भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट | 19 May 2022
प्रिलिम्स के लिये:भारत में असमानता की स्थिति रिपोर्ट, ईएसी-पीएम, पीएलएफएस, सकल नामांकन अनुपात, विश्व असमानता रिपोर्ट 2022, भारत असमानता रिपोर्ट 2021, बहुआयामी गरीबी सूचकांक (एमपीआई)। मेन्स के लिये:भारत में असमानता की स्थिति और संबंधित मुद्दे। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (EAC-PM) द्वारा 'भारत में असमानता की स्थिति' रिपोर्ट जारी की गई।
रिपोर्ट के बारे में:
- परिचय:
- यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू विशेषताओं और श्रम बाज़ार के क्षेत्रों में असमानताओं पर जानकारी संकलित करती है।
- इन क्षेत्रों में असमानताएँ जनसंख्या को अधिक संवेदनशील बनाती हैं और बहुआयामी गरीबी को प्रेरित करती हैं।
- यह रिपोर्ट देश में विभिन्न अभावों के पारिस्थितिकी तंत्र के संबंध में व्यापक विश्लेषण प्रदान कर असमानता की व्यापक जानकारी प्रस्तुत करती है, जिसका जनसंख्या के कल्याण और समग्र विकास पर सीधा प्रभाव पड़ता है।
- यह रिपोर्ट स्वास्थ्य, शिक्षा, घरेलू विशेषताओं और श्रम बाज़ार के क्षेत्रों में असमानताओं पर जानकारी संकलित करती है।
- रिपोर्ट के अंश:
- रिपोर्ट को दो खंडों में विभाजित किया गया है- आर्थिक पहलू और सामाजिक-आर्थिक अभिव्यक्तियाँ, यह पाँच प्रमुख क्षेत्रों की जाँच करती है जो असमानता की प्रकृति एवं अनुभव को प्रभावित करते हैं।
- पांँच प्रमुख क्षेत्र हैं- आय वितरण, श्रम बाज़ार की गतिशीलता, स्वास्थ्य, शिक्षा और घरेलू विशेषताएंँ ।
- रिपोर्ट को दो खंडों में विभाजित किया गया है- आर्थिक पहलू और सामाजिक-आर्थिक अभिव्यक्तियाँ, यह पाँच प्रमुख क्षेत्रों की जाँच करती है जो असमानता की प्रकृति एवं अनुभव को प्रभावित करते हैं।
- रिपोर्ट का आधार:
- यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) तथा यूनाइटेड इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) के विभिन्न चरणों से प्राप्त आँकड़ों पर आधारित है।
- इस रिपोर्ट का प्रत्येक अध्याय बुनियादी ढाँचे की क्षमता और असमानता पर प्रभाव के संदर्भ में मामलों की वर्तमान स्थिति, चिंता के विषयों, सफलताओं तथा विफलताओं की व्याख्या करता है।
- यह रिपोर्ट आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS), राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) तथा यूनाइटेड इनफॉर्मेशन सिस्टम फॉर एजुकेशन प्लस (UDISE+) के विभिन्न चरणों से प्राप्त आँकड़ों पर आधारित है।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- धन संकेंद्रण:
- ग्रामीण क्षेत्रों में केवल 7.1% की तुलना में शहरी क्षेत्रों में 44.4% अधिक धन का संकेंद्रण हुआ है।
- बेरोज़गारी की दर:
- भारत की बेरोज़गारी दर 4.8% (2019-20) है और श्रमिक जनसंख्या अनुपात 46.8% है।
- वर्ष 2019-20 में विभिन्न रोज़गार श्रेणियों में उच्चतम प्रतिशत (45.78%) स्व-नियोजित श्रमिकों का था, इसके बाद नियमित वेतनभोगी श्रमिकों (33.5%) और आकस्मिक श्रमिकों (20.71%) का स्थान है।
- स्व-नियोजित श्रमिकों की हिस्सेदारी भी निम्नतम आय श्रेणियों में सबसे अधिक है।
- भारत की बेरोज़गारी दर 4.8% (2019-20) है और श्रमिक जनसंख्या अनुपात 46.8% है।
- स्वास्थ्य अवसंरचना:
- स्वास्थ्य के बुनियादी ढाँचे के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में ढाँचागत क्षमता पर ध्यान केंद्रित करने से अपेक्षाकृत सुधार हुआ है।
