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सामाजिक न्याय

मिशन अंत्योदय: सामाजिक न्याय हेतु महत्त्वपूर्ण

  • 29 Apr 2022
  • 13 min read

यह एडिटोरियल 27/04/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Mission Antyodaya’ Should not Fall by the Wayside” लेख पर आधारित है। इसमें मिशन अंत्योदय के महत्त्व और ग्रामीण भारत के उत्थान के मार्ग की चुनौतियों के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

भारतीय संविधान स्थानीय सरकारों को ‘आर्थिक विकास एवं सामाजिक न्याय’ के लिये’ योजना निर्माण एवं प्रवर्तन का निर्देश देता है (अनुच्छेद 243G और 243W)।

  • इस संबंध में कई पूरक संस्थाएँ बनाई गई हैं, जैसे लोगों की भागीदारी को सुविधाजनक बनाने के लिये ग्राम सभा, उर्ध्वगामी एवं स्थानिक विकास योजना तैयार करने के लिये जिला योजना समिति (District Planning committee- DPC) और ऊर्ध्वाधर एवं क्षैतिज इक्विटी सुनिश्चित करने के लिये राज्य वित्त आयोग (State Finance Commission-SFC)। 
  • इस दिशा में आगे बढ़ते हुए वर्ष 2017-18 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया ‘मिशन अंत्योदय’ इन वृहत लोकतांत्रिक सुधारों के उद्देश्यों को पुनर्जीवित करने का बड़ा आश्वासन देता है। पंचायती राज मंत्रालय (MoPR) और ग्रामीण विकास मंत्रालय ((MoRD) इस अभियान को आगे बढ़ाने हेतु नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करते हैं।

मिशन अंत्योदय क्या है?

  • मिशन अंत्योदय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा परिकल्पित एक मिशन मोड परियोजना है। यह जीवन और आजीविका को रूपांतरित करने वाले मापदंडों पर मापन-योग्य प्रभावी परिणामों हेतु एक अभिसरण ढाँचा है।
  • मिशन अंत्योदय का मुख्य उद्देश्य विभिन्न योजनाओं के अभिसरण के माध्यम से संसाधनों का इष्टतम उपयोग सुनिश्चित करना है जो गरीबी संबंधी विभिन्न अभावों को संबोधित करते हैं; और यहाँ ग्राम पंचायत को विकास योजना का मुख्य केंद्र बनाया गया है।
    • यह योजना प्रक्रिया एक वार्षिक सर्वेक्षण द्वारा समर्थित है जो ग्राम पंचायत स्तर पर विभिन्न विकास अंतरालों के आकलन में मदद करती है। सर्वेक्षण के अंतर्गत भारतीय संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची द्वारा पंचायतों को सौंपे गए 29 विषयों (स्वास्थ्य व पोषण, सामाजिक सुरक्षा, सुशासन, जल प्रबंधन आदि) के संबंध में डेटा एकत्र किया जाता है।

मिशन अंत्योदय की शुरुआत क्यों हुई?

  • कैलोरी-आय माप पर आधारित पारंपरिक गरीबी रेखा (जिसका योजना आयोग द्वारा पूरे समर्पण से अनुसरण किया गया था) समय के साथ बेकार साबित हुई और एक उद्देश्यपूर्ण नीति उपकरण के रूप में कार्य करने में विफल रही।
  • सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना, 2011 द्वारा सार्वजनिक डोमेन में लाये गए आँकड़े उपचारात्मक हस्तक्षेप की आवश्यकता प्रकट कर रहे थे। इसने उजागर किया कि:
    • 8.88 करोड़ परिवार आश्रयहीनता, भूमिहीनता, एकल महिला नेतृत्व वाले परिवार, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति परिवार या परिवार में विकलांग सदस्य जैसे बहुआयामी अभावों के दृष्टिकोण से वंचित और गरीब हैं।
    • 90% ग्रामीण परिवारों में वेतनभोगी नौकरी का अभाव है।
    • 53.7 मिलियन परिवार भूमिहीन हैं।
    • 6.89 मिलियन महिला प्रधान परिवारों में सहयोग के लिये कोई वयस्क सदस्य मौजूद नहीं है।
    • 49% विविध अभावों से ग्रस्त हैं।
    • 51.4% अनियमित शारीरिक श्रम से जीविका कमाते हैं।
    • 23.73 मिलियन के पास रहने के लिये घर नहीं है अथवा एक कमरे का घर है।
  • विडंबना है कि यह उस देश की स्थिति है जहाँ केंद्र एवं राज्य के बजट और बैंक-क्रेडिट से जुड़े स्वयं सहायता कार्यक्रमों के माध्यम से ग्रामीण गरीबों के लिये हर साल 3 ट्रिलियन रुपए से अधिक का व्यय किया जाता है।

