भारतीय विरासत और संस्कृति
अमीर खुसरो और सूफीवाद
- 04 Mar 2025
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प्रिलिम्स के लिये:अमीर खुसरो, सूफीवाद, ख्याल, हिंदुस्तानी संगीत, भक्ति आंदोलन, ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती मेन्स के लिये:अमीर खुसरो का योगदान, भारत में सूफीवाद का प्रसार और उसका प्रभाव |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री ने अमीर खुसरो और सूफीवाद की प्रशंसा करते हुए इसे भारत की बहुलवादी विरासत के रूप में रेखांकित किया।
अमीर खुसरो कौन है?
- वह 13 वीं शताब्दी के सूफी कवि और संगीतकार थे, जिन्हें तूती-ए-हिंद, यानी 'भारत का तोता' की उपाधि दी गई थी।
- खुसरो का वास्तविक नाम अबुल हसन यामीनुद्दीन खुसरो था और उनका जन्म उत्तर प्रदेश के एटा ज़िले के पटियाली में हुआ था।
- योगदान: उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत, सूफी कव्वाली और फारसी साहित्य में चिरस्थायी योगदान दिया।
- भाषा: उन्हें हिंदवी भाषा के विकास का श्रेय दिया जाता है , जो आधुनिक हिंदी और उर्दू की पूर्ववर्ती थी।
- उनकी साहित्यिक कृतियों में फारसी, अरबी और भारतीय परंपराओं का सम्मिश्रण था, जिससे भारतीय भाषाई विरासत समृद्ध हुई।
- उनकी साहित्यिक कृतियों में दीवान (कविता संग्रह), मसनबी (कथात्मक कविता) और ग्रंथ शामिल हैं।
- संगीत: उन्हें नए रागों की रचना करने और ख्याल (शास्त्रीय हिंदुस्तानी संगीत का एक रूप ) और तराना (एक लयबद्ध, तेज़गति वाली सांगीतिक रचना) जैसे संगीत रूपों को विकसित करने का श्रेय दिया जाता है।
- ऐसा कहा जाता है कि अमीर खुसरो गज़ल और कव्वाली (भक्तिपूर्ण सूफी संगीत परंपरा) बनाने की कला के पहले प्रवर्तकों में से एक थे।
- मान्यताओं के अनुसार उन्होंने सितार और तबला जैसे संगीत वाद्ययंत्रों का आविष्कार किया था।
- भाषा: उन्हें हिंदवी भाषा के विकास का श्रेय दिया जाता है , जो आधुनिक हिंदी और उर्दू की पूर्ववर्ती थी।
- दिल्ली सल्तनत में भूमिका: उन्होंने लगभग पाँच सुल्तानों, मुइज़ उद दीन कैकबाद, जलालुद्दीन खिलजी, अलाउद्दीन खिलजी, कुतुबुद्दीन मुबारक शाह और गयासुद्दीन तुगलक, और कई अन्य शक्तिशाली संरक्षकों के अधीन पाँच दशकों तक कार्य किया।
- सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने उनकी साहित्यिक उत्कृष्टता को मान्यता देते हुए उन्हें अमीर की उपाधि से सम्मानित किया।
- सूफी प्रभाव: अमीर खुसरो निजामुद्दीन औलिया के प्रिय शिष्य थे और उनसे आध्यात्मिक प्रेरणा प्राप्त की, जिसका प्रभाव कविताओं और संगीत में स्पष्ट है।
सूफीवाद क्या है?
- सूफीवाद इस्लाम का रहस्यवादी और आध्यात्मिक आयाम है, जो अंतःशुद्धि, प्रेम और ईश्वर ( अल्लाह) के साथ प्रत्यक्ष संबंध पर केंद्रित है।
- इसका उत्थान 7वीं से 10वीं शताब्दी ई. में संस्थागत धर्म की जड़ता के विरुद्ध हुआ और इसमें आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने के लिये भक्ति, आत्म-अनुशासन और भौतिकवाद के त्याग पर बल दिया जाता है।
- यह हिंदू परंपरा में आध्यात्मिक भक्ति आंदोलन के समानांतर जारी रहा, जिसमें अनुष्ठानिक प्रथाओं की तुलना में भक्ति, प्रेम और आंतरिक बोध पर बल दिया गया।
- मुख्य प्रथाएँ: सूफियों ने स्वयं को खानकाहों (धर्मशालाओं) के समीप केंद्रित समुदायों में संगठित किया, जिसका नेतृत्व एक गुरु (शेख या पीर ) करता था।
- सूफियों ने शिष्यों को ईश्वर से जोड़ने के लिये सिलसिले (सूफी आदेश) स्थापित किये और सूफी कब्रें (दरगाह) आध्यात्मिक आशीष के लिये तीर्थ स्थल बन गईं।
- सूफी लोग परमानंद की रहस्यमयी अवस्था को प्राप्त करने के लिये आत्म-दंड, ज़िक्र (ईश्वर का स्मरण), समा (संगीतमय गायन) और फना-ओ-बका (ईश्वर से मिलन के लिये स्वयं का विलय) का अभ्यास करते हैं।
- भारत में सूफीवाद: अल-हुजविरी भारत के सबसे पहले प्रमुख सूफी थे, जो लाहौर में बस गए थे, और उन्होंने कश्फ-उल महजूब की रचना की थी।
- 13वीं और 14 वीं शताब्दी में सूफीवाद का विकास हुआ, जिसने सभी के लिये करुणा और प्रेम का संदेश प्रसारित किया, जिसे सुलह-ए-कुल के नाम से जाना जाता है।
- भारत में सूफी संप्रदाय: 12वीं शताब्दी तक सूफी 12 संप्रदायों या सिलसिले में संगठित हो गए थे। प्रमुख सूफी संप्रदाय हैं:
- चिश्ती सिलसिला: यह भारत का सबसे प्रभावशाली सूफी संप्रदाय है और इसकी स्थापना अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की थी।
