कृषि अवसंरचना कोष | 25 Jan 2023
प्रिलिम्स के लिये:किसान उत्पादक संगठन (FPOs), स्वयं सहायता समूह (SHGs), प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS), नाबार्ड, पराली दहन, फसल विविधीकरण, वर्षा जल संचयन, जेनेटिक इंजीनियरिंग। मेन्स के लिये:कृषि अवसंरचना कोष (AIF), फसल कटाई बाद प्रबंधन से संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund- AIF) ने फसल कटाई के बाद के अवसंरचना और सामुदायिक कृषीय संपत्ति जैसी कृषि परियोजनाओं के लिये 30,000 करोड़ रुपए से अधिक की पूंजी जुटाई है।
कृषि अवसंरचना कोष:
- परिचय:
- AIF एक वित्तपोषण सुविधा है जिसे जुलाई 2020 में शुरू किया गया था।
- इसका उद्देश्य किसानों, कृषि-उद्यमियों, किसान समूहों जैसे किसान उत्पादक संगठनों (FPO), स्वयं सहायता समूहों (SHG), संयुक्त देयता समूहों (Joint Liability Groups- JLGs) आदि और कई अन्य को फसल कटाई के बाद प्रबंधन बुनियादी ढाँचे तथा देश भर में सामुदायिक कृषि संपत्ति का निर्माण करने के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
- विशेषता:
- AIF 3% ब्याज सब्सिडी के रूप में सहायता प्रदान करता है, क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट फॉर माइक्रो एंड स्मॉल एंटरप्राइजेज़ (CGTMSE) कार्यक्रम के माध्यम से 2 करोड़ रुपए तक के ऋण के लिये क्रेडिट गारंटी देता है। अन्य केंद्र एवं राज्य सरकार के कार्यक्रमों के साथ विलय करने की सुविधा भी प्रदान करता है।
- AIF कृषि बुनियादी ढाँचे का निर्माण और आधुनिकीकरण करके फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने में काफी योगदान दे रहा है, जिसके अंतर्गत सब्जियों के लिये प्राथमिक प्रसंस्करण केंद्र, कृषि मशीनरी के किराये के लिये हाई-टेक हब/केंद्र शामिल हैं।
- प्रबंधन:
- इस फंड का प्रबंधन और देख-रेख एक ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाएगा। यह सभी योग्य संस्थाओं को इस फंड के तहत ऋण के लिये आवेदन करने में सक्षम बनाएगा।
- वास्तविक समय अर्थात् रियल टाइम निगरानी और प्रभावी प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय, राज्य एवं ज़िला स्तर की निगरानी समितियों का गठन किया जाएगा।
- इस फंड का प्रबंधन और देख-रेख एक ऑनलाइन प्रबंधन सूचना प्रणाली (MIS) प्लेटफॉर्म के माध्यम से किया जाएगा। यह सभी योग्य संस्थाओं को इस फंड के तहत ऋण के लिये आवेदन करने में सक्षम बनाएगा।
पोस्ट-हार्वेस्ट मैनेजमेंट:
- परिचय:
- कटाई के बाद के प्रबंधन (Post-harvest Management) से तात्पर्य उन गतिविधियों तथा तकनीकों से है जिनका उपयोग फसलों की कटाई के बाद उन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये किया जाता है।
- इसमें सफाई, छँटाई, ग्रेडिंग, पैकेजिंग, भंडारण और परिवहन जैसी गतिविधियाँ शामिल हैं।
- कटाई के बाद के प्रबंधन का लक्ष्य फसलों की गुणवत्ता और सुरक्षा को बनाए रखने के साथ-साथ उनकी शेल्फ लाइफ को बढ़ाना है, ताकि बाद में वह बेचने और खाद्य योग्य हों।
- कटाई के बाद के प्रबंधन (Post-harvest Management) से तात्पर्य उन गतिविधियों तथा तकनीकों से है जिनका उपयोग फसलों की कटाई के बाद उन्हें सुरक्षित और संरक्षित करने के लिये किया जाता है।
- चुनौतियाँ:
- ऋण तक सुविधाजनक पहुँच का अभाव: छोटे और सीमांत किसानों के लिये सुविधाजनक ऋण उपलब्ध नहीं है। नाबार्ड द्वारा वर्ष 2018 में किये एक सर्वेक्षण के अनुसार छोटे भूखंड आकार के स्वामी किसानों ने बड़े भूखंड आकार (> 2 हेक्टेयर) के स्वामी किसानों की तुलना में गैर-संस्थागत ऋणदाताओं से अधिक ऋण लिया था।
