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प्रश्न :
भिन्न-भिन्न उद्देश्य होने के बावजूद खिलाफत और असहयोग आंदोलन के गठबंधन ने ब्रिटिश शासन के समक्ष एक मज़बूत चुनौती पेश की। वे कौन-सी परिस्थितियाँ थीं जिन्होंने इस गठजोड़ को संभव बनाया? (150 शब्द)
07 Nov, 2019 सामान्य अध्ययन पेपर 1 इतिहासउत्तर :
प्रश्न विच्छेद
• खिलाफत व असहयोग आंदोलन के उद्देश्यों व प्रभावों को बताना है
• उन परिस्थितियों का उल्लेख कीजिये, जिनके कारण खिलाफत व असहयोग आंदोलन का गठजोड़ हुआ।
हल करने का दृष्टिकोण
• सर्वप्रथम भूमिका लिखें।
• खिलाफत व असहयोग आंदोलन के गठजोड़ की परिस्थितियों को स्पष्ट कीजिये।
• खिलाफत व असहयोग आंदोलन के उद्देश्यों की चर्चा करें।
• आंदोलन के प्रभावों को विश्लेषण कीजिये।
• निष्कर्ष दें।
गांधी के भारतीय राजनीति में प्रवेश के साथ ही व्यापक जन-संघर्षों की शुरुआत हो गई। गांधी ने समाज के सभी वर्गो की सहभागिता के साथ-साथ हिन्दू-मुस्लिम एकीकरण के लिये भी प्रयास किये। इसी संदर्भ में भिन्न-भिन्न लक्ष्यों के बावजूद असहयोग व खिलाफत आंदोलन ने एकीकृत रूप से शांतिपूर्ण व अहिंसक तरीकों का प्रयोग कर ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के समक्ष मज़बूत चुनौती प्रस्तुत की।
20वीं शताब्दी का द्वितीय दशक हिंदू-मुस्लिम राजनैतिक एकीकरण के संदर्भ में व्यापक पृष्ठभूमि तैयार किये जाने से संबंधित है। वर्ष 1916 के लखनऊ समझौते ने कॉन्ग्रेस व मुस्लिम लीग के बीच सहयोग बढ़ाने का कार्य किया, तो वहीं रौलेट एक्ट के प्रभावों ने समाज के अन्य वर्गों के साथ ही हिंदू-मुस्लिम एकता को स्थापित किया।
इन्हीं सब गतिविधियों के दौरान खिलाफत आंदोलन का जन्म हुआ जिसके साथ ही असहयोग आंदोलन भी राष्ट्रीय पटल पर उभरा। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् तुर्की के प्रति अंग्रेज़ों के अपमानजनक रवैये के कारण भारतीय मुसलमान क्षुब्ध व उत्तेजित थे। इसी संदर्भ में मुसलमानों के धार्मिक स्थलों पर ख़लीफा के प्रभुत्व को पुनर्स्थापित करने तथा खलीफा को प्रदेशों की पुनर्व्यव्यस्था कर अधिक भू-क्षेत्र प्रदान करने के उद्देश्य से भारत में मोहम्मद अली, शौकत अली, मौलाना आज़ाद जैसे नेताओं ने खिलाफत कमेटी (1919 ई.) का गठन कर देशव्यापी आंदोलन की नींव रखी। इसी दौरान औपनिवेशिक नीतियों की शोषणकारी प्रवृत्तियों के कारण गांधी के नेतृत्व में जन आधारित संघर्ष के रूप में असहयोग आंदोलन की नींव रखी गई, जिसके अंतर्गत गांधी ने ‘एक वर्ष के अंदर स्वराज्य’ का लक्ष्य रखा।
आंदोलन की शुरुआत में कुछ समय तक खिलाफत के नेता असहयोग आंदोलन के पक्ष में सभाओं, धरनों, प्रदर्शनों का प्रयोग करते रहे लेकिन ब्रिटिश शासन के विरुद्ध सशक्त प्रदर्शन के लिये खिलाफत व असहयोग आंदोलन का एकीकरण आवश्यक हो गया। गांधी ने भी खिलाफत आंदोलन को सत्य व न्याय पर आधारित मानकर इसे असहयोग आंदोलन के साथ सम्मिलित करने की रणनीति को अनुमोदित कर दिया ताकि अंग्रेज़ों की ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति पर चोट की जा सके।
खिलाफत-असहयोग आंदोलन से प्रारंभ हुए व्यापक जनसंघर्षो ने ब्रिटिश शासन के समक्ष कड़ी चुनौती प्रस्तुत की। इससे एक तरफ हिंदू-मुस्लिम एकीकरण को तोड़ पाना अंग्रेज़ों के लिये मुश्किल हो गया, तो वहीं मुस्लिमों की राष्ट्रीय आंदोलन में सहभागिता ने स्वतंत्रता संग्राम में जनता की भागीदारी को बढ़ाया। इस आंदोलन के दौरान जहाँ 90 हज़ार छात्रों ने स्कूल कॉलेजों का बहिष्कार किया वहीं उसी समय राष्ट्रीय शिक्षण संस्थानों (जामिया मिलिया, काशी विद्यापीठ आदि) की स्थापना को भी प्रोत्साहन दिया गया। वकीलों ने वकालत छोड़ दी तथा विदेशी कपड़ों के बहिष्कार ने आयात को घटाकर आधा कर दिया। शराब की दुकानों पर धरना-प्रदर्शन हुए तथा चरखा-खादी का प्रसार किया गया।
स्पष्ट है कि असहयोग-खिलाफत आंदोलन के एकीकरण ने पूरे राष्ट्र की जनता को एकसूत्र में बांधने का कार्य किया। इसने जनता को आधुनिक राजनीति से परिचित करवाया तथा हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देकर स्वतंत्रता आंदोलन में रूढ़िवादी विचारों से मुक्त राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं का समर्थन प्राप्त किया।
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