धर्मांतरण पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला | 04 Jul 2024

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 25, अनुच्छेद 26, भारत का सर्वोच्च न्यायालय, भारतीय दंड संहिता, निजता का अधिकार

मेन्स के लिये:

भारत में धर्मांतरण, धर्मांतरण विरोधी कानून और संबंधित मुद्दे, सर्वोच्च न्यायालय के संबंधित निर्णय।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों

इलाहाबाद उच्च न्यायालय (HC) ने हाल ही में भारत में धर्मांतरण के मुद्दे पर विचार किया तथा बहुसंख्यक आबादी पर इसके संभावित जनसांख्यिकीय प्रभाव पर प्रकाश डाला।

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश विधि-विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021   और भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं (किसी व्यक्ति को गुप्त रूप से और गलत तरीके से बंधक बनाने के इरादे से अपहरण) के तहत दर्ज एक व्यक्ति की ज़मानत याचिका को खारिज करते हुए ये टिप्पणियाँ कीं।
  • यह मामला धार्मिक प्रचार की संवैधानिक सीमाओं पर अदालत के रुख और गैरकानूनी धर्मांतरण गतिविधियों पर अंकुश लगाने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

धर्म परिवर्तन पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ हैं?

  • न्यायालय ने कहा कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25, जो धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है, धर्मांतरण की अनुमति नहीं देता है, लेकिन धर्म के प्रचार की अनुमति देता है
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि "प्रचार" का अर्थ किसी धर्म को बढ़ावा देना है, लेकिन इसका अर्थ किसी व्यक्ति को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तित करना नहीं है।
  • न्यायालय ने चिंता व्यक्त की कि यदि इस प्रकार के धर्मांतरण पर रोक नहीं लगाई गई तो भारत में बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक बन सकती है तथा न्यायालय ने इन धर्मांतरणों के कारण बहुसंख्यक आबादी को अल्पसंख्यक बनने से रोकने की आवश्यकता पर बल दिया।
  • न्यायालय ने कहा कि गैरकानूनी धर्मांतरण, विशेष रूप से अनुसूचित जाति (SC)/अनुसूचित जनजाति (ST) समुदायों और आर्थिक रूप से वंचित व्यक्तियों को निशाना बनाकर, पूरे उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर हो रहा है।
  • न्यायालय ने सिफारिश की कि जिन धार्मिक सभाओं में धर्मांतरण हो रहा है, उन्हें तुरंत रोका जाना चाहिये।

धर्म परिवर्तन से संबंधित प्रमुख संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • अनुच्छेद 25: सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन, अंतःकरण की स्वतंत्रता तथा धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने एवं प्रचार करने के अधिकार की गारंटी देता है। राज्य धार्मिक अभ्यास से जुड़ी किसी भी आर्थिक, वित्तीय, राजनीतिक या अन्य धर्मनिरपेक्ष गतिविधि को विनियमित या प्रतिबंधित कर सकता है।
    • यह धार्मिक आचरण से जुड़ी धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों के विनियमन और हिंदू धार्मिक संस्थाओं को हिंदुओं के सभी वर्गों तथा तबकों के लिये खोलने की भी अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 26: प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय को सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन अपने धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने का अधिकार देता है।
  • अनुच्छेद  27-30: धार्मिक मामलों का प्रबंधन करने, किसी भी धर्म के लिये आर्थिक योगदान देने तथा शैक्षिक संस्थाओं की स्थापना एवं प्रशासन की स्वतंत्रता की गारंटी दी जाएगी।

उत्तर प्रदेश विधि-विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021

  • इसका उद्देश्य धार्मिक रूपांतरणों को विनियमित करना तथा गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, ज़बरदस्ती, प्रलोभन या किसी कपटपूर्ण तरीके से किये गए धर्मांतरण पर रोक लगाना है।
  • अवैध धर्मांतरण के लिये मानक सज़ा 1-5 वर्ष की कैद और कम-से-कम 15,000 रुपए का ज़ुर्माना है। यदि पीड़ित महिला, नाबालिग या अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित व्यक्ति है, तो सज़ा कम-से-कम 25,000 रुपए के ज़ुर्माने के साथ 2-10 वर्ष तक बढ़ जाती है।
    • सामूहिक धर्मांतरण के मामलों में सज़ा 3-10 वर्ष की कैद और न्यूनतम 50,000 रुपए का ज़ुर्माना है।
  • बार-बार अपराध करने वालों को संबंधित सज़ा से दोगुनी सज़ा हो सकती है। विधि-विरुद्ध धर्मांतरण के उद्देश्य से किया गया कोई भी विवाह अमान्य घोषित कर दिया जाता है।

सर्वोच्च न्यायालय ने धर्म परिवर्तन की व्याख्या कैसे की है?