ग्रामीण उत्थान के समक्ष विद्यमान चुनौतियाँ

ग्राम पंचायतों में अंतराल

  • वर्ष 2019-20 में ‘मिशन अंत्योदय’ सर्वेक्षण (MA Survey) ने पहली बार 2.67 लाख ग्राम पंचायतों (6.48 लाख ग्राम और 1.03 मिलियन आबादी को समाहित करते हुए) के आँकड़े संग्रहीत किये जिससे विद्यमान अवसंरचनात्मक अंतरालों पर प्रकाश पड़ा।
  • सर्वेक्षण में निर्दिष्ट अधिकतम स्कोर मान 100 रखा गया और उन्हें 10 के वर्ग अंतराल में प्रस्तुत किया गया था।
    • जबकि भारत में कोई भी राज्य 90 से 100 के शीर्ष स्कोर वर्ग में नहीं आया, 1484 ग्राम पंचायतें निम्नतम वर्ग ही प्राप्त कर सकीं।
    • यहाँ तक कि 80 से 90 के स्कोर रेंज में भी 10 राज्य और सभी केंद्रशासित प्रदेश नज़र नहीं आए।
  • सभी 18 राज्यों के लिये रिपोर्ट करने वाले कुल ग्राम पंचायतों की संख्या केवल 260 ही रही जो देश के कुल 2,67,466 ग्राम पंचायतों के मात्र 0.10% का प्रतिनिधित्व करती हैं।
    • केरल चार्ट में शीर्ष पर रहा (स्कोर रेंज 70-80 के साथ), लेकिन राज्य की कुल ग्राम पंचायतों के  केवल 34.69% का ही प्रतिनिधित्व हुआ।
      • संबंधित अखिल भारतीय औसत मात्र 1.09% रहा जो बेहद कम है।
    • यहाँ तक कि केरल के बाद दूसरे स्थान पर रहे गुजरात के लिये भी इस वर्ग में ग्राम पंचाययों की संख्या केवल 11.28% हैं।

मिशन अंत्योदय के समग्र सूचकांक में ग्राम पंचायतों का खराब प्रदर्शन

  • हालाँकि देश में केवल 15 ग्राम पंचायतें (कुल रिपोर्ट की गई पंचायतों में से) 10 अंकों से नीचे की सीमा में आईं, भारत में ग्राम पंचायतों के 1/5 से अधिक 40 की सीमा से नीचे रहीं।
    • अन्य राज्यों की तुलना में केवल केरल की ग्राम पंचायतें ही इससे ऊपर स्कोर पा सकीं।
    • अंतराल रिपोर्ट और संयुक्त सूचकांक अचूक रूप से दर्शाते हैं कि विकेंद्रीकरण सुधारों के 30 वर्ष और स्वतंत्रता के लगभग 75 वर्ष बाद भी ‘आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय’ का निर्माण एक दूर का लक्ष्य ही बना हुआ है।

GPDPs और MA सर्वेक्षणों के बीच का ‘मिसिंग लिंक’

