पश्चिम बंगाल का लिंचिंग विरोधी विधेयक | 31 Aug 2019
चर्चा में क्यों?
पश्चिम बंगाल विधानसभा ने भीड़ के हमले और हिंसा को रोकने तथा इस संदर्भ में दंड का प्रावधान करने के उद्देश्य से पश्चिम बंगाल (लिंचिंग रोकथाम) विधेयक, 2019 [The West Bengal (Prevention of Lynching) Bill, 2019] विधेयक पारित किया है।
प्रमुख बिंदु:
- पश्चिम बंगाल (लिंचिंग रोकथाम) विधेयक, 2019 में किसी व्यक्ति को घायल करने वालों को तीन साल से लेकर आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान किया गया है और यदि लिंचिंग से किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो मृत्युदंड या कठोर आजीवन कारावास का प्रावधान भी है।
- हाल ही में राजस्थान ने भी लिंचिंग को रोकने के विरुद्ध एक विधेयक पारित किया था।
- भारत में लिंचिंग के विरुद्ध पहला विधेयक मणिपुर ने पास किया था।
- 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने भी लिंचिंग पर अंकुश लगाने के लिये दिशा-निर्देश जारी किए थे।
लिंचिंग रोकथाम हेतु सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश
- DSP स्तर का अधिकारी भीड़ द्वारा की गई हिंसा की जाँच करेगा और लिंचिंग को रोकने में सहयोग करेगा।
- एक स्पेशल टास्क फोर्स का गठन किया जाए, जो ऐसे लोगों के बारे में खुफिया जानकारी एकत्रित करेगा जो इस तरह की वारदात को अंजाम देना चाहते हैं या फेक न्यूज़ फैला रहे हैं।
- राज्य सरकार ऐसे क्षेत्रों की पहचान करे जहाँ लिंचिंग की घटनाएँ हुई हैं और इस संदर्भ में पाँच साल के आँकड़े एकत्रित करे। केंद्र और राज्य आपस में समन्वय स्थापित करें। साथ ही सरकार भीड़ द्वारा हिंसा के खिलाफ जागरूकता का प्रसार करे।
- ऐसे मामलों में IPC की धारा 153A या अन्य धाराओं में तुरंत केस दर्ज हो तथा चार्जशीट दाखिल हो एवं नोडल अधिकारी इसकी निगरानी करे।
- राज्य सरकार दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 के तहत भीड़ हिंसा से पीड़ितों के लिये मुआवज़े की योजना बनाए और चोट की गंभीरता के अनुसार मुआवज़ा राशि तय करे।
- ऐसे मामलों की सुनवाई फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो और संबंधित धारा में ट्रायल कोर्ट अधिकतम सज़ा दे।
- लापरवाही बरतने पर पुलिस अधिकारी के विरुद्ध भी कार्यवाही की जाए।
क्या होती है मॉब लिंचिंग?
- जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग कहते हैं। इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।