सक्रिय दवा सामग्री पर TIFAC की सिफारिशें | 16 Jul 2020
प्रीलिम्स के लिये:सक्रिय दवा सामग्री, TIFAC, भारत में दवा उद्योग मेन्स के लिये:सक्रिय दवा सामग्री |
चर्चा में क्यों?
भारत सरकार के 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' के अंतर्गत एक स्वायत्त संगठन 'प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद' (Technology Information Forecasting and Assessment Council- TIFAC) द्वारा हाल ही में 'सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredients- API): स्थिति, मुद्दे, प्रौद्योगिकी की तत्परता और चुनौतियाँ’ शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की गई।
प्रमुख बिंदु:
- यह रिपोर्ट 'पोस्ट COVID-19 पीरियड' में 'आत्मनिर्भर भारत' के निर्माण की दिशा में 'मेक इन इंडिया’ पहल के तहत जारी श्वेत पत्र; 'हस्तक्षेप के मुख्य क्षेत्र’ के तहत सुझाव देने की दिशा में है।
- रिपोर्ट के अनुसार, बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य और बदलते व्यापार परिदृश्य के मद्देनज़र भारत को API के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की आवश्यकता है।
‘सक्रिय दवा सामग्री’ (Active Pharmaceutical Ingredient-API):
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी रोग के उपचार, रोकथाम अथवा अन्य औषधीय गतिविधि के लिये आवश्यक दवा के निर्माण में प्रयोग होने वाले पदार्थ या पदार्थों के संयोजन को ‘सक्रिय दवा सामग्री’ के नाम से जाना जाता है।
भारत में दवा उद्योग:
- कुल आयतन के अनुसार, भारत का फार्मास्युटिकल उद्योग चीन और इटली के बाद विश्व में तीसरे जबकि मूल्य के संदर्भ में चौदहवें स्थान पर है।
- भारत में 3,000 दवा कंपनियों का मज़बूत नेटवर्क है। वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, 20.03 बिलियन डॉलर के घरेलू टर्नओवर के साथ लगभग 10,500 विनिर्माण इकाइयाँ देश में कार्यरत हैं, जो दुनिया के 200 से अधिक देशों में निर्यात करती हैं।
API उद्योग के साथ समस्या:
- बहुत मज़बूत आधार के बावजूद कम-लाभ होने के कारण घरेलू दवा कंपनियों ने धीरे-धीरे API का उत्पादन बंद कर दिया है और API का आयात करना शुरू कर दिया है, जो दवाओं पर बढ़ते लाभ मार्जिन के कारण एक सस्ता विकल्प था।
- चीन से भारत का API का आयात लगातार बढ़ रहा है, जो वर्तमान में भारत कुल API आयात का लगभग 68% है।
प्रमुख सिफारिशें:
- चीन के साथ बढ़ते API आयात को कम करने तथा देश को दवा उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने के लिये ‘प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद’ (TIFAC) ने निम्नलिखित सिफारिश की है:
व्यापक पैमाने पर उत्पादन:
- इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी विकास के मुख्य ध्यान 'व्यापक पैमाने पर उत्पादन' पर केंद्रित करना चाहिये।
- API के संश्लेषण के लिये परिभाषित लक्ष्य के साथ केमिकल इंजीनियरिंग में ‘मिशन मोड परियोजना’ की आवश्यकता है।
- 'मेगा ड्रग मैन्युफैक्चरिंग क्लस्टर्स' बनाए जाने की आवश्यकता है।
- API के उत्पादन में लागत अनुकूलन के लिये प्रक्रिया चरणों को कम करने की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है।
चिरल बिल्डिंग ब्लॉक का उत्पादन:
- चिरल बिल्डिंग ब्लॉक (Chiral Building Blocks) दवाओं के संश्लेषण में प्रयुक्त होने वाले मूल्यवान मध्यवर्ती होते हैं।
- भारतीय API उद्योग को अधिकतम सफल बनाने के लिये जैव उत्प्रेरकों के माध्यम से चिरल बिल्डिंग ब्लॉक के उत्पादन पर बल देने की आवश्यकता है। क्योंकि अनेक एंटीवायरल दवाओं के उत्पादन में ‘न्यूक्लिक एसिड बिल्डिंग ब्लॉकों’ की आवश्यकता होती है।
अकादमिक-उद्योग संपर्क:
- प्रौद्योगिकी विकास, त्वरित प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा दवा उद्योग के व्यवसायीकरण के लिये अकादमिक/शिक्षा व्यवस्था और उद्योगों के मध्य बेहतर संपर्क की आवश्यकता है।
सरकारी प्रोत्साहन की आवश्यकता:
- कुछ क्षेत्रों जैसे रासायनिक खंडों जैसे स्टेरॉयड, अमीनो एसिड, कार्बोहाइड्रेट, न्यूक्लियोसाइड्स आदि में काम करने वाली भारतीय कंपनियों को सरकारी प्रोत्साहन दिये जाने की आवश्यकता है।
'प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद'
(Technology Information Forecasting and Assessment Council- TIFAC):
- वर्ष 1985 में 'प्रौद्योगिकी नीति कार्यान्वयन समिति' (Technology Policy Implementation Committee- TPIC) की सिफारिशों के आधार पर वर्ष 1986 में कैबिनेट द्वारा TIFAC के गठन को मंज़ूरी दी गई।
- 'विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग' के तहत एक स्वायत्त निकाय के रूप में फरवरी, 1988 प्रौद्योगिकी सूचना पूर्वानुमान और मूल्यांकन परिषद (TIFAC) का गठन किया गया।
- इसका गठन एक पंजीकृत सोसायटी के रूप में किया गया है।
- यह अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का आकलन करने और महत्त्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक क्षेत्रों में भारत में भविष्य के तकनीकी विकास की दिशा निर्धारित करने में कार्य करता है।