इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़


कृषि

लघु जोतधारक तथा कृषि विपणन

  • 11 Jul 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

कृषि जोत के प्रकार 

मेन्स के लिये:

लघु जोतधारक तथा कृषि विपणन 

चर्चा में क्यों?

COVID-19 महामारी के तहत लगाए गए लॉकडाउन ने अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों को बुरी तरह प्रभावित किया है, ऐसे में कृषि को पुन: आर्थिक विकास के इंजन और महत्त्वपूर्ण उपशामक के रूप में चर्चा के केंद्र में ला दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • वित्त मंत्री द्वारा COVID-19 महामारी आर्थिक पैकेज के रूप में कृषि, मत्स्य पालन और खाद्य प्रसंस्करण के लिये कृषि अवसंरचना को मज़बूत करने तथा कृषि शासन संबंधी सुधारों के लिये अहम उपायों की घोषणा की गई थी।
  • इस आर्थिक पैकेज के एक भाग के रूप में कृषि क्षेत्र में शासन एवं प्रशासन से संबंधित भी अनेक सुधारों की घोषणा की गई थी। 

कृषि संबंधी सुधारों की घोषणा: 

कृषि सुधारों का उद्देश्य:

  • कृषि सुधारों के माध्यम ’किसान प्रथम’ (Farmer First) अर्थात किसान को नीतियों के केंद्र में रखकर कार्य किया जाएगा जिनके निम्नलिखित उद्देश्य हैं:
    • कृषि-सेवाओं में रोज़गार उत्पन्न करना; 
    • विपणन चैनलों में विकल्पों को बढ़ावा देना; 
    • एक राष्ट्र एक बाज़ार’ की दिशा में कार्य करना; 
    • अवसंरचना का विकास;
    • मार्केट लिंकेज; 
    • फिनटेक और एगटेक में निवेश आकर्षित करना; 
    • खाद्य फसलों के स्टॉक प्रबंधन में पूर्वानुमान पद्धति को अपनाना।

लघु जोतधारकों की स्थिति:

  • सामान्यत: 2 हेक्टेयर से कम भूमि धारण करने वाले किसानों को लघु जोतधारक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। 

क्र. सं.

समूह 

भूमि धारण (हेक्टेयर में)

1

सीमांत

< 1.0 हेक्टेयर

2

लघु 

1.0 < 2.0 हेक्टेयर

3

अर्द्ध-मध्यम

2.0 < 4.0 हेक्टेयर

4

मध्यम 

4.0 < 10.0 हेक्टेयर

5

वृहद 

10.0 हेक्टेयर से अधिक 

  • लगभग 85% किसान लघु तथा सीमांत जोतधारक हैं।

लघु जोतधारकों की समस्याएँ:

  • किसानों के लिये अपनाई जाने सार्वजनिक नीति के प्रभाव तथा खेत के आकार में व्युत्क्रमानुपाती संबंध होता है, अर्थात इन नीतियों का छोटे जोतधारक किसानों पर विपरीत प्रभाव होता है। 
  • खाद्य सुरक्षा प्रभावित:
    • कृषि उत्पादन बढ़ाने की दिशा में अपनाई गई नीतियों यथा- कृषि आगतों को आपूर्ति, कृषि विस्तार सेवाएँ आदि लघु जोतधारकों की प्रतिस्पर्द्धा क्षमता तथा खुद को बाज़ार में बनाए रखने की क्षमता को बुरी तरह प्रभावित करती हैं। जिससे देश की खाद्य प्रणाली भी प्रभावित होती है। 
  • कम आय की प्राप्ति:
    • लघु जोतधारकों की आय राष्ट्रीय औसत आय से बहुत कम है। लघु जोतधारकों की प्रति व्यक्ति आय 15,000 रुपए प्रति वर्ष है। यह राष्ट्रीय औसत आय के पाँचवे हिस्से के बराबर है। 
  • औपचारिक बाज़ार तक पहुँच का अभाव:
    • भारत में लगभग लगभग 220 बिलियन डॉलर के वार्षिक कृषि उत्पाद सीमांत खेतों पर उगाया जाता है तथा इसे लगभग 50 किमी. के दायरे में अनौपचारिक बाज़ारों में बेच दिया जाता है।
    • औपचारिक (सार्वजनिक खरीद सहित) और अनौपचारिक बाज़ारों के सह-अस्तित्त्व के कारण कृषि उत्पादों तक पहुँच और मूल्य स्थिरता दोनों प्रभावित होती है। 
    • लघु जोतधारक किसानों को फसलों का अच्छा बाज़ार मूल्य तथा खरीददारों के विकल्प नहीं मिल पाते हैं।
  • अवसंरचना का अभाव:
    • 'बाज़ार तक फसल उत्पादों को लाने के लिये पर्याप्त लॉजिस्टिक संरचना का अभाव है। बड़े बाज़ारों और नगरों से भौतिक दूरी अधिक होने पर लघु जोतधारकों की आय में कमी होती है।

