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भारतीय अर्थव्यवस्था

भारत में कृषि पर्यटन

  • 03 Mar 2025
  • 15 min read

प्रिलिम्स के लिये:

कृषि-पर्यटन, स्थानीय ज्ञान, देखो अपना देश, कृषि अवसंरचना निधि, बन्नी ग्रासलैंड, स्वदेश दर्शन योजना, अशोक दलवई समिति।        

मेन्स के लिये:

भारत में कृषि पर्यटन और इसकी संभावनाएँ, संबंधित चुनौतियाँ और आगे की राह। 

स्रोत: बिज़नेसलाइन

चर्चा में क्यों?

हिमाचल प्रदेश (HP) द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने के क्रम में कृषि-पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है, जहाँ पर्यटन की राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 7% की हिस्सेदारी है। 

हिमाचल प्रदेश में कृषि पर्यटन के अवसर

  • बाग-बगीचे: हिमाचल प्रदेश में ट्यूलिप (कांगड़ा क्षेत्र), केसर और औषधीय जड़ी-बूटियाँ जैसी उच्च मूल्य वाली फसलें उगाई जा सकती हैं।
  • शैक्षिक कृषि पर्यटन: यहाँ छात्र भोजन और धारणीयता के बारे में जानने के लिये खेतों को एक्सप्लोर कर सकते हैं जबकि किसान शुल्क लेकर शैक्षिक पर्यटन की मेजबानी कर सकते हैं।
  • न्यूट्रास्युटिकल खेती: हिमाचल प्रदेश, हिमालयी जड़ी-बूटियों को बढ़ावा दे सकता है जिससे स्वास्थ्य एवं जैविक खेती पर केंद्रित न्यूट्रास्युटिकल पर्यटन को आकर्षित किया जा सकता है।
  • सांस्कृतिक संबंध: यहाँ स्थानीय युवाओं को कृषि संबंधी कहानियाँ साझा करने तथा पारंपरिक कृषि एवं संस्कृति को प्रदर्शित करने वाले कृषि पर्यटन स्थलों को विकसित करने के लिये प्रेरित किया जा सकता है।

कृषि पर्यटन क्या है?

