सहकारी समिति अधिनियम में संशोधन | 23 Dec 2022

प्रिलिम्स के लिये:

बहु-राज्य सहकारिता, संविधान (97वाँ संशोधन) अधिनियम, 2011, सहकारी समितियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान।

मेन्स के लिये:

सहकारी समिति अधिनियम में संशोधन।

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में विपक्ष की मांगों का जवाब देते हुए लोकसभा ने बहु-राज्य सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक 2022 को संयुक्त संसदीय समिति को भेज दिया है।

सहकारी समिति:

  • परिचय: 
    • सहकारी समितियाँ बाज़ार में सामूहिक सौदेबाज़ी की शक्ति का उपयोग करने के लिये लोगों द्वारा ज़मीनी स्तर पर बनाई गई संस्थाएँ हैं।
      • इसमें विभिन्न प्रकार की व्यवस्थाएँ हो सकती हैं, जैसे कि एक सामान्य लाभ प्राप्त करने के लिये सामान्य संसाधन या साझा पूंजी का उपयोग करना, जो अन्यथा किसी व्यक्तिगत निर्माता के लिये प्राप्त करना मुश्किल होगा।
    • कृषि में सहकारी डेयरी, चीनी मिलें, कताई मिलें आदि उन किसानों के एकत्रित संसाधनों (Pooled Resources) से बनाई जाती हैं जो अपनी उपज को संसाधित करना चाहते हैं।  
      • अमूल भारत में सबसे प्रसिद्ध सहकारी समिति है।
  • क्षेत्राधिकार: 
    • सहकारिता, संविधान के तहत एक राज्य का विषय है जिसका अर्थ है कि वे राज्य सरकारों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं लेकिन कई समितियाँ हैं जिनके सदस्य और संचालन के क्षेत्र एक से अधिक राज्यों में फैले हुए हैं।
      • उदाहरण के लिये कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा पर स्थित अधिकांश चीनी मिलें दोनों राज्यों से गन्ना खरीदती हैं।
    • बहु-राज्य सहकारी समितियाँ (MSCS) अधिनियम, 2002 के तहत एक से अधिक राज्यों की सहकारी समितियाँ पंजीकृत हैं।
      • इनके निदेशक मंडल में उन सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व होता है जिनमें वे कार्य करते हैं।
      • इन समितियों का प्रशासनिक और वित्तीय नियंत्रण केंद्रीय रजिस्ट्रार के पास है एवं कानून यह स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार का कोई भी अधिकारी उन पर नियंत्रण नहीं रख सकता है।

संशोधन की आवश्यकता:

  • वर्ष 2002 से सहकारिता के क्षेत्र में अनेक परिवर्तन हुए हैं। उस समय सहकारिता कृषि मंत्रालय के अधीन एक विभाग था। हालाँकि जुलाई 2021 में सरकार ने एक अलग सहकारिता मंत्रालय का गठन किया।
  • भाग IXB को 97वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 2011 के माध्यम से संविधान में सम्मिलित किया गया था। इसके बाद अधिनियम में संशोधन करना अनिवार्य हो गया है।
    • 97वें संशोधन के तहत:   
      • सहकारी समितियों के गठन के अधिकार को स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19 (1) के रूप में शामिल किया गया।
      • सहकारी समितियों का प्रचार राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 43-बी) के रूप में किया गया था।
  • इसके अलावा पिछले कुछ वर्षों के विकास ने भी अधिनियम में बदलाव की आवश्यकता जताई, ताकि बहु-राज्य सहकारी समितियों में सहकारी आंदोलन को मज़बूत किया जा सके। 

प्रस्तावित संशोधन:

