‘चौरी-चौरा’ घटना के 100 वर्ष | 05 Feb 2022
प्रिलिम्स के लिये:चौरी-चौरा घटना, असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन। मेन्स के लिये:‘चौरी-चौरा’ की घटना, इसकी पृष्ठभूमि और इसके बाद के प्रभाव, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन। |
चर्चा में क्यो?
हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘चौरी-चौरा’ घटना के सौ वर्ष पूरे होने पर स्वतंत्रता संग्राम के वीरों को श्रद्धांजलि दी।
- चौरी-चौरा उत्तर प्रदेश के गोरखपुर ज़िले का एक कस्बा है।
- 04 फरवरी, 1922 को इस शहर में एक हिंसक घटना हुई- किसानों की भीड़ ने एक पुलिस थाने में आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसकर्मी मारे गए। इस घटना के कारण महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन (1920-22) को वापस ले लिया था।
घटना की पृष्ठभूमि:
- 01 अगस्त, 1920 को गांधी जी ने सरकार के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया।
- इसमें स्वदेशी का उपयोग करना एवं विदेशी सामानों (विशेष रूप से मशीन से बने कपड़ों) का बहिष्कार, कानूनी, शैक्षिक एवं प्रशासनिक संस्थानों का बहिष्कार और प्रशासन की सहायता करने से इनकार शामिल था।
- वर्ष 1921-22 की सर्दियों में काॅन्ग्रेस और खिलाफत आंदोलन के स्वयंसेवकों को एक राष्ट्रीय स्वयंसेवक कोर में संगठित किया गया।
- खिलाफत आंदोलन भारत में एक अखिल इस्लामी आंदोलन था, जो वर्ष 1919 में ब्रिटिश राज के दौरान भारत में मुस्लिम समुदाय के बीच एकता के प्रतीक के रूप में तुर्क खलीफा के समर्थन के प्रयास के रूप में पैदा हुआ था।
- काॅन्ग्रेस ने आंदोलन का समर्थन किया और महात्मा गांधी ने इसे असहयोग आंदोलन में शामिल करने की मांग की।
चौरी-चौरा की घटना और उसके बाद की प्रतिक्रियाएँ:
- चौरी-चौरा की घटना
- चौरी-चौरा कस्बे में 4 फरवरी को स्वयंसेवकों ने बैठक की और जुलूस निकालने के लिये पास के मुंडेरा बाज़ार को चुना गया।
- पुलिस ने भीड़ पर गोलियाँ चलाईं जिसमें कुछ लोग मारे गए और कई स्वयंसेवक घायल हो गए।
- जवाबी कार्रवाई में भीड़ ने थाने में आग लगा दी।
- कुछ भागने की कोशिश कर रहे पुलिसकर्मियों को पीट-पीटकर मार डाला गया। हथियारों सहित पुलिस की काफी सारी संपत्ति नष्ट कर दी गई।
- अंग्रेज़ों की प्रतिक्रिया:
- ब्रिटिश राज ने अभियुक्तों पर आक्रामक रूप से मुकदमा चलाया।
- एक सत्र अदालत ने 225 आरोपियों में से 172 को तुरंत मौत की सज़ा सुनाई। हालाँकि अंततः दोषी ठहराए गए लोगों में से केवल 19 को फाँसी दी गई थी।
- महात्मा गांधी की प्रतिक्रिया:
- गांधीजी ने पुलिसकर्मियों की हत्या की निंदा की और आस-पास के गाँवों में स्वयंसेवक समूहों को भंग कर दिया गया। इस घटना पर सहानुभूति जताने तथा प्रायश्चित करने के लिये एक ‘चौरी-चौरा सहायता कोष’ स्थापित किया गया था।
- गांधीजी ने असहयोग आंदोलन में हिंसा का प्रवेश देख इसे रोकने का फैसला किया।
- उन्होंने अपनी इच्छा ‘कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी’ को बताई और 12 फरवरी, 1922 को सत्याग्रह (आंदोलन) आंदोलन औपचारिक रूप से वापस ले लिया गया।
- गांधी ने अहिंसा में अपने अटूट विश्वास के आधार पर खुद को सही ठहराया।
- अन्य राष्ट्रीय नेताओं की प्रतिक्रिया:
- असहयोग आंदोलन का नेतृत्व करने वाले जवाहरलाल नेहरू और अन्य नेता हैरान थे कि गांधीजी ने संघर्ष को उस समय रोक दिया जब नागरिक प्रतिरोध ने स्वतंत्रता आंदोलन में अपनी स्थिति मज़बूत कर ली थी।
- मोतीलाल नेहरू और सी.आर. दास जैसे अन्य नेताओं ने गांधीजी के फैसले पर नाराज़गी व्यक्त की और स्वराज पार्टी की स्थापना का फैसला किया।
तत्काल परिणाम:
- असहयोग आंदोलन की वापसी ने कई युवा भारतीय राष्ट्रवादियों को इस निष्कर्ष पर पहुँचाया कि भारत अहिंसा के माध्यम से औपनिवेशिक शासन से मुक्त नहीं हो पाएगा।
- इन क्रांतिकारियों में जोगेश चटर्जी, रामप्रसाद बिस्मिल, सचिन सान्याल, अशफाकुल्ला खान, जतिन दास, भगत सिंह, भगवती चरण वोहरा, मास्टर सूर्य सेन आदि शामिल थे।
- असहयोग आंदोलन की अचानक समाप्ति से खिलाफत आंदोलन के नेताओं का कॉन्ग्रेस के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय आंदोलनों से मोहभंग हो गया, फलतः कॉन्ग्रेस और मुस्लिम नेताओं के बीच दरार पैदा हो गई।