  • रेव स्टैनिस्लॉस बनाम मध्य प्रदेश राज्य, 1977: धर्मांतरण विरोधी कानूनों को बरकरार रखते हुए फैसला सुनाया कि अनुच्छेद 25(1) दूसरों का धर्मांतरण करने का अधिकार नहीं देता है, बल्कि अपने सिद्धांतों के प्रदर्शन के माध्यम से अपने धर्म को प्रसारित या फैलाने का अधिकार देता है।
  • सरला मुद्गल बनाम भारत संघ, 1995 और लिली थॉमस बनाम भारत संघ, 2000: न्यायालय ने माना कि केवल बहुविवाह के लिये इस्लाम में धर्मांतरण अवैध है।
  • एम. चंद्रा बनाम एम. थंगमुथु एवं अन्य, 2010: धर्मांतरण और नए समुदाय में स्वीकृति दोनों के साक्ष्य की आवश्यकता स्थापित की गई।
  • ग्राहम स्टेन्स केस, 2011: कहा गया कि किसी को बल, उकसावे के माध्यम से धर्मांतरित करने का कोई औचित्य नहीं है।
  • गोपनीयता का अधिकार मामला, 2017: धर्म की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकार पर ज़ोर दिया गया, जिसमें विश्वास को चुनने और व्यक्त करने की क्षमता भी शामिल है तथा इस बात पर ज़ोर दिया गया कि राज्य का हस्तक्षेप आनुपातिक होना चाहिये।

नोट: 

सर्वोच्च न्यायालय ने अभी तक अनुच्छेद 25 के अंतर्गत "प्रचार" की कानूनी व्याख्या पर कोई निश्चित निर्णय नहीं दिया है

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून क्या हैं?

  • परिचय: भारत में धर्मांतरण विरोधी कानून ऐसे नियम हैं जो व्यक्तियों को बल, धोखाधड़ी, प्रलोभन या प्रलोभन जैसे माध्यमों से एक धर्म से दूसरे धर्म में धर्मांतरित होने से रोकने का प्रयास करते हैं।
    • इन कानूनों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि धार्मिक परिवर्तन स्वैच्छिक हो, न कि ज़बरदस्ती किया गया हो, ताकि व्यक्तियों को अपने धर्म को बदलने के लिये दबाव डाले जाने या गुमराह किये जाने से बचाया जा सके।
  • धर्मांतरण विरोधी कानून का ऐतिहासिक संदर्भ:
    • स्वतंत्रता-पूर्व काल: भारत को स्वतंत्रता मिलने से पहले, कई रियासतों ने मिशनरी गतिविधियों और ईसाई धर्म में धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के लिये धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए थे।
      • उदाहरण: रायगढ़ राज्य धर्मांतरण अधिनियम (1936), पटना धर्म स्वतंत्रता अधिनियम (1942), सरगुजा राज्य धर्मत्याग अधिनियम (1945) और उदयपुर राज्य धर्मांतरण विरोधी अधिनियम (1946)।
    • स्वतंत्रता के बाद के प्रयास: धर्म परिवर्तन पर केंद्रीय कानून पारित करने के प्रयास बार-बार विफल रहे हैं।
      • भारतीय धर्मांतरण (विनियमन और पंजीकरण) विधेयक (1954), पिछड़ा समुदाय (धार्मिक संरक्षण) विधेयक (1960) और अखिल भारतीय धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक (1978)।
      • इन असफलताओं के बावजूद, कई राज्यों ने पिछले कुछ वर्षों में अपने स्वयं के धर्मांतरण विरोधी कानून बनाए हैं।
    • राज्य स्तरीय धर्मांतरण विरोधी कानून:
      • ओडिशा (1967): धार्मिक रूपांतरण को प्रतिबंधित करने, बलपूर्वक धर्मांतरण और धोखाधड़ी के तरीकों पर रोक लगाने वाला कानून बनाने वाला पहला राज्य।
      • मध्य प्रदेश (1968): मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य अधिनियम लागू किया गया, जिसके तहत कानून के तहत किसी भी धर्मांतरण गतिविधि के लिये ज़िला मजिस्ट्रेट को अधिसूचना देना आवश्यक कर दिया गया।
      • अरुणाचल प्रदेश (1978), गुजरात (2003), छत्तीसगढ़ (2000 और 2006), राजस्थान (2006 तथा 2008), हिमाचल प्रदेश (2006 एवं 2019), तमिलनाडु (2002-2004), झारखंड (2017), उत्तराखंड (2018), उत्तर प्रदेश (2021) व हरियाणा (2022)
        • इन राज्यों ने विभिन्न प्रकार के धार्मिक रूपांतरणों पर रोक लगाने के लिये कानून बनाए हैं, जिनमें अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, नाबालिगों और महिलाओं के धर्मांतरण के लिये दंड बढ़ाया गया है।
    • केंद्र का मत: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को दिये एक हलफनामे में कहा कि धर्म के अधिकार में दूसरों को, विशेष रूप से धोखाधड़ी या बलपूर्वक माध्यम से धर्मांतरित करने का अधिकार शामिल नहीं है
      • उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 25 की व्याख्या का उल्लेख करते हुए बल दिया कि धोखाधड़ी से धर्म परिवर्तन व्यक्ति की अंतःकरण की स्वतंत्रता को प्रभावित करता है और लोक व्यवस्था को बाधित कर सकता है।
      • केंद्र ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि क्या वह याचिका में किये गए अनुरोध के अनुसार धार्मिक धर्मांतरण पर कोई विशेष कानून पेश करेगा।

भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • संवैधानिक चिंताएँ: भारत में धर्मांतरण विरोधी कानूनों के लिये प्राथमिक चुनौती उनकी संवैधानिकता, विशेष रूप से भारतीय संविधान के तहत प्रदत्त मूल अधिकारों से संबंधित है।
  • आलोचकों का तर्क है कि ये कानून अनुच्छेद 19, 21 और 25 में निहित धर्म, अभिव्यक्ति और निजता की स्वतंत्रता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं
  • वर्ष 2012 में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य के धर्मांतरण विरोधी कानून, 2006 के कुछ प्रावधानों को असंवैधानिक करार दिया। इसने निजता के अधिकार को बरकरार रखते हुए अभिनिर्धारित किया कि ज़िला मजिस्ट्रेट को एक माह का नोटिस देने की आवश्यकता इस अधिकार का उल्लंघन करती है
  • वर्ष 2021 में, गुजरात उच्च न्यायालय ने गुजरात धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2003 के प्रावधानों पर रोक लगा दी, जिसमें धर्मांतरण को प्रतिबंधित करने के आधार के रूप में विवाह को शामिल करने के लिये संशोधन किया गया था।
  • न्यायालय ने चयन के अधिकार को बरकरार रखते हुए निर्णय दिया कि इस अधिनियम से यह धारणा बनती है कि धर्मांतरण के बाद अंतर-धार्मिक विवाह को अवैध माना जा सकता है।
  • साक्ष्य का भार: धर्मांतरण विरोधी कानून से, धर्मांतरण अवैध तरीकों का उपयोग करके नहीं किये जाने को साबित करने का भार अभियुक्त पर आता है।
  • अंतरधार्मिक विवाहों पर प्रभाव: हाल ही में राज्य कानून संशोधनों में ऐसे विवाह को अमान्य घोषित कर दिया गया है जिनमें केवल शादी के उद्देश्य से धर्मांतरण शामिल है।
  • आलोचकों का तर्क है कि ये प्रावधान धार्मिक मतभेदों की परवाह किये बिना स्वतंत्र रूप से विवाह करने और जीवन साथी चुनने के व्यक्तियों के अधिकारों में हस्तक्षेप करते हैं।
  • दुरुपयोग और निशाना बनाने के आरोप: आलोचकों का तर्क है कि धर्मांतरण विरोधी कानूनों का प्रायः धार्मिक अल्पसंख्यकों और असहमति जताने वालों को निशाना बनाने के लिये दुरुपयोग किया जाता है, जिससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ने तथा दलितों, आदिवासियों एवं महिलाओं जैसे सुभेद्य समूहों के साथ भेदभाव की चिंताएँ उत्पन्न होती हैं।

आगे की राह

  • व्यक्तिपरक व्याख्याएँ और संभावित दुरुपयोग को कम  करने के लिये धर्मांतरण विरोधी कानूनों में "बल", "प्रलोभन" तथा "ज़बरन" जैसे अस्पष्ट पदों की स्पष्ट परिभाषाओं का उल्लेख किया जाना चाहिये।
  • धर्मांतरण विरोधी कानूनों में निर्दोषता की उपधारणा के सिद्धांत (किसी भी अपराध के आरोपी प्रत्येक व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक कि वह दोषी साबित न हो जाए) को बनाए रखना सुनिश्चित किया जाना चाहिये।
  • भ्रम और संभावित दुरुपयोग से बचने के लिये सभी राज्यों में एक समान नियम स्थापित किये जाने चाहिये।
  • जबरन धर्मांतरण से सुरक्षा प्रदान करते हुए वैयक्तिक स्वतंत्रता हेतु धर्मांतरण पर एक राष्ट्रीय ढाँचा स्थापित किया जाना चाहिये।
    • यह अधिक एकरूपता प्रदान कर सकता है और संभावित रूप से राज्य स्तर पर दुरुपयोग को रोक सकता है।
  • धार्मिक समूहों के बीच समझ और सम्मान को बढ़ावा देने के लिये अंतर-धार्मिक संवाद कार्यक्रमों और शैक्षिक पहलों को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों पर धर्मांतरण विरोधी कानूनों के सामाजिक-राजनीतिक निहितार्थों का विश्लेषण कीजिये। ये कानून सांप्रदायिक सद्भाव और वैयक्तिक स्वतंत्रता के विषयों से किस प्रकार संबंधित हैं?