सुधारों की आवश्यकता: 

विपणन प्रणाली तथा अवसंरचना में सुधार:

  • अच्छी तरह से विनियमित बाज़ार की दिशा में निम्नलिखित सुधारों को लागू करने की आवश्यकता है: 
    • सुरक्षित और सस्ती भंडारण सुविधा; 
      • भंडारण सुविधाओं में वृद्धि, बड़े कृषि प्रसंस्करण उद्यमियों, खुदरा विक्रेताओं को आकर्षित करेगी।
    • गुणवत्ता प्रबंधन प्रौद्योगिकी; 
      • कार्यशील पूंजी;
      • कृषि उत्पादन तथा जलवायु परिवर्तन के साथ जुड़े जोखिमों से सुरक्षा की व्यवस्था । 
      • उदाहरण के लिये इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफ़ॉर्म आधारित कृषि प्रबंधन प्रणाली सूचना संबंधी बाधाओं को दूर करते हैं। ये प्लेटफ़ॉर्म ऋण पहुँच , जोखिम प्रबंधन, मौसम जानकारी, फसल प्रबंधन सेवाएँ प्रदान करते हैं।
      • 10,000 'किसान उत्पादक संगठनों' (Farmer Producer Organisations- FPOs) की स्थापना जैसे मिशन लघु जोतधारकों को 'बाज़ार आधारित कृषि’ उत्पादन की दिशा में प्रोत्साहन प्रदान करते हैं।

ई-मार्केटप्लेस जैसी पहलों की आवश्यकता:

  • ज़िला प्रशासन पर वाणिज्यिक विवाद निपटानों का समाधान करने के लिये पर्याप्त संसाधनों का अभाव है। 
  • प्रतिपक्ष जोखिम प्रबंधन के लिये एक उचित समाशोधन और निपटान तंत्र की आवश्यकता है। इस दिशा में ई-मार्केटप्लेस जैसी पहल को लागू किया जाना चाहिये। 

उत्पादों की गुणवत्ता का निर्धारण:

  • ऑनलाइन बिक्री की दिशा में छोटे जोतधारकों को मानक ग्रेड और गुणवत्ता-आधारित संदर्भ मूल्य अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिये कृषि विपणन विस्तार सेवाओं का उपयोग किया जाना चाहिये।
  • सभी खाद्य मानक कानूनों और विभिन्न व्यापार मानकों को अच्छे उत्पादों की आपूर्ति की समझ के साथ संरेखित किया जाना चाहिये।

गैर-अनाज फसलों संबंधी पहल:

  • गैर-अनाज फसलों के साथ जुड़े जोखिमों और ऋण का प्रबंधन करने के लिये नवाचारी उपायों को अपनाना चाहिये ताकि इसका लाभ लघु जोत धारकों को मिल सके।

पशुधन को महत्त्व:

  • पशुधन का भारत की कृषि जीडीपी में 30% योगदान है, अत: बाज़ार तथा पशुधन के मध्य भी बेहतर समन्वय बनाने की आवश्यकता है।

अंतर-राज्य समन्वय: 

  • कृषि राज्य सूची का विषय है, अत: कृषि क्षेत्र में बेहतर अंतर-राज्य समन्वय को लागू किया जाना चाहिये। 

निष्कर्ष:

  • कृषि क्षेत्र में नवीन सुधारों को लागू करने से कृषि उत्पादकों, मध्यस्थों तथा उपभोक्ताओं के मध्य बेहतर समन्वय हो पाएगा तथा लघु जोतधारकों को भी अपने उत्पादों पर बेहतर रिटर्न मिल सकेगी तथा इससे भूगोल द्वारा उत्पन्न सीमाएँ महत्त्वहीन हो जायेगी। 

स्रोत: इकनॉमिक टाइम्स

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2