चुनावी बाॅण्ड योजना में संशोधन | 08 Nov 2022

प्रिलिम्स के लिये:

चुनावी बाॅण्ड, राजनीति का अपराधीकरण, चुनावी बाॅण्ड योजना, पंजीकृत राजनीतिक दल, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

चुनावी बाॅण्ड, इलेक्शन फंडिंग।

चर्चा में क्यों?

कुछ राज्यों में चुनाव से कुछ हफ्ते पहले केंद्र सरकार ने चुनावी बाॅण्ड योजना में संशोधन किया है।

चुनावी बाॅण्ड योजना:

  • चुनावी बाॅण्ड:
    • चुनावी बाॅण्ड प्रॉमिसरी नोट्स के रुप में मुद्रा उपकरण होते हैं, जिन्हें भारत में कंपनियों और व्यक्तियों द्वारा भारतीय स्टेट बैंक (SBI) से खरीदा जा सकता है तथा इसे किसी राजनीतिक दल को दान किया जा सकता है, जो बाॅण्ड को भुना सकता है।
    • ये बाॅण्ड केवल एक पंजीकृत राजनीतिक दल के नामित खाते में ही भुनाए जा सकते हैं।
    • कोई व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से बाॅण्ड खरीद सकता है।
  • चुनावी बाॅण्ड योजना:
    • भारत में राजनीतिक फंडिंग को पारदर्शी बनाने के लिये वर्ष 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना शुरू की गई थी।
    • चुनावी बाॅण्ड योजना के पीछे केंद्रीय विचार, भारत में चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाना है।
    • सरकार ने इस योजना को "कैशलेस-डिजिटल अर्थव्यवस्था" की ओर बढ़ रहे देश में "चुनावी सुधार" के रूप में वर्णित किया था।

lowdown

योजना में किये गए संशोधन:

  • 15 दिनों की अतिरिक्त अवधि:
    • इसमें एक नया प्रावधान शामिल किया गया कि केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की विधानसभाओं के आम चुनावों वाले वर्ष में इसके लिये पंद्रह दिनों की अतिरिक्त अवधि निर्दिष्ट की जाएगी।
    • वर्ष 2018 में जब चुनावी बाॅण्ड योजना पेश की गई थी, तो ये बाॅण्ड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्तूबर में 10-10 दिनों की अवधि के लिये उपलब्ध कराए गए थे, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है।
      • लोकसभा के आम चुनाव के वर्ष में केंद्र सरकार द्वारा 30 दिनों की अतिरिक्त अवधि निर्दिष्ट की जानी थी।
  • वैधता:
    • चुनावी बाॅण्ड जारी होने की तारीख से पंद्रह कैलेंडर दिनों के लिये वैध होंगे और वैधता अवधि की समाप्ति के बाद चुनावी बाॅण्ड ज़मा किये जाने पर किसी भी प्राप्तकर्त्ता राजनीतिक दल को कोई भुगतान नहीं किया जाएगा।
    • पात्र राजनीतिक दल द्वारा ज़मा किया गया चुनावी बाॅण्ड उसके खाते में उसी दिन क्रेडिट हो जाएगा।
  • पात्रता:
    • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29A के तहत केवल पंजीकृत राजनीतिक दल, जिन्होंने लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले आम चुनाव में कम-से-कम 1% वोट हासिल किये हैं, चुनावी बाॅण्ड प्राप्त करने के लिये पात्र हैं।

चुनावी बॉण्ड के संबंध में चिंताएँ:

  • मूल विचार के विपरीत:
    • चुनावी बॉण्ड योजना की मुख्य आलोचना यह की जाती है कि यह अपने मूल विचार यानी चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता लाने के ठीक विपरीत काम करता है।
    • उदाहरण के लिये आलोचकों का तर्क है कि चुनावी बॉण्ड की अज्ञातता केवल जनता और विपक्षी दलों तक ही सीमित होती है।
  • जबरन वसूली की संभावना:
    • चूँकि इस तरह के बॉण्ड सरकारी स्वामित्व वाले बैंकों (SBI) के माध्यम से बेचे जाते हैं, ऐसे में कई आलोचकों का मानना है कि सरकार इसके माध्यम से यह जान सकती है कि कौन लोग विपक्षी दलों को वित्तपोषण प्रदान कर रहे हैं।
    • परिणामस्वरूप यह प्रकिया केवल तत्कालीन सरकार को ही धन उगाही की अनुमति देती है और सत्ताधारी पार्टी को अनुचित लाभ प्रदान करती है।
  • लोकतंत्र के लिये चुनौती: वित्त अधिनियम 2017 में संशोधन के माध्यम से केंद्र सरकार ने राजनीतिक दलों को चुनावी बॉण्ड के ज़रिये प्राप्त राशि का खुलासा करने से छूट दी है।
    • इसका मतलब है कि मतदाता यह नहीं जान पाएंगे कि किस व्यक्ति, कंपनी या संगठन ने किस पार्टी को और किस हद तक वित्तपोषित किया है।
    • हालाँकि एक प्रतिनिधि लोकतंत्र में नागरिक उन लोगों के लिये अपना वोट डालते हैं जो संसद में उनका प्रतिनिधित्व करेंगे।
  • ‘जानने के अधिकार’ से समझौता: भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि ‘जानने का अधिकार’ विशेष रूप से चुनावों के संदर्भ में भारतीय संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 19) का एक अभिन्न अंग है।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों के खिलाफ: चुनावी बॉण्ड नागरिकों को इस संदर्भ में कोई विवरण नहीं देते हैं।
    • उक्त गुमनामी उस समय की सरकार पर लागू नहीं होती है, जो कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) से डेटा की मांग करके दाता के विवरण तक पहुँच सकती है।
    • इसका मतलब यह है कि सत्ता में बैठी सरकार इस जानकारी का लाभ उठा सकती है और स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनाव को बाधित कर सकती है।
  • क्रोनी कैपिटलिज़्म: चुनावी बॉण्ड योजना राजनीतिक चंदे पर पहले से मौजूद सभी सीमाओं को हटा देती है और प्रभावी रूप से अच्छे संसाधन वाले निगमों को चुनावों के लिये धन देने की अनुमति देती है जिससे क्रोनी कैपिटलिज़्म का मार्ग प्रशस्त होता है।
    • क्रोनी कैपिटलिज़्म एक आर्थिक प्रणाली है जो व्यापारिक नेताओं और सरकारी अधिकारियों के बीच घनिष्ठ, पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों की विशेषता है।

आगे की राह

  • भ्रष्टाचार के दुष्चक्र को तोड़ने और लोकतांत्रिक राजनीति की गुणवत्ता की वृद्धि के लिये साहसिक सुधारों के साथ-साथ राजनीतिक वित्तपोषण के प्रभावी विनियमन की आवश्यकता है।
  • संपूर्ण शासनतंत्र को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाने हेतु मौजूदा कानूनों में खामियों को दूर करना महत्त्वपूर्ण है।
  • मतदाता जागरूकता अभियानों की मांग कर पर्याप्त बदलाव लाने में भी मदद कर सकते हैं। यदि मतदाता उन उम्मीदवारों और पार्टियों को अस्वीकार करते हैं जो उन परअधिक खर्च करते हैं या उन्हें रिश्वत देते हैं तो लोकतंत्र एक कदम और आगे बढ़ जाएगा।

स्रोत: द हिंदू