- इससे जुड़े प्रमुख व्यक्ति थे अकबर (सलीम चिश्ती के अनुयायी), कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी, बाबा फरीद, निज़ामुद्दीन औलिया और अमीर खुसरो।
- सुहरावर्दी सिलसिला: इसकी स्थापना बहाउद्दीन ज़कारिया ने मुल्तान में की थी और इसमें विलासिता और राज्य का समर्थन शामिल था।
- इसमें धार्मिक ज्ञान को रहस्यवाद के साथ जोड़ा गया तथा दिव्य ज्ञान के लिये व्यक्तिगत अनुभव और आंतरिक शुद्धि पर बल दिया गया।
- नक्शबंदी सिलसिला: इसने शरीयत की प्रधानता पर ज़ोर दिया और नवाचारों (बिद्दत ) का विरोध किया तथा संगीत सभाओं (समा) और संतों की कब्रों की तीर्थयात्रा जैसी सूफी परंपराओं को अस्वीकार कर दिया।
- मुगल सम्राट औरंगजेब ने नक्शबंदी आदेश का पालन किया।
- ऋषि सिलसिला (कश्मीर): इसकी स्थापना शेख नूरुद्दीन वली ने की थी और यह 15 वीं और 16 वीं शताब्दी के दौरान कश्मीर में फला-फूला।
- यह लोकप्रिय शैव भक्ति परंपरा से प्रेरणा लेता है और इस क्षेत्र के सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश में निहित है।
- चिश्ती सिलसिला: यह भारत का सबसे प्रभावशाली सूफी संप्रदाय है और इसकी स्थापना अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती ने की थी।
- प्रभाव:
- धार्मिक: व्यक्तिगत भक्ति, तौहीद (ईश्वर की एकता) और समानता पर ज़ोर दिया तथा हिंदू-मुस्लिम सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया।
- चिश्ती संप्रदाय ने सभी धर्मों का स्वागत किया।
- सामाजिक: हाशिये पर पड़े समूहों को आकर्षित किया, जातिगत पदानुक्रम को कमज़ोर किया, तथा शिक्षण केंद्र के रूप में खानकाहों और मदरसों की स्थापना की।
- सांस्कृतिक: भारतीय संगीत, विशेष रूप से कव्वाली को प्रभावित किया तथा बुल्ले शाह और सुल्तान बाहू जैसे कवियों के माध्यम से स्थानीय भाषा साहित्य को समृद्ध किया।
- राजनीतिक: सुलह-ए-कुल को प्रेरित किया, जिसने अकबर की धार्मिक सहिष्णुता की नीतियों को आकार दिया। शासकों ने अधिकार को मज़बूत करने और धार्मिक विविधता को प्रबंधित करने के लिये सूफियों को संरक्षण दिया।
- धार्मिक: व्यक्तिगत भक्ति, तौहीद (ईश्वर की एकता) और समानता पर ज़ोर दिया तथा हिंदू-मुस्लिम सह-अस्तित्व को बढ़ावा दिया।
भक्ति और सूफी आंदोलनों के बीच समानताएँ
पहलू |
भक्ति आंदोलन |
सूफी आंदोलन |
अडिग विश्वास |
व्यक्तिगत ईश्वर के प्रति भक्ति (सगुण/निर्गुण भक्ति) |
ईश्वर के प्रति प्रेम (इश्क-ए-हकीकी) और आंतरिक शुचिता |
अनुष्ठानों की अस्वीकृति |
उन्होंने ब्राह्मणवादी प्रभुत्व का विरोध किया और अनुष्ठानों को विस्तार दिया। |
रूढ़िवादी इस्लामी विधिवाद का विकल्प प्रदान किया। |
प्रेम और भक्ति पर बल |
भक्ति मुक्ति (मोक्ष) का मार्ग है। |
ईश्वर से एक होने का मार्ग है प्रेम (फना - ईश्वर से मिल जाना)। |
जनसाधारण के लिये सरल भाषा |
प्रयुक्त स्थानीय भाषाएँ (हिंदी, मराठी, तमिल, आदि)। |
हिंदवी, फारसी और उर्दू में कविताएँ लिखीं। |
संगीत और कविता |
भजन और कीर्तन (मीराबाई, तुलसीदास)। |
कव्वालियाँ और सूफी कविता (अमीर खुसरो, रूमी)। |
निष्कर्ष
साहित्य, संगीत और सूफीवाद में अमीर खुसरो का योगदान भारत की बहुलवादी और समन्वयकारी परंपराओं को दर्शाता है। उनके कार्यों ने फारसी और भारतीय संस्कृतियों को जोड़ा, जबकि सूफीवाद ने भक्ति आंदोलन के साथ-साथ सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा दिया। इन परंपराओं ने भारत के समग्र सांस्कृतिक और धार्मिक लोकाचार को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत की सांस्कृतिक और सामाजिक विरासत को आकार देने में सूफीवाद के योगदान पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) प्रश्न. मध्यकालीन भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में, सूफी संत किस तरह के आचरण का निर्वाह करते थे? (2012)
निम्नलिखित कूट के आधार पर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. भक्ति साहित्य की प्रकृति और भारतीय संस्कृति में इसके योगदान का मूल्यांकन कीजिये। (2021) प्रश्न. सूफी और मध्यकालीन रहस्यवादी संत हिंदू/मुस्लिम समाजों के धार्मिक विचारों एवं प्रथाओं या बाहरी ढाँचे को किसी भी सराहनीय सीमा तक संशोधित करने में विफल रहे। टिप्पणी कीजिये। (2014) |