जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में वन्यजीव संरक्षण
- 13 Dec 2021
- 6 min read
प्रिलिम्स के लिये:वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो, वन्यजीव के लिये संवैधानिक प्रावधान मेन्स के लिये:वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो, वन्य जीवन के लिये संवैधानिक प्रावधान, अवैध वन्यजीव व्यापार का प्रभाव |
चर्चा में क्यों ?
हालिया आँकड़ों के अनुसार वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) और राज्य वन तथा पुलिस अधिकारियों ने पिछले तीन वर्षों (2018-2020) के दौरान भारत में जंगली जानवरों की हत्या या अवैध तस्करी के लगभग 2054 मामले दर्ज़ किये गए है।
- इसे नियंत्रित करने के लिये WCCB ने राज्य प्रवर्तन एजेंसियों के समन्वय के साथ कई प्रजातियों के विशिष्ट प्रवर्तन अभियान चलाए हैं।
- WCCB देश में संगठित वन्यजीव अपराध से निपटने के लिये पर्यावरण और वन मंत्रालय के तहत भारत सरकार द्वारा स्थापित एक वैधानिक बहु-अनुशासनात्मक निकाय है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
प्रमुख बिंदु:
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अवैध वन्यजीव व्यापार का प्रभाव:
- अवैध वन्यजीव व्यापार से उत्पन्न मांगों के कारण प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
- इसके अवैध व्यापार के कारण वन्यजीव संसाधनों का अत्यधिक दोहन पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा करता है।
- अवैध व्यापार संघ के हिस्से के रूप में अवैध वन्यजीव व्यापार देश की अर्थव्यवस्था को कमज़ोर करता है और इस तरह सामाजिक असुरक्षा पैदा करता है।
- जंगली पौधे जो फसलों के लिये आनुवंशिक भिन्नता प्रदान करते हैं (कई दवाओं के लिये प्राकृतिक स्रोत) अवैध व्यापार के कारण संकट में हैं।
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विभिन्न प्रजाति-विशिष्ट प्रवर्तन संचालन:
- ऑपरेशन सेव कुर्मा: जीवित कछुओं और कछुओं के अवैध शिकार, परिवहन तथा अवैध व्यापार पर ध्यान केंद्रित करना।
- ऑपरेशन टर्टशील्ड: इसे जीवित कछुओं के अवैध व्यापार से निपटने के लिये लिया गया था।
- ऑपरेशन लेसनो: वन्यजीवों की कम ज्ञात प्रजातियों में अवैध वन्यजीव व्यापार की ओर प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान आकर्षित करना।
- ऑपरेशन क्लीन आर्ट: नेवला हेयर ब्रश में अवैध वन्यजीव व्यापार की ओर प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान आकर्षित करने के लिये।
- ऑपरेशन सॉफ्टगोल्ड: शाहतोश शॉल (चिरू ऊन से बने) अवैध व्यापार से निपटने के लिये और इस व्यापार में लगे बुनकरों तथा व्यापारियों के बीच ज़ागरूकता फैलाने के लिये।
- ऑपरेशन बीरबिल: जंगली बिल्ली और जंगली पक्षी प्रजातियों के अवैध व्यापार पर अंकुश लगाने के लिये।
- ऑपरेशन वाइल्डनेट: इसका उद्देश्य देश के भीतर प्रवर्तन एजेंसियों का ध्यान सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का उपयोग करके इंटरनेट पर बढ़ते अवैध वन्यजीव व्यापार पर ध्यान केंद्रित करना था।
- ऑपरेशन फ्रीफ्लाई: जीवित पक्षियों के अवैध व्यापार को रोकने के लिये।
- ऑपरेशन वेटमार्क: देश भर के ‘वैट मार्केट्स’ में जंगली जानवरों के माँस की बिक्री पर रोक सुनिश्चित करना।
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वन्यजीव संरक्षण के लिये भारत का घरेलू कानूनी ढाँचा:
- वन्य जीवों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
- 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 से वन और वन्य पशुओं तथा पक्षियों का संरक्षण राज्य से समवर्ती सूची में स्थानांतरित कर दिया गया था।
- संविधान के अनुच्छेद 51 A (G) में कहा गया है कि वनों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा तथा सुधार करना प्रत्येक नागरिक का मौलिक कर्तव्य होगा।
- राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों में अनुच्छेद 48 ए में कहा गया है कि राज्य पर्यावरण की रक्षा और सुधार करने तथा देश के जंगलों एवं वन्यजीवों की रक्षा करने का प्रयास करेगा।
- कानूनी ढाँचा:
- वन्य जीवों के लिये संवैधानिक प्रावधान:
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वैश्विक वन्यजीव संरक्षण प्रयासों के साथ भारत का सहयोग:
- वन्य जीवों और वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय (CITES)
- वन्यजीवों की प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय (CMS)
- जैविक विविधता पर अभिसमय (CBD)
- विश्व विरासत अभिसमय
- रामसर अभिसमय
- वन्यजीव व्यापार निगरानी नेटवर्क (TRAFFIC)
- वनों पर संयुक्त राष्ट्र फोरम (UNFF)
- अंतर्राष्ट्रीय व्हेलिंग आयोग (IWC)
- अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (IUCN)
- ग्लोबल टाइगर फोरम (GTF)