वन्नियाकुला आरक्षण असंवैधानिक: मद्रास उच्च न्यायालय | 03 Nov 2021

प्रिलिम्स के लिये:

आरक्षण, उच्च न्यायालय, आदर्श आचार संहिता, भारत का चुनाव आयोग

मेन्स के लिये:

शासन व्यवस्था में शक्ति पृथक्करण एवं संबंधित मुद्दे 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित आरक्षण विधेयक को असंवैधानिक घोषित किया है।

  • इस विधेयक में शिक्षा और सार्वजनिक रोज़गार में सबसे पिछड़े वर्गों (MBC) के लिये निर्धारित 20% के भीतर वन्नियाकुला क्षत्रिय समुदाय को 10.5% आंतरिक आरक्षण प्रदान करने की परिकल्पना की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • वन्नियाकुला क्षत्रिय आरक्षण के बारे में: 
    • यह आरक्षण राज्य के तहत अति पिछड़ा वर्ग और विमुक्त समुदाय अधिनियम, 2021 के लिये प्रदान किया गया था।
    • इसमें वन्नियाकुला क्षत्रिय (वन्नियार, वनिया, वन्निया गौंडर, गौंडर या कंदर, पडायाची, पल्ली और अग्निकुल क्षत्रिय सहित) समुदाय को शामिल किया गया था।
    • वर्ष 1983 में दूसरे तमिलनाडु पिछड़ा आयोग ने माना कि वन्नियाकुला क्षत्रियों की आबादी राज्य की कुल आबादी का 13.01% थी।
    • इसलिये 13.01% की आबादी वाले समुदाय को 10.5% आरक्षण के प्रावधान को अनुपातहीन नहीं कहा जा सकता है।
  • विधेयक को चुनौती देने के लिये आधार: 
    • फरवरी 2021 में राज्य में आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू होने से कुछ घंटे पहले विधेयक पारित होने के कारण इसको चुनौती दी गई थी।
    • इसके अलावा याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि अधिनियम राजनीति से प्रेरित था और कानून जल्दबाजी में पारित किया गया था।
  • तमिलनाडु सरकार का तर्क: 
    • लोकतांत्रिक राजनीति में एक निर्वाचित सरकार को अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी विधेयक को कानून बनाने की नीति बनाने की उसकी शक्ति के प्रयोग से नहीं रोका जा सकता है। राज्य सरकार के पास अंतिम समय तक जनता की राय को पूरा करने की शक्ति होती है।
    • वर्ष 2020 में राज्य में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिये छह महीने के भीतर सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ए. कुलशेखरन की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की गई थी।
      • तमिलनाडु सरकार ने माना कि आयोग ने अपने कार्यकाल की अवधि में कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की।
    • इसके अलावा राज्य सरकार ने वर्ष 2007 के एक अधिनियम का उल्लेख किया जिसके माध्यम से राज्य में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को अलग आरक्षण प्रदान किया गया, जिसके आधार पर भी राज्य सरकार को इस तरह के विधेयक को पारित करने का अधिकार था। 

आदर्श आचार संहिता

  • आदर्श आचार संहिता (MCC) निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के विनियमन तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
  • आदर्श आचार संहिता (MCC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुरूप है, जिसके तहत निर्वाचन आयोग (EC) को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की निगरानी और संचालन करने की शक्ति दी गई है।
  • नियमों के मुताबिक, आदर्श आचार संहिता उस तारीख से लागू हो जाती है जब निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा की जाती है और यह चुनाव परिणाम घोषित होने की तारीख तक लागू रहती है। 
  • विकास:
    • आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी, जब राज्य प्रशासन ने राजनीतिक भागीदारों के लिये एक ‘आचार संहिता' तैयार की थी।
    • इसके पश्चात् वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग (EC) ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों को फीडबैक के लिये आचार संहिता का एक प्रारूप भेजा, जिसके बाद से देश भर के सभी राजनीतिक दलों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है।

चुनाव के लिये संवैधानिक प्रावधान

  • भारतीय संविधान का भाग XV चुनावों से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग की स्थापना करता है।
  • चुनाव आयोग की स्थापना संविधान के अनुसार 25 जनवरी, 1950 को हुई थी।
  • संविधान का अनुच्छेद 324 से 329 आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित है।

चुनाव से संबंधित अनुच्छेद

324

चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित होना।

325

किसी भी व्यक्ति द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी विशेष मतदाता सूची में शामिल होने या शामिल होने का दावा करना।

326

लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे।

327

विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति।

328

ऐसे विधानमंडल के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने के लिये राज्य के विधानमंडल की शक्ति।

329

चुनावी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर रोक।

स्रोत: द हिंदू