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जैव विविधता और पर्यावरण

‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ट्रीज़ रिपोर्ट’: BGCI

  • 03 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये

स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ट्रीज़ रिपोर्ट

मेन्स के लिये

भारत में विभिन्न वन प्रजातियों की स्थिति और संरक्षण संबंधी उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘बॉटैनिकल गार्डन्स कंज़र्वेशन इंटरनेशनल’ (BGCI) ने ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ट्रीज़ रिपोर्ट’ लॉन्च की है।

  • इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि दुनिया भर में लगभग एक-तिहाई वृक्ष प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा है, जबकि सैकड़ों प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं।
  • BGCI एक सदस्यता संगठन है, जो दुनिया भर के 100 से अधिक देशों में वनस्पति उद्यान का प्रतिनिधित्व करता है। यह ब्रिटेन आधारित एक स्वतंत्र चैरिटी है, जिसकी स्थापना वर्ष 1987 में विश्व के वनस्पति उद्यानों को पादप संरक्षण के लिये एक वैश्विक नेटवर्क से जोड़ने हेतु की गई थी।

प्रमुख बिंदु

  • जोखिमपूर्ण स्थिति वाली प्रजातियाँ
    • रिपोर्ट के मुताबिक, पेड़ों की 17,500 प्रजातियाँ, जो कि कुल प्रजातियों का लगभग 30% है, के विलुप्त होने का खतरा है, जबकि 440 प्रजातियों के 50 से भी कम वृक्ष बचे हैं।
      • प्रत्येक देश के वनस्पतियों का 11% हिस्सा संकटग्रस्त श्रेणी में है।
    • समग्र तौर पर संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों की संख्या संकटग्रस्त स्तनधारियों, पक्षियों, उभयचरों और सरीसृपों की संयुक्त संख्या से दोगुनी है।
  • सबसे अधिक जोखिम वाले वृक्ष:
    • सबसे अधिक जोखिम वाले वृक्षों में ‘मैगनोलिया’ और ‘डिप्टरोकार्प्स’ जैसी प्रजातियाँ शामिल हैं, जो प्रायः दक्षिण-पूर्व एशियाई वर्षावनों में पाई जाती हैं। इसके अलावा ओक के वृक्ष, मेपल के वृक्ष  और आबनूस भी समान खतरों का सामना कर रहे हैं।
  • उच्चतम जोखिम वाले देश:
    • वृक्ष-प्रजातियों की विविधता के लिये प्रसिद्ध दुनिया के शीर्ष छह देशों में पेड़ों की हज़ारों किस्मों के विलुप्त होने का खतरा है।
    • सबसे अधिक खतरा ब्राज़ील में है, जहाँ 1,788 प्रजातियाँ खतरे में हैं। अन्य पाँच देश इंडोनेशिया, मलेशिया, चीन, कोलंबिया और वेनेज़ुएला हैं।
      • ऐसे कुल 27 देश हैं, जहाँ पेड़ों की कोई संकटग्रस्त प्रजाति नहीं है।
  • द्वीपीय वृक्ष:
    • यद्यपि अधिक विविधता वाले देशों में विलुप्ति के जोखिम से प्रभावित किस्मों की संख्या सबसे अधिक है, किंतु द्वीपीय वृक्ष प्रजातियाँ आनुपातिक रूप से अधिक जोखिम में हैं।
    • यह विशेष रूप से चिंता का विषय है, क्योंकि कई द्वीपों में पेड़ों की कई ऐसी प्रजातियाँ भी हैं, जो कहीं और नहीं पाई जाती हैं।
  • प्रमुख खतरे:
    • पेड़ प्रजातियों के समक्ष शीर्ष तीन खतरों में- फसल उत्पादन, लकड़ी की कटाई और पशुधन खेती शामिल हैं, जबकि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसम संबंधी उभरते खतरे हैं।
    • बढ़ते समुद्र स्तर और गंभीर मौसम संबंधी घटनाओं के कारण कम-से-कम 180 प्रजातियों को प्रत्यक्ष तौर पर खतरों का सामना करना पड़ रहा है।
  • वृक्ष बचाने की आवश्यकता:
    • समर्थन प्रणाली:
      • वृक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का प्राकृतिक रूप से समर्थन करने में मदद करते हैं और ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
      • वृक्ष प्रजातियों के विलुप्त होने के दूरगामी प्रभाव (Domino Effect) हो सकते हैं, जिससे कई अन्य प्रजातियों का नुकसान हो सकता है।
    • बफर के रूप में कार्य करना:
      • यह विश्व के 50% स्थलीय कार्बन का भंडारण करते हैं और चरम जलवायु जैसे- तूफान (Hurricane) और सुनामी की स्थिति में एक बफर के रूप में कार्य करते हैं।
    • आवास और भोजन:
      • कई संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियाँ पक्षियों, स्तनधारियों, उभयचरों, सरीसृपों, कीड़ों और सूक्ष्मजीवों की लाखों अन्य प्रजातियों के लिये आवास एवं भोजन प्रदान करती हैं।
  • नीति निर्माताओं हेतु सुझाव:
    • सुरक्षा बढ़ाना:
      • उन संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों के लिये संरक्षित क्षेत्र कवरेज का विस्तार करना जो वर्तमान में संरक्षित क्षेत्रों में अच्छी तरह से प्रतिनिधित्व नहीं कर रहे हैं।
    • संरक्षण:
      • जहाँ तक संभव हो विश्व स्तर पर संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों, वनस्पति उद्यान और बीज बैंक संग्रहण केंद्रों का संरक्षण सुनिश्चित करना।
    • फंडिंग बढ़ाना:
      • संकटग्रस्त वृक्ष प्रजातियों के लिये सरकार और कॉर्पोरेट वित्तपोषण की उपलब्धता बढ़ाना।
    • योजनाओं का विस्तार करना:
      • वृक्षारोपण योजनाओं का विस्तार करना और संकटग्रस्त तथा देशी प्रजातियों का लक्षित रोपण सुनिश्चित करना।
    • सहयोग बढ़ाना:
      • अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों में भाग लेकर वृक्षों को विलुप्त होने से रोकने के लिये वैश्विक सहयोग बढ़ाना।
  • संबंधित भारतीय पहलें:

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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