भारत-ऑस्ट्रेलिया ECTA | 07 Apr 2022
यह एडिटोरियल दिनांक 06/04/2022 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “To Reach Full Potential of Trade Pacts, Accept Investment Protection” लेख पर आधारित है। इसमें भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हाल ही में संपन्न ‘आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते’ (ECTA) के महत्त्व के बारे में चर्चा की गई है।
संदर्भ
भारत और ऑस्ट्रेलिया ने एक ऐतिहासिक अंतरिम ‘आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते’ (INDAUS ECTA) पर हस्ताक्षर किये हैं जो वस्त्र, चमड़ा, रत्न और आभूषण क्षेत्र में भारत के निर्यात को बढ़ावा देगा।
भारत के लिये ऑस्ट्रेलिया के साथ ECTA एक दशक से अधिक समय के बाद विश्व की किसी बड़ी विकसित अर्थव्यवस्था के साथ संपन्न हुआ पहला समझौता है। जापान और दक्षिण कोरिया के बाद ऑस्ट्रेलिया तीसरा OECD देश भी है जिसके साथ भारत ने ‘मुक्त व्यापार समझौते’ (FTA) पर हस्ताक्षर किये हैं।
आगे दोनों पक्ष एक पूर्ण ‘व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते’ (CECA) के लिये वार्तारत होंगे।
INDAUS ECTA
- इसमें लगभग वे सभी टैरिफ लाइनें शामिल होंगी जिनसे भारत और ऑस्ट्रेलिया रु-ब-रु होते हैं।
- भारत को ऑस्ट्रेलिया द्वारा उसकी 100% टैरिफ लाइनों पर प्रदान की जाने वाली तरजीही बाज़ार पहुँच (preferential market access) से लाभ होगा।
- भारत अपनी 70% से अधिक टैरिफ लाइनों पर ऑस्ट्रेलिया को तरजीही पहुँच प्रदान करेगा।
- समझौते के तहत ‘STEM’ (Science, Technology, Engineering and Mathematics) में स्नातक भारतीय छात्रों को विस्तारित ‘पोस्ट-स्टडी वर्क वीज़ा’ प्रदान किया जाएगा।
- यह ऑस्ट्रेलिया में भारत के निर्यात के 96% भाग को ज़ीरो ड्यूटी एक्सेस (zero-duty access) प्रदान करेगा और ऑस्ट्रेलिया के निर्यात के लगभग 85% को भारतीय बाज़ार में ज़ीरो ड्यूटी एक्सेस प्रदान करेगा।
- सरकार के एक अनुमान के अनुसार, यह वस्तुओं एवं सेवाओं में द्विपक्षीय व्यापार को पाँच वर्षों में लगभग 27 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर 45-50 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर देगा और भारत में दस लाख से अधिक नौकरियों का सृजन करेगा।
समझौते का महत्त्व
- निर्यात में वृद्धि: वर्तमान में भारतीय निर्यात को कई श्रम-गहन क्षेत्रों में चीन, थाईलैंड, वियतनाम, दक्षिण कोरिया, जापान, इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे ऑस्ट्रेलियाई बाज़ार में मौजूद प्रतिस्पर्द्धियों की तुलना में 4-5% के टैरिफ क्षति का सामना करना पड़ता है।
- ECTA के तहत इन बाधाओं को दूर करने से भारत के व्यापारिक निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
- सस्ता कच्चा माल: ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत को होने वाले निर्यात में कच्चे माल और मध्यवर्ती उत्पादों की अधिकता है। ऑस्ट्रेलिया के 85% उत्पादों पर ज़ीरो ड्यूटी एक्सेस के कारण भारत में कई उद्योगों को सस्ता कच्चा माल मिल सकेगा और इस तरह वे विशेषकर इस्पात, एल्यूमीनियम, बिजली, इंजीनियरिंग जैसे क्षेत्रों में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन पाएँगे।
- भारत के संबंध में धारणाओं में परिवर्तन: संपन्न हुआ व्यापार समझौता विकसित विश्व की धारणाओं को बदलने में भी मदद करेगा जहाँ हमेशा भारत को ‘संरक्षणवादी’ के रूप में रूढ़ किया जाता है और यह विश्व के साथ व्यापार के विषय में भारत के खुलेपन के बारे में संदेह को दूर करेगा।
- मज़बूत ‘इंडो-पैसिफिक’: मज़बूत ऑस्ट्रेलिया-भारत आर्थिक संबंध एक मज़बूत ‘इंडो-पैसिफिक’ या हिंद-प्रशांत आर्थिक संरचना का मार्ग प्रशस्त करेगा, जो देशों और उप-क्षेत्रों के बीच केवल भौतिक वस्तुओं, धन और लोगों के प्रवाह पर आधारित नहीं होगी, बल्कि निर्माण क्षमता से प्रेरित संपर्कों, संपूरकताओं, सतत् प्रतिबद्धताओं और परस्पर निर्भरताओं पर भी आधारित होगी।
निवेश संरक्षण पर दोनों देशों का दृष्टिकोण
- जबकि ECTA सेवाओं में व्यापार के हिस्से के रूप में निवेश का संदर्भ देता है, इसमें निवेश संरक्षण पर प्रावधानों (जैसे सबसे पसंदीदा राष्ट्र को विदेशी निवेश प्रदान करना एवं राष्ट्रीय संव्यवहार का लाभ, स्वामित्व हरण से सुरक्षा, विदेशी निवेश के लिये उचित एवं न्यायसंगत उपचार प्रदान करने का आश्वासन, कथित संधि उल्लंघनों के लिये राज्य के विरुद्ध दावे करने के विदेशी निवेशक के अधिकार को मान्यता देना) का अभाव है।
- ECTA का अनुच्छेद 14.5, जिसमें उन विषयों की सूची शामिल है जिन पर अंतरिम ECTA को एक व्यापक CECA में बदलने के लिये बातचीत होगी, निवेश सुरक्षा पर किसी अध्याय की चर्चा नहीं करता है।
- उल्लेखनीय है कि ऑस्ट्रेलिया ने पेरू, इंडोनेशिया और हॉन्गकॉन्ग के साथ व्यापक आर्थिक समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं जिनमें निवेश संरक्षण पर एक अध्याय शामिल है।
- इधर दूसरी ओर, हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात और इससे पहले वर्ष 2021 में मॉरीशस के साथ संपन्न हुए भारत के CECA में निवेश अध्याय शामिल नहीं है।
- प्रतीत होता है कि भारत CECA में निवेश संरक्षण अध्याय को शामिल करने के लिये अधिक इच्छुक नहीं है।
समझौते में निवेश को शामिल नहीं करने का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- भारत ने इन देशों के साथ एक व्यापक आर्थिक समझौते पर हस्ताक्षर इसलिये किये हैं क्योंकि वह वैश्विक मूल्य शृंखला (Global Value Chains- GVCs) का अंग बनना चाहता है। उल्लेखनीय है कि व्यापार और विदेशी निवेश, दोनों ही GVCs में अत्यंत प्रमुखता रखते हैं।
- इस प्रकार, इन CECAs में निवेश से व्यापार को अलग रखना आर्थिक दूरदर्शिता की अवहेलना है।
- क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) और वृहद एवं प्रगतिशील ट्रांस-पैसिफिक भागीदारी (CPTPP) जैसी हाल की कई वृहत आर्थिक संधियों में निवेश संरक्षण पर अध्याय शामिल हैं।
आगे की राह
- निवेश संरक्षण: अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत निवेश संरक्षण पर भारत का अत्यधिक रक्षात्मक रुख BITs के अंतर्गत विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय दावों का परिणाम है।
- भारत को अपने खोल से बाहर आना चाहिये और अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत अपनी व्यापक आर्थिक प्रतिबद्धताओं के एक हिस्से के रूप में निवेश संरक्षण को स्वीकार करना चाहिये। यह भारत को इन व्यापक आर्थिक सहयोग समझौतों का पूर्ण लाभ उठा सकने में सक्षम बनाएगा।
- निवेश अध्याय शामिल करना: यदि निवेश संरक्षण को ऐसे CECAs का हिस्सा बनाया जाता है तो भारत के पास एक स्टैंडअलोन निवेश संधि की तुलना में संतुलित निवेश अध्यायों पर बातचीत कर सकने के लिये बेहतर सौदेबाजी शक्ति प्राप्त होगी।
- जब कई संबंधित मुद्दे एक ही सौदे का हिस्सा होते हैं तो ‘लेन-देन’ और परस्पर-लाभ की स्थिति तक पहुँचने की अधिक संभावना होती है।
- प्रतिस्पर्द्धा में सुधार: जबकि भारत सरकार ने व्यवसायों के लिये एक उत्कृष्ट व्यापार सौदे पर सफलतापूर्वक बातचीत की है, यह समझना भी महत्त्वपूर्ण है कि ऑस्ट्रेलियाई बाज़ार तक पहुँच इतनी आसान नहीं होगी जब ऑस्ट्रेलिया वर्तमान में 16 मुक्त व्यापार समझौतों का कार्यान्वयन कर रहा है।
- इसका अर्थ यह है कि हमें अभी भी अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार पर कार्य जारी रखना होगा, क्योंकि अधिकांश व्यापार क्षेत्रों में भारत को चीन, आसियान, चिली, जापान, कोरिया और न्यूजीलैंड के साथ प्रतिस्पर्द्धा करनी है जो पहले से ही ऑस्ट्रेलिया के साथ FTAs रखते हैं।
- APEC साझेदारी: यह भारत की एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (APEC) सदस्यता के लिये भी उपयुक्त समय है। APEC में विश्व की सबसे तेज़ी से विकास करती प्रमुख अर्थव्यवस्था की उपस्थिति के बिना एक स्वतंत्र और खुले ‘इंडो-पैसिफिक’ का लक्ष्य अधूरा ही रहेगा।
- इस सदस्यता से वैश्विक व्यवस्था में भारत की भूमिका की और वृद्धि होगी, घरेलू प्रतिस्पर्द्धा में सुधार के साथ वृहत आर्थिक सुधारों को प्रोत्साहन मिलेगा और समग्र रूप से इस क्षेत्र के साथ आर्थिक एकीकरण की प्रक्रिया पूर्ण होगी।
- ऑस्ट्रेलिया-भारत द्विपक्षीय संबंधों के गहन होने के साथ ऑस्ट्रेलिया भारत की सदस्यता के लिये APEC के अंदर एक समर्थन लॉबी तैयार करने में भी मदद कर सकता है।
अभ्यास प्रश्न: ‘इंडो-पैसिफिक’ के दृष्टिकोण से भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग और व्यापार समझौते (ECTA) के महत्त्व पर चर्चा कीजिये।