  • परिचय: कृषि पर्यटन एक प्रकार का वाणिज्यिक उद्यम है जिसके तहत कृषि को पर्यटन से जोड़ना शामिल है। यह शिक्षा या मनोरंजन के लिये आगंतुकों को खेतों की ओर आकर्षित करने एवं किसानों को अतिरिक्त आय प्रदान करने पर केंद्रित है। 
  • लाभ: 
    • ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना: इससे किसानों को पर्यटन एवं व्यावहारिक अनुभवों के माध्यम से वैकल्पिक आय मिलती है, जिससे अनिश्चित फसल पैदावार पर निर्भरता कम होने के साथ वित्तीय स्थिति मज़बूत होती है।
      • इससे कारीगरों, गाइडों, रसोइयों एवं परिवहन प्रदाताओं के लिये रोज़गार का सृजन होता है तथा ग्रामीण महिलाओं एवं युवाओं को रोज़गार के नए अवसर मिलते हैं।
    • धारणीय पर्यटन: यह जैविक खेतीजल संरक्षण और पर्यावरण अनुकूल प्रवास को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
    • कृषि विरासत का संरक्षण: यह पारंपरिक कृषि, शिल्प, लोक संगीत और स्थानीय ज्ञान को संरक्षित करने में सहायक है, जिससे पर्यटकों को ग्रामीण विरासत का अनुभव करने तथा उसका समर्थन करने का अवसर मिलता है।
      • यह लोक कलाओं, मिट्टी के बर्तनों, बुनाई तथा पारंपरिक खाद्य प्रसंस्करण/व्यंजन और जैविक उत्पादों को संरक्षित करने पर केंद्रित है।
    • सामाजिक पूंजी का निर्माण: यह साझा अनुभवों, ज्ञान के आदान-प्रदान तथा आर्थिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से ग्रामीण एवं शहरी समुदायों के बीच संबंधों को बढ़ावा देकर सामाजिक पूंजी का निर्माण करने पर केंद्रित है।
    • शैक्षिक अनुभव: यह आगंतुकों को जैविक कृषि, पशुपालन एवं पर्यावरण संरक्षण के बारे में शिक्षित करने पर केंद्रित है।
    • सरकारी नीतियों के साथ समन्वय: देखो अपना देश और कृषि अवसंरचना कोष जैसी योजनाएँ अवसंरचना, विपणन एवं प्रशिक्षण में सुधार करके कृषि-पर्यटन में किसानों का समर्थन देने पर केंद्रित हैं।
  • राज्य स्तरीय पहल: 
    • महाराष्ट्र: कृषि पर्यटन को बढ़ावा देने वाला महाराष्ट्र पहला राज्य था, जिसने वर्ष 2005 में  कृषि पर्यटन विकास निगम (ATDC) की स्थापना की थी।
      • ATDC पुणे के बारामती में 28 एकड़ में एक पायलट परियोजना चला रहा है, जिसके अंतर्गत 30 ज़िलों में 328 कृषि पर्यटन केंद्र हैं।
      • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र में अंगूर के बाग (नासिक, पुणे) और आम (रत्नागिरी, रायगढ़) के बाग।
    • कर्नाटक: कर्नाटक के कूर्ग में कॉफी बागानों में ठहरने की सुविधा है, जहाँ आगंतुकों को कॉफी चुनने से लेकर उसे बनाने तक की प्रक्रिया का अनुभव मिलता है। 
    • केरल: केरल कृषि-पर्यटन नेटवर्क का शुभारंभ किया गया जो आगंतुकों को सुगंधित उद्यानों का भ्रमण करने, मसालों की कृषि के बारे में जानने और जैविक मसाले खरीदने का अवसर प्रदान करता है। 
    • सिक्किम: भारत का पहला जैविक राज्य सिक्किम, खेतों के भ्रमण, सतत् कृषि की शिक्षा और किसानों के साथ बातचीत के साथ कृषि-पर्यटन की सुविधा प्रदान करता है।
    • पंजाब: ट्रैक्टर की सवारी, पारंपरिक भोजन (सरसों का साग और मक्के की रोटी), और लोक प्रदर्शन ग्रामीण संस्कृति को प्रदर्शित और संरक्षित करते हैं। 
  • संभाव्यता:
    • बिहार: मुजफ्फरपुर के लीची के बाग कृषि-पर्यटन प्रदान करते हैं, जबकि नालंदा के जैविक फार्म स्वास्थ्य पर्यटकों को आकर्षित करते हैं।
    • राजस्थान: राजस्थान की रेगिस्तानी कृषि, ऊँट पालन और बिश्नोई गाँव में प्रवास से ग्रामीण जीवन, सतत् कृषि और वन्यजीव संरक्षण के बारे में जानकारी मिलती है।
    • पूर्वोत्तर भारत: पूर्वोत्तर में समृद्ध जैवविविधता और पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ हैं जो पर्यावरण के प्रति जागरूक पर्यटकों को आकर्षित कर सकती हैं। 
      • उदाहरण के लिये, ज़ीरो घाटी (अरुणाचल प्रदेश) में अपातानी जनजाति द्वारा चावल की कृषि, बाँस ड्रिप सिंचाई (मेघालय)।
    • छत्तीसगढ़: बस्तर में जनजातीय कृषि पर्यटन आगंतुकों को पारंपरिक महुआ बनाने और जैविक कृषि का अनुभव करने का अवसर प्रदान करता है।
    • गुजरात: कच्छ के बन्नी घास के मैदानों में रबारी समुदाय के साथ पशुचारण पर्यटन की सुविधा है, जबकि आणंद में अमूल के साथ डेयरी पर्यटन की सुविधा है।
  • सरकारी नीतियाँ एवं पहल: 
    • स्वदेश दर्शन योजना: भारत की संस्कृति, विरासत और प्राकृतिक संसाधनों को प्रदर्शित करके स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने के लिये थीम आधारित पर्यटन सर्किट विकसित करना। उदाहरण के लिये, जनजातीय सर्किट।
    • PMJUGA: प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान (PMJUGA) के एक भाग के रूप में, पर्यटन और आजीविका को बढ़ावा देने के लिये जनजातीय क्षेत्रों में 1,000 होमस्टे विकसित किये जा रहे हैं।
    • देखो अपना देश योजना: यह घरेलू पर्यटन को बढ़ावा देता है, तथा भारतीयों को कम ज्ञात स्थलों की खोज करने के लिये प्रोत्साहित करता है।
    • ग्रामीण गृह प्रवास को बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय रणनीति, 2022: पर्यटन मंत्रालय द्वारा तैयार, यह आत्मनिर्भर भारत पहल के हिस्से के रूप में कृषि पर्यटन का समर्थन करता है।

भारत में कृषि-पर्यटन स्थल:

Agro_Tourism_Destinations

कृषि पर्यटन से जुड़ी चुनौतियाँ क्या हैं?