- यह इंगित करता है कि छोटे और सीमांत किसान बड़े किसानों की तुलना में ऋण के अनौपचारिक स्रोतों (जो अधिक ब्याज भी लेते हैं) पर अधिक निर्भरता रखते हैं।
- पराली दहन: मानव श्रम की कमी, खेत से फसल अवशेषों को हटाने की उच्च लागत और फसलों की यंत्रीकृत कटाई के कारण खेतों में अवशेषों को जलाने या ‘पराली दहन’ (Stubble Burning) की समस्या गहरी होती जा रही है जो उत्तर भारत में वायु प्रदूषण में प्रमुखता से योगदान करती है।
- आधारभूत बाधाएँ: अपर्याप्त कोल्ड चेन इंफ्रास्ट्रक्चर के कारण फार्म गेट से 30% से अधिक उत्पादन नष्ट हो जाता है।
- नीति आयोग के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया है कि वार्षिक फसल की कटाई के बाद लगभग 90,000 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।
- मौसम के अनुकूल सड़कों और कनेक्टिविटी के अभाव में आपूर्ति अनियमित हो जाती है।
- ऋण तक सुविधाजनक पहुँच का अभाव: छोटे और सीमांत किसानों के लिये सुविधाजनक ऋण उपलब्ध नहीं है। नाबार्ड द्वारा वर्ष 2018 में किये एक सर्वेक्षण के अनुसार छोटे भूखंड आकार के स्वामी किसानों ने बड़े भूखंड आकार (> 2 हेक्टेयर) के स्वामी किसानों की तुलना में गैर-संस्थागत ऋणदाताओं से अधिक ऋण लिया था।
भारत कृषि से अधिकतम लाभ कैसे प्राप्त कर सकता है?
- पारंपरिक और सीमांत तकनीकों का एकीकरण: पौधों के पोषक तत्त्वों हेतु वर्षा जल संचयन और जैविक अपशिष्टों का पुनर्चक्रण, कीट प्रबंधन आदि पारंपरिक तकनीकों के उदाहरण हैं जिनका उपयोग उच्च उत्पादकता प्राप्त करने के लिये ऊतक संवर्द्धन, जेनेटिक इंजीनियरिंग जैसी सीमांत तकनीकों के पूरक के रूप में किया जा सकता है।
- कृषि अधिशेष प्रबंधन का उन्नयन: कटाई के बाद की देखभाल, बीज, उर्वरक और कृषि रसायन गुणवत्ता विनियमन हेतु अवसंरचनात्मक ढाँचे के उन्नयन एवं विकास कार्यक्रम की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त, क्रय केंद्रों की ग्रेडिंग और मानकीकरण को बढ़ावा देना आवश्यक है।
- बाज़ार एकीकरण के माध्यम से अतिरिक्त प्रतिलाभ प्राप्त करना: घरेलू बाज़ारों को सुव्यवस्थित करने और स्थानीय बाज़ारों को राष्ट्रीय एवं वैश्विक बाज़ारों से जोड़ने के लिये अवसंरचनात्मक ढाँचों तथा संस्थानों को स्थापित करने की आवश्यकता है।
- घरेलू और वैश्विक बाज़ारों के बीच सहज एकीकरण की सुविधा के लिये और व्यापार उदारीकरण को और अधिक प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिये भारत को एक नोडल संस्था की आवश्यकता है जो विश्व और घरेलू मूल्य विचलनों की बारीकी से निगरानी कर सके और बड़ी हानि से बचने के लिये समय पर और उचित उपाय कर सके।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रीलिम्स:प्रश्न. पर्माकल्चर कृषि पारंपरिक रासायनिक कृषि से कैसे अलग है? ( 2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (b) प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी 'मिश्रित खेती' की प्रमुख विशेषता है? (2012) (a) नकदी फसलों और खाद्य फसलों दोनों की खेती उत्तरः (c) प्रश्न. सूक्ष्म सिंचाई के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2011)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. फसल विविधीकरण के समक्ष वर्तमान चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधीकरण के लिये अवसर कैसे प्रदान करती हैं? (मुख्य परीक्षा, 2021) |