  • तैयार किये गए ग्राम पंचायत विकास योजनाओं (Gram Panchayat Development Plans- GPDPs) और मिशन अंत्योदय (MA) सर्वेक्षण के निष्कर्षों से उभरने वाले अंतराल के बीच मिसिंग लिंक या कनेक्शन ने व्यापक GPDP तैयार करने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न की है।
    • MoPR के दिशानिर्देशों के अनुसार, GPDP तैयार करने के लिये MA सर्वेक्षण से प्राप्त निष्कर्ष और अंतराल रिपोर्ट आकलन को आधार रेखा रखा जाना है; लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
  • प्रत्येक पंचायत के लिये अनिवार्य रूप से GPDP में की गई गतिविधियों को MA सर्वेक्षण में पहचाने गए अंतराल के साथ जोड़ना आवश्यक है, लेकिन अधिकांश GPDPs में MA सर्वेक्षण में चिह्नित किये गए अंतरालों को संबोधित नहीं किया जाता है।
    • यहाँ तक कि जिन ग्राम पंचायतों में MA सर्वेक्षण संपन्न हुआ, उन्होंने भी अंतिम GPDP जीपीडीपी में अंतराल रिपोर्ट को शामिल नहीं किया है।

आगे की राह 

  • संसाधनों का एकीकरण: बढ़ती ग्रामीण-शहरी असमानताओं को कम करने की प्रबल गुंजाइश मौजूद है। पंचायती राज मंत्रालय के 'संतृप्ति दृष्टिकोण' (चुनिंदा मदों पर 100% लक्ष्य) को देखते हुए, सार्वभौमिक प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल, साक्षरता, पेयजल आपूर्ति और इस तरह के की अन्य आदर्शों को साकार करने की अपार संभावनाएँ हैं।
  • ग्राम सभा और नेतृत्वकर्ताओं की भूमिका: ग्राम सभा जमीनी स्तर के शासन में लोगों की भागीदारी के लिये एक मंच है। यह ग्रामीण लोगों को अपने गाँव के विकास कार्यक्रमों से संलग्न होने और प्रशासन को पारदर्शी बनाने हेतु अवसर प्रदान करता है।
    • यह निर्वाचित पदाधिकारियों, अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ताओं और स्थानीय नागरिकों की ज़िम्मेदारी है कि वे देखें कि ग्राम सभा नियमों और अपेक्षाओं के अनुरूप कार्य कर रही है।
    • गांधीजी ने एक बार कहा था- ‘‘पंचायतों की शक्ति जितनी वृहत होगी, लोगों के लिये उतना ही बेहतर होगा।’’
    • संलग्न किये गए सूत्रधारों को अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/महिलाओं जैसे कमज़ोर वर्गों सहित सामुदायिक लामबंदी सुनिश्चित करना होगा।
    • सभा के समक्ष एक गरीबी उन्मूलन योजना प्रस्तुत करने के लिये ग्राम संगठनों/स्वयं सहायता समूहों का समर्थन किया जा सकता है, जिसे विचार-विमर्श के बाद GPDP में शामिल किया जा सकता है।
  • राजकोषीय संसाधनों की उपलब्धता: भारत के राजकोषीय संघवाद के लिये डेटा का इस्तेमाल कर सकने की विफलता—विशेष रूप से उप-राज्य स्तर पर भारत में सार्वजनिक वस्तुओं के वितरण में हस्तांतरण प्रणाली और क्षैतिज इक्विटी में सुधार लाने के लिये, इसकी प्रमुख असफलताओं में से एक है।
  • आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के योजना निर्माण एवं प्रवर्तन का संवैधानिक लक्ष्य केवल मज़बूत नीतिगत हस्तक्षेपों और जमीनी स्तर पर वित्त की पर्याप्त आपूर्ति के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।
    • भारत का नीति संबंधी इतिहास बड़ी परियोजनाओं की घोषणा करने, लेकिन उन्हें उनके तार्किक परिणाम तक ले जाने में विफल रहने की घटना का साक्षी रहा है।
      • हालाँकि इतिहास को दुहराने की ज़रूरत नहीं है, बल्कि इसे सबक लेने और इसमें सुधार करने की आवश्यकता है।

अभ्यास प्रश्न: ‘‘मिशन अंत्योदय ग्रामीण उत्थान के लिये एक आशाजनक पहल है, यदि इसे मज़बूत नीति हस्तक्षेप, संसाधनों के पर्याप्त आवंटन और सख्त कार्यान्वयन के संदर्भ में गति प्रदान किया जाए।’’ चर्चा करना।

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