  • उच्च प्रतिस्पर्धा: पारिस्थितिक, सांस्कृतिक और साहसिक पर्यटन के प्रति कम जागरूकता और प्रतिस्पर्द्धा कृषि-पर्यटन के विकास को सीमित करती है।
  • निम्न पहुँच: गुणवत्ताविहीन सड़कें, परिवहन और स्वास्थ्य सेवा पर्यटकों को बाधित करते हैं, जबकि वित्तीय सीमाएँ किसानों के आवास, प्रशिक्षण या विपणन में निवेश में बाधा डालती हैं। 
    • उदाहरण के लिये, उत्तराखंड में कृषि-पर्यटन स्थल मानसून के दौरान दुर्गम रहते हैं।
  • भूमि उपयोग संघर्ष: कृषि-पर्यटन के कारण भूमि का उपयोग कृषि से विलग हो सकता है, क्योंकि किसान फसल उत्पादन की अपेक्षा पर्यटन को प्राथमिकता देते हैं, क्योंकि होमस्टे, रिसॉर्ट और रेस्तरां के माध्यम से पर्यटन से होने वाली आय अधिक लाभदायक होती है तथा तत्काल नकदी प्रवाह प्रदान करती है।
  • एकल कृषि: पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि जैसे उत्तरी राज्यों में गेहूँ और चावल की एकल कृषि से कृषि पर्यटन प्रभावित होता है, क्योंकि पर्यटक बागवानी, पुष्पकृषि और पशुपालन जैसी कृषि गतिविधियों को अपेक्षाकृत अधिक पसंद करते हैं।
  • ऋतुनिष्ठ निर्भरता: कृषि पर्यटन से होने वाली आय में ऋतुओं के साथ परिवर्तन होता रहता है जिसमें यह फसल कटाई के दौरान सर्वाधिक होती है, लेकिन ऑफ-सीज़न में या खराब मौसम की घटनाओं के कारण इसमें गिरावट आती है।
    • उदाहरण के लिये, राजस्थान की मरुभूमि में अत्यधिक ऊष्णता के कारण ग्रीष्मकालीन पर्यटन प्रभावित होता है, जबकि असम के चाय बागानों में बाढ़ और सड़क अवरोधों के कारण मानसून में गिरावट देखी जाती है।
  • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ: दूरदराज़ के कृषि-पर्यटन स्थलों पर चोरी, वन्य जंतुओं और सीमित आपातकालीन सेवाओं की उपलब्धता जैसे जोखिम होते हैं। उदाहरण के लिये, कर्नाटक में वन्य हाथियों का खतरा।
  • कौशल का अभाव: किसानों और ग्रामीण उद्यमियों के पास ग्राहक सेवा, पर्यटन प्रबंधन और आवास के संबंध में प्रशिक्षण का अभाव है, जिससे आगंतुकों को आकर्षित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। 
    • अनुपयुक्त नियोजन से कृषि और पर्यटन के बीच संतुलन और अधिक बाधित होता है।

आगे की राह

  • बुनियादी ढाँचे का विकास: सुगम पहुँच के लिये बेहतर सड़कों, परिवहन, जल आपूर्ति और बिजली में निवेश कर ग्रामीण क्षेत्रों की कनेक्टिविटी में सुधार किआ आवश्यकता है।
    • उदाहरण के लिये, आगंतुकों के अनुभव को अविस्मरणीय बनाने के लिये समर्पित कृषि पर्यटन सर्किट विकसित करना चाहिये।
  • आवास सुविधाएँ: किसानों को पर्यावरण अनुकूल आवास विकसित करने के लिये वित्तीय सहायता के साथ संधारणीय, संवहनीय फार्म स्टे को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • इसके अतिरिक्त, सुरक्षा संबंधी चिंताओं का निवारण करने हेतु इसे पंजीकृत होना चाहिये तथा स्थानीय प्राधिकारियों के नियमों और विनियमों के अनुरूप होना चाहिये।
  • कौशल विकास: कृषि विश्वविद्यालयों और निजी फर्मों के साथ PPP के तहत सहयोग कर कृषि पर्यटन में व्यावहारिक प्रशिक्षण प्रदान करके किसानों और युवाओं को आतिथ्य, ग्राहक सेवा तथा कृषि प्रबंधन में पर्यटक मित्र के रूप में प्रशिक्षित किये जाने की आवश्यकता है।
  • सामुदायिक भागीदारी: सामूहिक कृषि पर्यटन प्रबंधन के लिये FPO का गठन करना तथा बुनियादी ढाँचे और कौशल विकास के लिये पर्यटन बोर्ड, निवेशकों और गैर सरकारी संगठनों को शामिल करना चाहिये।
    • ग्रामीण पर्यटन को विकसित करने और बढ़ावा देने के लिये ग्राम सभाओं का सशक्तीकरण किया जाना चाहिये।
  • विनियामक ढाँचा: परिभाषित गतिविधियों और सुरक्षा मानदंडों के साथ स्पष्ट कृषि पर्यटन नीतियाँ विकसित किया जाना और तेज़ी से अनुमोदन के लिये एकल स्थलीय स्वीकृति कार्यान्वित की जानी चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में ग्रामीण अर्थव्यवस्था और रोज़गार को बढ़ावा देने में कृषि पर्यटन की भूमिका पर चर्चा कीजिये। इसके विकास को बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं? 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा,  विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. पर्वत पारिस्थितिकी तंत्र को विकास पहलों और पर्यटन के ऋणात्मक प्रभाव से किस प्रकार पुनःस्थापित किया जा सकता है?  (2019)

प्रश्न. पर्यटन की प्रोन्नति के कारण जम्मू और काश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के राज्य अपनी पारिस्थितिक वाहन क्षमता की सीमाओं तक पहुँच रहे हैं? समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015)

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