विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची में शामिल छः स्थल | 24 May 2021
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छः भारतीय स्थानों को यूनेस्को (संयुक्त राष्ट्र शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन) के विश्व धरोहर स्थलों की अस्थायी सूची (Tentative List) में जोड़ा गया है।
- इसकी संस्तुति भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) द्वारा दी गई थी, जो भारतीय स्मारकों के संरक्षण और सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार है।
प्रमुख बिंदु
अस्थायी सूची:
- यूनेस्को के संचालनात्मक दिशा-निर्देश (Operational Guidelines), 2019 के अनुसार किसी भी स्मारक/स्थल को विश्व विरासत स्थल (World Heritage Site) की सूची में अंतिम रूप से शामिल करने से पहले उसे एक वर्ष के लिये इसके अस्थायी सूची में रखना अनिवार्य है।
- इसमें नामांकन हो जाने के बाद इसे विश्व विरासत केंद्र (World Heritage Centre) को भेज दिया जाता है।
- इस सूची में भारत के अब तक कुल 48 स्थल शामिल किये गए हैं।
विश्व विरासत स्थल:
- यूनेस्को की विश्व विरासत सूची (World Heritage List) में विभिन्न क्षेत्रों या वस्तुओं को अंकित किया गया है।
- यह सूची यूनेस्को द्वारा वर्ष 1972 में अपनाई गई ‘विश्व सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहरों के संरक्षण से संबंधित कन्वेंशन’ नामक एक अंतर्राष्ट्रीय संधि में सन्निहित है।
- विश्व विरासत केंद्र वर्ष 1972 में हुए कन्वेंशन का सचिवालय है।
- यह पूरे विश्व में उत्कृष्ट सार्वभौमिक मूल्यों के प्राकृतिक और सांस्कृतिक स्थलों के संरक्षण को बढ़ावा देता है।
- इसमें तीन प्रकार के स्थल शामिल हैं: सांस्कृतिक, प्राकृतिक और मिश्रित।
- सांस्कृतिक विरासत (Cultural Heritage) स्थलों में ऐतिहासिक इमारत, शहर स्थल, महत्त्वपूर्ण पुरातात्त्विक स्थल, स्मारकीय मूर्तिकला और पेंटिंग कार्य शामिल किये जाते हैं।
- प्राकृतिक विरासत (Natural Heritage) में उत्कृष्ट पारिस्थितिक और विकासवादी प्रक्रियाएँ, अद्वितीय प्राकृतिक घटनाएँ, दुर्लभ या लुप्तप्राय प्रजातियों के आवास स्थल आदि शामिल किये जाते हैं।
- मिश्रित विरासत (Mixed Heritage) स्थलों में प्राकृतिक और सांस्कृतिक दोनों प्रकार के महत्त्वपूर्ण तत्त्व शामिल होते हैं।
- भारत में यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त कुल 38 विरासत धरोहर स्थल (30 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक और 1 मिश्रित) हैं। इनमें शामिल जयपुर शहर (राजस्थान) सबसे नया है।
अस्थायी सूची में शामिल छः नए स्थलों के विषय में:
- सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व (मध्य प्रदेश):
- यह सरीसृप सहित हिमालयी क्षेत्र की 26 प्रजातियों और नीलगिरि क्षेत्रों की 42 प्रजातियों का घर है, जहाँ बाघों के लिये अरक्षित सबसे बढ़ा क्षेत्र है और बाघों की सबसे बड़ी आबादी पाई जाती है।
- वाराणसी के घाट (उत्तर प्रदेश):
- ये घाट 14वीं शताब्दी के हैं, लेकिन अधिकांश का पुनर्निर्माण 18वीं शताब्दी में मराठा शासकों के सहयोग से किया गया।
- इन घाटों का हिंदू पौराणिक कथाओं में (विशेष रूप से स्नान और हिंदू धार्मिक अनुष्ठानों को संपन्न करने में) विशेष महत्त्व है।
- हायर बेनकल का महापाषाण स्थल (कर्नाटक):
- यह लगभग 2,800 वर्ष पुराना सबसे बड़ी प्रागैतिहासिक महापाषाण बस्तियों में से एक महापाषाणिक स्थल है जहाँ कुछ अंत्येष्टि स्मारक अभी भी मौजूद हैं।
- इस स्थान पर ग्रेनाइट के ताबूतों वाले स्मारक हैं। इस स्थान को नवपाषाण (Neolithic) कालीन स्मारकों के अत्यंत मूल्यवान संग्रह के कारण विश्व विरासत स्थल की मान्यता के लिये प्रस्तावित किया गया था।
- मराठा सैन्य वास्तुकला (महाराष्ट्र):
- महाराष्ट्र में 17वीं शताब्दी के मराठा राजा छत्रपति शिवाजी के समय के 12 किले (शिवनेरी, रायगढ़, तोरणा, राजगढ़, साल्हेर-मुल्हेर, पन्हाला, प्रतापगढ़, लोहागढ़, सिंधुदुर्ग, पद्मदुर्ग, विजयदुर्ग और कोलाबा) हैं।
- ये किले रॉक-कट सुविधाओं, पहाड़ियों और ढलानों पर परतों में परिधि की दीवारों के निर्माण, मंदिरों, महलों, बाज़ारों, आवासीय क्षेत्रों तथा मध्ययुगीन वास्तुकला के लगभग हर रूप सहित वास्तुकला के विभिन्न रूपों में नई अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
- नर्मदा घाटी में भेड़ाघाट-लमेताघाट, जबलपुर (मध्य प्रदेश):
- भेड़ाघाट, जिसे भारत का ग्रांड कैन्यन कहा जाता है, जबलपुर ज़िले का एक शहर है।
- नर्मदा नदी के दोनों ओर संगमरमर की सौ फीट ऊँची चट्टानें और उनके विभिन्न रूप भेड़ाघाट की खासियत है।
- नर्मदा घाटी में विशेष रूप से जबलपुर के भेड़ाघाट-लमेताघाट क्षेत्र में डायनासोर के कई जीवाश्म पाए गए हैं।
- नर्मदा नदी संगमरमर की चट्टानों से होकर गुज़रती संकरी होती जाती है और अंत में एक झरने के रूप में नीचे गिरती है, जिसका नाम धुआँधार जलप्रपात है।
- कांचीपुरम के मंदिर (तमिलनाडु):
- कांचीपुरम अपनी आध्यात्मिकता, शांति और रेशम के लिये जाना जाता है।
- यह वेगावती नदी के तट पर स्थित है।
- इस ऐतिहासिक शहर में कभी 1,000 मंदिर थे, जिनमें से अब केवल 126 (108 शैव और 18 वैष्णव) ही शेष बचे हैं।
- इसे पल्लव राजवंश ने 6वीं और 7वीं शताब्दी के बीच अपनी राजधानी बनाया। ये मंदिर द्रविड़ (Dravidian) शैलियों का एक अच्छा उदाहरण है।