- वर्ष 2005 में भारत में कुल 1,72,608 स्वास्थ्य केंद्रों से बढ़कर वर्ष 2020 में कुल स्वास्थ्य केंद्रों की संख्या 1,85,505 तक पहुँच गई है।
- राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, तमिलनाडु और चंडीगढ़ जैसे राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों ने वर्ष 2005 से वर्ष 2020 के बीच स्वास्थ्य केंद्रों (उप-केंद्र, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र तथा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सहित) में उल्लेखनीय वृद्धि की है।
- घरेलू परिस्थितियाँ:
- वर्ष 2019-20 तक 95% स्कूलों में परिसर के भीतर शौचालय सुविधाएंँ (लड़कों के 95.9% और लड़कियों के 96.3% सुचारु शौचालय) थीं।
- 80.16% स्कूलों में सुचारु विद्युत कनेक्शन था, जबकि गोवा, तमिलनाडु, चंडीगढ़, दिल्ली तथा दादरा एवं नगर हवेली के साथ-साथ दमन व दीव, लक्ष्यद्वीप, पुद्दुचेरी में 100% स्कूलों में विद्युत कनेक्शन मौजूद था।
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 (2019-21) के अनुसार, 97% परिवारों की विद्युत तक पहुंँच है, जबकि 70% के पास बेहतर सफाई सेवाओं तक पहुंँच है तथा 96% को सुरक्षित पीने योग्य जल उपलब्ध है।
- वर्ष 2019-20 तक 95% स्कूलों में परिसर के भीतर शौचालय सुविधाएंँ (लड़कों के 95.9% और लड़कियों के 96.3% सुचारु शौचालय) थीं।
- शिक्षा:
- वर्ष 2018-19 और वर्ष 2019-20 के बीच सकल नामांकन अनुपात भी प्राथमिक, उच्च प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक में बढ़ा है।
- स्वास्थ्य:
- NFHS-4 (2015-16) और NFHS-5 (2019-21) के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के शुरुआती तीन महीनों में गर्भवती महिलाओं में से 58.6 % महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, जो वर्ष 2019-21 में बढ़कर 70% हो गया।
- प्रसव के दो दिनों के भीतर 78% महिलाओं को डॉक्टर या सहायक नर्स से प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त हुई और 79.1% बच्चों को प्रसव के दो दिनों के भीतर प्रसवोत्तर देखभाल प्राप्त हुई।
- हालाँकि अधिक वज़न, कम वज़न और एनीमिया की व्यापकता (विशेषकर बच्चों, किशोर लड़कियों एवं गर्भवती महिलाओं में) के संदर्भ में पोषण की कमी एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है जिस पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है।
- इसके अतिरिक्त कम स्वास्थ्य कवरेज के कारण अधिक जेब खर्च होता है जो गरीबी की घटनाओं को सीधे प्रभावित करता है।
- NFHS-4 (2015-16) और NFHS-5 (2019-21) के आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2015-16 के शुरुआती तीन महीनों में गर्भवती महिलाओं में से 58.6 % महिलाओं का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, जो वर्ष 2019-21 में बढ़कर 70% हो गया।
अन्य संबंधित रिपोर्ट:
रिपोर्ट की सिफारिशें:
- वर्ग की जानकारी प्रदान करने वाले आय स्लैब बनाना।
- यूनिवर्सल बेसिक इनकम की स्थापना।
- रोज़गार सृजित करना, विशेष रूप से शिक्षा के उच्च स्तर के बीच तथा सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिये बजट बढ़ाना।
- सुधार रणनीतियाँ, सामाजिक प्रगति और साझा समृद्धि के लिये एक रोडमैप तैयार करने की आवश्यकता है।