स्थानीय स्वशासन की सर्वोत्तम व्याख्या यह की जा सकती है कि यह एक प्रयोग है (2017) (a) संघवाद का उत्तर: (b) |