मनरेगा के तहत संशोधित मज़दूरी दर | 07 Apr 2022
प्रिलिम्स के लिये:महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGS), न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948, डॉ अनूप सत्पथी समिति। मेन्स के लिये:गरीबी, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, विकास से संबंधित मुद्दे, मनरेगा और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिये महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत नई मज़दूरी दरों को अधिसूचित किया है।
- मज़दूरी दरों को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम, 2005 के तहत अधिसूचित किया गया है।
- मनरेगा मज़दूरी दर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-कृषि श्रम (CPI-AL) में बदलाव के अनुसार तय की जाती है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में मुद्रास्फीति में वृद्धि को दर्शाता है।
संशोधित दरें:
- 34 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 5% से कम वृद्धि तथा 10 राज्यों में 5% से अधिक की वृद्धि हो रही है।
- जिन 31 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मज़दूरी में वृद्धि देखी गई, उनमें से सबसे अधिक 7.14% गोवा में दर्ज की गई है।
- सबसे कम 1.77% की वृद्धि मेघालय में हुई है।
- तीन राज्यों- मणिपुर, मिज़ोरम और त्रिपुरा की मज़दूरी दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है।
मनरेगा:
- परिचय: मनरेगा दुनिया के सबसे बड़े कार्य गारंटी कार्यक्रमों में से एक है।
- योजना का प्राथमिक उद्देश्य किसी भी ग्रामीण परिवार के सार्वजनिक कार्य से संबंधित अकुशल शारीरिक कार्य करने के इच्छुक वयस्क सदस्यों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के रोज़गार की गारंटी देना है।
- कार्य का कानूनी अधिकार: पहले की रोज़गार गारंटी योजनाओं के विपरीत मनरेगा का उद्देश्य अधिकार-आधारित ढाँचे के माध्यम से चरम निर्धनता के कारणों का समाधान करना है।
- लाभार्थियों में कम-से-कम एक-तिहाई महिलाएँ होनी चाहिये।
- मज़दूरी का भुगतान न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम, 1948 के तहत राज्य में कृषि मज़दूरों के लिये निर्दिष्ट वैधानिक न्यूनतम मज़दूरी के अनुरूप किया जाना चाहिये।
- मांग-प्रेरित योजना: मनरेगा की रूपरेखा का सबसे महत्त्वपूर्ण अंग यह है कि इसके तहत किसी भी ग्रामीण वयस्क को मांग करने के 15 दिनों के भीतर काम पाने की कानूनी रूप से समर्थित गारंटी प्राप्त है, जिसमें विफल होने पर उसे 'बेरोज़गारी भत्ता' प्रदान किया जाता है।
- यह मांग-प्रेरित योजना श्रमिकों के स्व-चयन (Self-Selection) को सक्षम बनाती है।
- विकेंद्रीकृत योजना: इन कार्यों के योजना निर्माण और कार्यान्वयन में पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ सौंपकर विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया को सशक्त करने पर बल दिया गया है।
- अधिनियम में आरंभ किये जाने वाले कार्यों की सिफारिश करने का अधिकार ग्राम सभाओं को सौंपा गया है और इन कार्यों को कम-से-कम 50% उनके द्वारा ही निष्पादित किया जाता है।
योजना के कार्यान्वयन से संबद्ध समस्याएँ:
- धन के वितरण में देरी और अपर्याप्तता: अधिकांश राज्य मनरेगा द्वारा निर्दिष्ट 15 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से मज़दूरी भुगतान करने में विफल रहे हैं। इसके साथ ही मज़दूरी भुगतान में देरी हेतु श्रमिकों को मुआवज़ा भी नहीं दिया जाता है।
- इसने योजना को एक आपूर्ति-आधारित कार्यक्रम में बदल दिया है और इसके परिणामस्वरूप श्रमिक इसके तहत काम करने में रुचि नहीं ले रहे हैं।
- इस बात के पर्याप्त साक्ष्य मिलते रहे हैं और इसे स्वयं वित्त मंत्रालय द्वारा स्वीकार किया गया है कि मज़दूरी भुगतान में देरी धन की अपर्याप्तता का परिणाम है।
- जाति आधारित पृथक्करण: भुगतान में देरी के मामले में जाति के आधार पर भी उल्लेखनीय भिन्नताएँ नज़र आई हैं, जबकि निर्दिष्ट सात दिनों की अवधि के अंदर अनुसूचित जाति के श्रमिकों के लिये 46% और अनुसूचित जनजाति के श्रमिकों के लिये 37% भुगतान सुनिश्चित होता नज़र आया था, गैर-एससी/एसटी श्रमिकों के लिये यह मात्र 26% था।
- मध्य प्रदेश, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल जैसे गरीब राज्यों में जाति-आधारित पृथक्करण का नकारात्मक प्रभाव तीव्र रूप से महसूस किया गया है।
- पंचायती राज संस्थाओं की अप्रभावी भूमिका: बेहद कम स्वायत्तता के कारण ग्राम पंचायतें इस अधिनियम को प्रभावी और कुशल तरीके से लागू करने में सक्षम नहीं हैं।
- बड़ी संख्या में अधूरे कार्य: मनरेगा के तहत कार्यों को पूरा करने में देरी हुई है और परियोजनाओं का निरीक्षण अनियमित रहा है। इसके साथ ही मनरेगा के तहत संपन्न कार्य की गुणवत्ता व परिसंपत्ति निर्माण समस्याजनक रही है।
- जॉब कार्ड में धांधली: फर्जी जॉब कार्ड, कार्ड में फर्जी नाम शामिल करने, अपूर्ण प्रविष्टियाँ और जॉब कार्डों में प्रविष्टियाँ करने में देरी जैसी भी कई समस्याएँ मौजूद हैं।
आगे की राह
- विभिन्न सरकारी विभागों और कार्य आवंटन तथा मापन तंत्र के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता है।
- भुगतान अदायगी के मामले में व्याप्त कुछ विसंगतियों को भी दूर करने की ज़रूरत है। उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र की महिलाओं को अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में औसतन 22.24% कम आय प्राप्त होती है।
- राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि हर गाँव में सार्वजनिक कार्य शुरू हो। कार्यस्थल पर आने वाले श्रमिकों को बिना किसी देरी के तुरंत काम दिया जाना चाहिये।
- स्थानीय निकायों को सक्रियता से वापस लौटे और क्वारंटाइन किये गए प्रवासी कामगारों की सहायता करना चाहिये तथा उन लोगों की मदद करनी चाहिये जिन्हें जॉब कार्ड प्राप्त करने की आवश्यकता है।
- ग्राम पंचायतों को कार्यों को मंज़ूरी देने, कार्य की मांग पर इसकी पूर्ति करने और समयबद्ध मज़दूरी भुगतान सुनिश्चित करने हेतु पर्याप्त संसाधन, शक्तियाँ तथा उत्तरदायित्व सौंपे जाने की आवश्यकता है।
- मनरेगा को सरकार की अन्य योजनाओं, जैसे- ग्रीन इंडिया पहल, स्वच्छ भारत अभियान आदि के साथ संबद्ध किया जाना भी उपयुक्त होगा।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन "महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम" से लाभान्वित होने के पात्र हैं? (2011) (a) केवल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति परिवारों के वयस्क सदस्य उत्तर: (d) |