वेस्ट बैंक अधिग्रहण | 19 May 2020
प्रीलिम्स के लियेवेस्ट बैंक की भौगोलिक स्थिति मेन्स के लियेभू-रणनीतिक महत्त्व और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो (Mike Pompeo) इज़राइल की यात्रा पर गए, जहाँ उनकी प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू (Benjamin Netanyahu) से वेस्ट बैंक (West Bank) के अधिग्रहण को लेकर वार्ता हुई।
प्रमुख बिंदु
- पोम्पियो की इज़राइल यात्रा संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ गठबंधन का शक्ति प्रदर्शन थी। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के मध्य ईरान से जुड़ी साझा चिंताओं, कोरोना वायरस के विरुद्ध सामूहिक सहयोग के साथ इज़राइल और चीन की निकटता पर चर्चा की गई।
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इज़राइल के नीति-नियंता नवंबर, 2020 में होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव से पहले मध्यपूर्व के भू-भाग में भू-रणनीतिक बदलाव करना चाहते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जो बिडेन (Joe Biden) वेस्ट बैंक के अधिग्रहण को लेकर इज़राइल के एकतरफा निर्णय के खिलाफ हैं।
- वेस्ट बैंक का इज़राइल में अधिग्रहण राष्ट्रपति ट्रंप को आने वाले चुनाव में ईसाई मतदाताओं को लुभाने में सहायता कर सकता है, क्योंकि ईसाई समुदाय का यह मानना है कि ईश्वर ने यहूदियों को उनकी भूमि पर स्थापित करने का वचन दिया था, जिसे अब पूरा किया जाना चाहिये।
वेस्ट बैंक क्या है?
- वेस्ट बैंक, इज़राइल के पूर्व में इज़राइल-जॉर्डन सीमा पर स्थित लगभग 6,555 वर्ग किमी. के भू-भाग में फैला है। जॉर्डन नदी के पश्चिमी तट पर स्थित होने की वजह से इसे वेस्ट बैंक कहा जाता है।
- वर्ष 1948 में हुए प्रथम अरब-इज़राइल युद्ध में जॉर्डन ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया परंतु वर्ष 1967 में हुए तीसरे अरब-इज़राइल युद्ध (छः दिवसीय युद्ध) में अरब देशों की हार के बाद इज़राइल ने इसे पुनः प्राप्त कर लिया।
- तभी से इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्से पर इज़राइल का अधिकार है तथा इजराइल ने वेस्ट बैंक में लगभग 130 स्थायी बस्तियाँ बसाई हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में पिछले 25 वर्षों में अनेकों छोटी-बड़ी बस्तियाँ स्थापित हुई हैं।
पृष्ठभूमि
- इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष का स्पष्ट प्रमाण 20वीं शताब्दी के प्रारंभ से मिलता है। जब मध्य-पूर्व का क्षेत्र यहूदियों और अरब के बीच अपना वर्चस्व स्थापित करने का अखाड़ा बन गया।
- मध्य-पूर्व युद्ध 1967: इसे छह-दिवसीय युद्ध या तीसरे अरब-इजरायल युद्ध के रूप में भी जाना जाता है । इज़राइल ने युद्ध में वेस्ट बैंक, पूर्वी यरुशलम और गाजा पट्टी पर कब्ज़ा कर लिया। इज़राइल ने वेस्ट बैंक और पूर्वी यरुशलम में कई बस्तियाँ बनाई हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इन बस्तियों को अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन और शांति के लिये बाधा मानते हैं।
- ट्रंप द्वारा जनवरी 2020 में प्रस्तुत मध्य पूर्व योजना (सीमित राज्य का दर्ज़ा) को फिलिस्तीन द्वारा नकार दिया गया और उनके द्वारा ओस्लो शांति समझौते के प्रमुख प्रावधानों से हटने की धमकी दी गई, जोकि 1990 के दशक में इज़राइल और फिलिस्तीनियों के बीच हुए समझौतों की एक श्रृंखला है।
आलोचना
- इज़राइल के द्वारा किया जाने वाला विलय व्यापक रूप से अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन कर तनाव में वृद्धि करेगा क्योंकि यह मध्य-पूर्व युद्ध के बाद इज़राइल द्वारा कब्ज़ा की गई भूमि पर एक व्यवहार्य राज्य स्थापित करने की फिलिस्तीन की उम्मीदों को समाप्त कर देगा।
- अरब लीग इस अधिग्रहण को युद्ध अपराध के रूप में देखता है।
- यूरोपीय संघ ने इज़राइल के इस प्रस्ताव को शांति प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करने वाला बताया है।
भारत का रुख
- भारत ने आज़ादी के पश्चात् लंबे समय तक इज़राइल के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं रखे, जिससे यह स्पष्ट था कि भारत, फिलिस्तीन की मांगों का समर्थन करता है, किंतु वर्ष 1992 में इज़राइल से भारत के औपचारिक कूटनीतिक संबंध बने और अब यह रणनीतिक संबंध में परिवर्तित हो गए हैं तथा अपने उच्च स्तर पर हैं।
- वर्ष 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के विभाजन के विरुद्ध मतदान किया था।
- भारत पहला गैर-अरब देश था, जिसने वर्ष 1974 में फिलिस्तीनी जनता के एकमात्र और कानूनी प्रतिनिधि के रूप में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को मान्यता प्रदान की थी। साथ ही भारत वर्ष 1988 में फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले शुरुआती देशों में शामिल था।
- भारत ने फिलिस्तीन से संबंधित कई प्रस्तावों का समर्थन किया है, जिनमें सितंबर 2015 में सदस्य राज्यों के ध्वज की तरह अन्य प्रेक्षक राज्यों के साथ संयुक्त राष्ट्र परिसर में फिलिस्तीनी ध्वज लगाने का भारत का समर्थन प्रमुख है।
- जून 2019 में भारत ने, संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (United NationsEconomic and Social Council-UN ECOSOC) में फिलिस्तीन के एक गैर-सरकारी संगठन को सलाहकार का दर्ज़ा देने के विरोध में इज़राइल के प्रस्ताव का समर्थन किया।
- भारत ने हमेशा से दोनों देशों के मध्य अपनी संतुलन की नीति को बरकरार रखा है।