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तितली, फैलिन और हुदहुद अक्तूबर में ही क्यों?

  • 15 Oct 2018
  • 5 min read

संदर्भ

हाल ही में ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश के तटीय क्षेत्रों से तितली नामक तूफान ने दस्तक दी। पिछले पाँच सालों में इन्हीं तटीय क्षेत्रों से टकराने वाला यह तीसरा प्रमुख तूफान था। ध्यान देने योग्य बात यह है कि इन सभी तूफानों ने अक्तूबर के महीने में ही दस्तक दी। निश्चित समयावधि पर तूफानों के दस्तक देने के पीछे कुछ खास भौतिक कारण हैं।

मौसम और बारंबारता

  • IIT भुवनेश्वर के पृथ्वी, महासागर एवं जलवायु विज्ञान विद्यापीठ के वैज्ञानिकों ने बंगाल की खाड़ी के अवलोकनों का हवाला देते हुए जिक्र किया कि “इस क्षेत्र में तूफान बारंबार आते रहे हैं। आखिर इन तूफानों की बारंबारता की वज़ह क्या है?”
  • उत्तर-पश्चिम प्रशांत टाइफून के लिये दुनिया के सबसे सक्रिय बेसिनों में से एक है। नज़दीक होने की वज़ह से फिलीपींस, चीन और दक्षिण एशियाई क्षेत्रों में प्रमुख तूफानों के अवशेष दस्तक देते हैं।
  • इन स्थानों की वज़ह से कम दबाव की स्थिति उत्पन्न होती है जो चक्रवात में विकसित हो जाती है।
  • तितली, फैलिन (2013) और हुदहुद (2014) जैसे चक्रवात आमतौर पर अक्तूबर में दस्तक देते हैं क्योंकि इस दौरान विंड शियर (wind shear) कम होता है।
  • विंड शियर अलग-अलग सतहों पर हवा की गति तथा उसकी दिशा के बीच का अंतर होता है।
  • जब न्यून विंड शियर 26 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान वाली समुद्री सतह के साथ संयुक्त होता है, तब चक्रवात की संभावना बढ़ जाती है।
  • मानसून के दौरान चक्रवात बहुत दुर्लभ होते हैं क्योंकि विंड शियर बहुत ज़्यादा होता है।

भविष्यवाणी करना मुश्किल

  • वैज्ञानिकों के अनुसार, बजटीय और मौसम संबंधी कारकों की वजह से पूर्वानुमान लगाना मुश्किल हो जाता है।
  • अटलांटिक बेसिन में अमेरिका ने ऐसे विमानों को नियुक्त किया है जो नमी के स्तर का अध्ययन करने तथा चक्रवात पार्श्वचित्र पर विभिन्न आँकड़े एकत्र करने के लिये सीधे बादलों के बीच उड़ान भरते हैं।
  • समुद्र में विकसित होने वाले चक्रवातों के अध्ययन हेतु भारतीय वैज्ञानिकों को सेटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीरों पर निर्भर रहना पड़ता है। ये तस्वीरें नमी की मात्रा तथा तीव्रता पर बहुत कम आँकड़े प्रदान करती हैं। 
  • भारत तूफानों के पूर्वानुमान में प्रयुक्त होने वाले मॉडल अमेरिका और यूरोप से प्राप्त करता है लेकिन इन मॉडलों को नियमित रूप से अपग्रेड करने हेतु संसाधनों की कमी की वज़ह से सटीक पूर्वानुमान नहीं प्राप्त कर पाता है।

प्रभावित क्षेत्र से निकासी

  • शोधकर्त्ता निकासी प्रक्रिया को हॉरिजॉन्टल, वर्टीकल और प्रभावित-क्षेत्र में ही आश्रय के रूप में वर्गीकृत करते हैं।
  • हॉरिजॉन्टल निकासी प्रक्रिया में, प्रभावित क्षेत्र को पूरी तरह से खाली करा लिया जाता है। लेकिन भारत में सड़कों तथा यातायात की खराब हालत की वज़ह से शायद ही कभी इस प्रक्रिया का पालन किया जाता है।
  • वर्टीकल निकासी प्रक्रिया में, लोगों को प्रभावित क्षेत्र के भीतर ही विशेष रूप से बनाई गई इमारतों में ले जाया जाता है। तितली चक्रवात के दौरान काफी हद तक इस रणनीति का पालन किया गया था।
  • प्रभावित-क्षेत्र में ही आश्रय, इस निकासी प्रक्रिया में मौजूदा घरों और सामुदायिक भवनों की किलेबंदी करना शामिल हैं। इस प्रक्रिया में भी वित्तीय संसाधनों की आवश्यकता होती है।

क्या भारत में निकासी प्रभावी होती है?

सरकार के मुताबिक तितली चक्रवात के दौरान करीब 3 लाख लोगों को सफलतापूर्वक निकाला गया था। हालाँकि बिट्स पिलानी के एक शोधकर्त्ता के अनुसार, आपदा प्रबंधन की सफलता के रूप में व्यापकता से इस्तेमाल किये गए मानक, जैसे कि ‘कुल निकासी’, भ्रामक हैं। तितली, फैलिन और हुदहुद चक्रवातों के दौरान ज़्यादातर ज़िंदगियाँ इसलिये बच गईं क्योंकि 1999 के सुपरसाइक्लोन की तरह इनमें खतरनाक लहरें नहीं थीं।

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