  • सहकारी समितियों का विलय:  
    • यह विधेयक किसी भी सहकारी समिति के मौजूदा MSCS में विलय के लिये उपस्थित सदस्यों के बहुमत (कम-से-कम दो-तिहाई) द्वारा पारित एक प्रस्ताव और ऐसी समिति की आम बैठक में मतदान करने का प्रावधान करता है।
    • वर्तमान में केवल MSCS ही स्वयं को समामेलित कर सकता है और एक नया MSCS बना सकता है।
  • सहकारी चुनाव प्राधिकरण: 
    • यह विधेयक सहकारी क्षेत्र में "चुनावी सुधार" की दृष्टि से एक "सहकारी चुनाव प्राधिकरण" स्थापित करने का प्रावधान करता है।
    • प्राधिकरण में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और केंद्र द्वारा नियुक्त किये जाने वाले अधिकतम 3 अन्य सदस्य होंगे।
      • सभी सदस्य 3 वर्ष या 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने तक (जो भी पहले हो) पद पर बने रहेंगे और पुनर्नियुक्ति के लिये पात्र होंगे।
  • कठोर दंड:
    • विधेयक कुछ अपराधों के लिये ज़ुर्माने की राशि को बढ़ाने का प्रयास करता है।
    • यदि निदेशक मंडल या अधिकारियों को ऐसी सोसायटी से संबंधित मामलों का लेन-देन करते समय कोई गैरकानूनी लाभ प्राप्त होता है, तो वे दंड के पात्र होंगे तथा उन्हें कम-से-कम एक महीने का कारावास हो सकता है जो एक वर्ष तक या ज़ुर्माने के साथ बढ़ाया जा सकता है। 
  • सहकारी लोकपाल:
    • सरकार ने सदस्यों द्वारा की गई शिकायतों की जाँच के लिये क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र के साथ एक या एक से अधिक "सहकारी लोकपाल" नियुक्त करने का प्रावधान किया है।
    • सम्मन और जाँच-पड़ताल में सहकारी लोकपाल  की शक्तियां  दीवानी न्यायालय के समान होंगी।
  • पुनर्वास और विकास निधि:
    • यह विधेयक, सहकारी पुनर्वास, पुनर्निर्माण तथा विकास कोष की स्थापना तथा MSCS के पुनरुद्धार का भी प्रावधान करता है।
    • यह विधेयक "समवर्ती लेखापरीक्षा" से संबंधित एक नई धारा 70A को सम्मिलित करने का भी प्रस्ताव करता है, इस MSCSs, का वार्षिक कारोबार या जमा धन राशि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित राशि से अधिक है। 

प्रस्तावित विधेयक की आलोचनाएँ

  • लोकसभा में विपक्षी सदस्यों ने तर्क दिया है कि बिल राज्य सरकारों के अधिकारों को छीनने (Take Away) का प्रयास करता है। 
  • कुछ आपत्तियाँ इस तथ्य पर आधारित हैं कि सहकारी समितियाँ राज्य का विषय है। संघ सूची (सातवीं अनुसूची) की प्रविष्टि 43 यह स्पष्ट करती है कि सहकारी समितियाँ केंद्र के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती हैं।
    • प्रविष्टि 43 में "व्यापारिक निगमों का निगमन, विनियमन और परिसमापन जिसमें बैंकिंग, बीमा एवं वित्तीय निगम शामिल हैं, लेकिन इसमें सहकारी समितियों को शामिल नहीं किया गया है। 

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न  

मेन्स: 

प्रश्न: "गाँवों में सहकारी समिति को छोड़कर ऋण संगठन का कोई भी ढाँचा उपयुक्त नहीं होगा।" - अखिल भारतीय ग्रामीण ऋण सर्वेक्षण।

प्रश्न: भारत में कृषि वित्त की पृष्ठभूमि में इस कथन पर चर्चा कीजिये। कृषि वित्त प्रदान करने वाली वित्त संस्थाओं को किन बाधाओं और कसौटियों का सामना करना पड़ता है? ग्रामीण सेवार्थियों तक बेहतर पहुँचने और सेवा के लिये प्रौद्योगिकी का किस प्रकार ईस्तेमाल किया जा सकता है? (2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस