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भारत-यूनाइटेड किंगडम मुक्त व्यापार समझौता - एक नया अवसर

  • 07 Feb 2022
  • 12 min read

यह एडिटोरियल 05/02/2022 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “India Calling with Quite A Lot Of Trade in Mind” पर आधारित है। इसमें भारत और यू.के. के मध्य शुरू हुई औपचारिक मुक्त व्यापार समझौता (FTA) के महत्त्व के संबंध में चर्चा की गई है।

संदर्भ

वर्ष 2022 के आरंभ के साथ ही भारत-यूनाइटेड किंगडम मुक्त व्यापार समझौते (Free Trade Agreement- FTA) के लिये वार्ता की शुरुआत हुई, जिसे दोनों देश वर्ष 2022 के अंत तक संपन्न करने की इच्छा रखते हैं। इन वार्ताओं का उद्देश्य एक ‘निष्पक्ष और संतुलित’ FTA संपन्न करना और 90% से अधिक टैरिफ लाइनों को कवर करना है ताकि वर्ष 2030 तक लगभग 100 बिलियन डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को पाया जा सके। वस्तुओं, सेवाओं और निवेशों के अलावा इस 'नवयुगीन मुक्त व्यापार समझौते' (new-age FTA) में बौद्धिक संपदा अधिकार, भौगोलिक संकेतक (GI), संवहनीयता, डिजिटल प्रौद्योगिकी और भ्रष्टाचार-रोध जैसे क्षेत्रों को शामिल करने का सुझाव दिया गया है। यू.के.-भारत व्यापार समझौता दोनों देशों में विकास एवं रोज़गार को प्रोत्साहित करेगा और अधिकाधिक व्यवसायों के लिये सीमापारीय व्यापार को सुगम एवं सस्ता बनाकर आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने में मदद करेगा।

भारत और मुक्त व्यापार समझौता:

  • मुक्त व्यापार समझौता (FTA) किन्हीं दो या दो से अधिक देशों के बीच आयात और निर्यात में होने वाली बाधाओं को कम करने के लिये किया गया एक समझौता होता है।
  • मुक्त व्यापार नीति के अंतर्गत वस्तुओं और सेवाओं को अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं के पार खरीदा और बेचा जा सकता है, जहाँ सरकारी शुल्क, कोटा, सब्सिडी या उनके विनिमय को रोकने वाले निषेध न्यूनतम या अनुपस्थित होते हैं।
  • मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद (Trade Protectionism) या आर्थिक अलगाववाद (Economic isolationism) के विपरीत है।
  • FTA को अधिमान्य या तरजीही व्यापार समझौता (PTA), व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता (CECA) या व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (CEPA) के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।

अन्य देशों के साथ FTA के मामले में भारत की स्थिति

  • भारत उद्देश्य की एक नई गंभीरता का प्रदर्शन कर रहा है जहाँ उसने कनाडा, अमेरिका, यूरोपीय संघ और दक्षिण कोरिया जैसे विविध देशों के साथ 16 नए और कई अन्य व्यापार समझौतों के उन्नयन पर वार्ताएँ संपन्न की हैं।
  • भारत एक दशक से भी अधिक समय के बाद वर्ष 2022 में संयुक्त अरब अमीरात के साथ अपना पहला FTA संपन्न कर लेने की उम्मीद कर रहा है, जबकि ऑस्ट्रेलिया के साथ एक अन्य FTA भी प्रगति की राह पर है।
  • यू.के. के साथ FTA वार्ता शुरू होने से ठीक पहले भारत और दक्षिण कोरिया ने भी मौजूदा FTA (जिसे औपचारिक रूप से व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता कहा गया है) के उन्नयन में तेज़ी लाने का निर्णय लिया है।

भारत-यू.के.मुक्त व्यापार समझौता:

आर्थिक संबंधों के मामले में भारत और यू.के. की वर्तमान स्थिति:

  • भारत में यू.के. की लगभग 600 कंपनियाँ कार्यरत हैं जो 3,20,000 से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करती हैं।
    • JCB और हिंदुस्तान यूनिलीवर जैसी कंपनियों द्वारा भारत में निर्मित उत्पादों को दुनिया भर के 110 से अधिक देशों में निर्यात किया जाता है जो आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के अनुकूल है।
  • इसके अलावा भारत पहले से ही यू.के. में एक बड़ा निवेशक है, विशेष रूप से फिनटेक, इलेक्ट्रिक वाहन और बैटरी जैसे गतिशील क्षेत्रों में।
    • वर्ष 2020-21 में परियोजनाओं की संख्या के मामले में भारत ब्रिटेन का दूसरा निवेश का सबसे बड़ा स्रोत था।
  • यद्यपि दोनों अर्थव्यवस्थाओं के आकार को देखते हुए (जहाँ भारत विश्व में पाँचवीं और यू.के. छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है) भारत-ब्रिटेन व्यापार संबंध ने विशेष रूप से बदतर प्रदर्शन किया है। FTA इस परिदृश्य को बदल देगा।

यू.के. के लिये इस मुक्त व्यापार समझौते का महत्त्व:

  • यू.के. ने अपनी पोस्ट-ब्रेक्ज़िट प्राथमिकताओं में से एक के रूप में भारत के साथ एक व्यापार समझौता किया है क्योंकि वह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में एक बड़ी भूमिका पाने की इच्छा रखता है।
    • भारत यू.के. के हिंद-प्रशांत दृष्टि कोण के केंद्र में है जिसने दुनिया भर में एक दिलचस्पी उत्पन्न की है।
  • यू.के. अपनी 'ग्लोबल ब्रिटेन' साख को रेखांकित करने के लिये कनाडा, मैक्सिको और खाड़ी देशों के साथ भी व्यापार वार्ता शुरू करेगा, भारत के साथ एक व्यापार समझौते के साथ CPTPP में इसकी सदस्यता यू.के. को आर्थिक रूप से हिंद-प्रशांत में अपने पाँव जमाने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • यू.के. वैश्विक स्थिरता एवं समृद्धि के लिये एक मुक्त और खुले हिंद-प्रशांत के महत्त्व को पहचानता है और इस उद्देश्य के लिये इसने अपनी रणनीतिक संपत्तियों की तैनाती की मंशा स्पष्ट कर दी है।
    • AUKUS जैसी भागीदारी और भारत जैसे देशों के साथ FTAs लंदन को हिंद-प्रशांत क्षेत्र में  वृहत शक्ति प्रदान करेगा।

भारत के लिये इस FTA का महत्त्व

  • यू.के. के साथ व्यापार समझौते से वस्त्र, चमड़े के सामान और फुटवियर जैसे वृहत रोज़गार सृजनकर्त्ता क्षेत्रों के निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है।
    • भारत की 56 समुद्री इकाइयों की मान्यता के साथ भारत के समुद्री उत्पादों के निर्यात में भी भारी उछाल की उम्मीद है।
  • आयुष और ऑडियो-विज़ुअल सेवाओं सहित IT/ITES, नर्सिंग, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा जैसे सेवा क्षेत्रों में निर्यात बढ़ाने की भी व्यापक संभावनाएँ हैं।
  • यू.के. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है और भारत के रणनीतिक भागीदारों में से एक है।
    • व्यापार के माध्यम से संबंधों की मज़बूती से वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लद्दाख क्षेत्र में चीन के साथ गतिरोध और सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के दावे जैसे वैश्विक मुद्दों पर भारत को यू.के. का समर्थन प्राप्त हो सकता है।

अंतर्निहित चुनौतियाँ

  • FTAs पर हस्ताक्षर में देरी: अंतरिम समझौते, जो कुछ उत्पादों पर टैरिफ को कम करते हैं, कुछ मामलों में व्यापक FTAs संपन्न होने में देरी उत्पन्न कर सकते हैं।
    • भारत ने वर्ष 2004 में थाईलैंड के साथ 84 वस्तुओं पर शुल्क कम करने के लिये एक अंतरिम व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे, लेकिन इस समझौते को कभी भी पूर्णरूपेण कार्यान्वित FTA में नहीं बदला गया।
  • विश्व व्यापार संगठन की ओर से चुनौती: पूर्णरूपेण कार्यान्वित FTA में नहीं बदलने वाले अंतरिम FTA को अन्य देशों द्वारा WTO में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
    • विश्व व्यापार संगठन के नियम सदस्यों को अन्य देशों को तरजीही शर्तें देने की अनुमति तभी देते हैं जब उनके बीच ऐसे द्विपक्षीय समझौते हों जो उनके बीच 'पर्याप्त रूप से पूर्ण व्यापार’ को दायरे में लेते हैं।

आगे की राह

  • मज़बूत भारत-यू.के. संबंधों का आधार: अपने हिंद-प्रशांत झुकाव के माध्यम से यू.के. अंततः अपनी पोस्ट-ब्रेक्ज़िट विदेश नीति के लिये एक दिशा और उद्देश्य को आकार दे रहा है। इसी प्राथमिकता ने नई दिल्ली और लंदन के लिये उनके FTA को शीघ्रता से अंतिम रूप देने के लिये एक नए मार्ग खोल दिया है।
    • भारत व्यापार पर अपने भागीदारों के साथ संलग्न होने में एक नए लचीले रुख का प्रदर्शन कर रहा है। मज़बूत आर्थिक घटकों के बिना रणनीतिक साझेदारी का हिंद-प्रशांत में कोई अर्थ नहीं होगा जहाँ चीन का आर्थिक दबदबा दिन-ब-दिन बढ़ रहा है।
    • यह एक ‘अभी नहीं तो कभी नहीं’ जैसा क्षण है और दोनों पक्ष मौजूदा चुनौतियों के बावजूद इसे पूर्ण करने के लिये तैयार हैं।
  • भारत के लिये अवसर: भारत के पास अगले 30 वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्था और समाज को बदलने का एक असाधारण अवसर है।
    • यू.के. के साथ मुक्त व्यापार अत्यधिक खुले और प्रतिस्पर्द्धी बाज़ार तक अधिक पहुँच के माध्यम से मदद करेगा और भारत की उभरती कंपनियों को मूल्यवान अवसर प्राप्त होगा (उदाहरण के लिये बेंगलुरु के स्टार्ट-अप्स की लंदन के पूंजी बाज़ारों तक सीधी पहुँच)।
    • अधिक नियामक निश्चितता के साथ कम बाधाएँ नए छोटे एवं मध्यम आकार के उद्यमों (SMEs) को अपनी वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात के लिये प्रोत्साहित करेंगी।

अभ्यास प्रश्न: भारत और ब्रिटेन के बीच औपचारिक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की शुरुआत का दोनों देशों के लिये महत्त्व पर चर्चा कीजिये।

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