लिंगानुपात और भारत | 24 Nov 2020
प्रिलिम्स के लिये:लिंगानुपात आँकड़ों में राज्यों का स्थान मेन्स के लिये:लिंगानुपात से संबंधित मुद्दे तथा उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में "नागरिक पंजीकरण प्रणाली के आधार पर भारत के जन्म-मृत्यु संबंधी आँकड़ों" पर वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में अरुणाचल प्रदेश में जन्म के समय सबसे अच्छा लिंगानुपात दर्ज किया गया है, जबकि मणिपुर में जन्म के समय सबसे खराब लिंगानुपात दर्ज किया।
प्रमुख बिंदु:
- इस रिपोर्ट को भारत के रजिस्ट्रार जनरल (Registrar General of India) द्वारा प्रकाशित किया गया था।
- जन्म के समय लिंगानुपात प्रति हज़ार पुरुषों पर पैदा होने वाली महिलाओं की संख्या है। यह किसी जनसंख्या के लिंगानुपात को मापने का एक महत्त्वपूर्ण संकेतक है।
- अरुणाचल प्रदेश में प्रति हज़ार पुरुषों पर पैदा होने वाली महिलाओं की संख्या 1,084 है। उसके बाद क्रमशः नगालैंड (965), मिज़ोरम (964), केरल (963) हैं।
- सबसे खराब लिंगानुपात मणिपुर (757), लक्षद्वीप (839), दमन और दीव (877), पंजाब (896) तथा गुजरात (896) में दर्ज किया गया।
- दिल्ली में 929, जबकि हरियाणा में 914 लिंगानुपात दर्ज किया गया।
- यह अनुपात 30 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा प्रदान किये गए डेटा के आधार पर निर्धारित किया गया था, क्योंकि छह राज्यों बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, सिक्किम, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल से अपेक्षित जानकारी उपलब्ध नहीं हो पाई।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, प्रमुख राज्य 10 मिलियन और उससे अधिक आबादी वाले राज्य हैं।
- सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (SRS) रिपोर्ट, 2018 से पता चलता है कि भारत में जन्म के समय लिंगानुपात वर्ष 2011 में 906 से घटकर वर्ष 2018 में 899 हो गया है।
- इंडियास्पेंड (IndiaSpend) द्वारा किये गए सरकारी आँकड़ों के विश्लेषण के अनुसार, भारत में जन्म के समय लिंगानुपात में गिरावट आई है, जबकि पिछले 65 वर्षों में प्रति व्यक्ति आय लगभग 10 गुना बढ़ गई है।
- इसका कारण लोगों की बढ़ती आय हो सकती है, जिसके परिणामस्वरूप साक्षरता बढ़ रही है और इससे परिवारों की सेक्स-सेलेक्टिव प्रक्रियाओं तक पहुँच आसान हो जाती है।
भारत के रजिस्ट्रार जनरल
(Registrar General of India):
- भारत सरकार ने वर्ष 1961 में गृह मंत्रालय के अधीन भारत के रजिस्ट्रार जनरल की स्थापना की थी।
- यह भारत की जनगणना सर्वेक्षण और भारत के भाषाई सर्वेक्षण सहित भारत के जनसांख्यिकीय सर्वेक्षण के परिणामों की व्यवस्था, संचालन तथा विश्लेषण करता है।
- रजिस्ट्रार का पद पर आमतौर पर एक सिविल सेवक होता है जो संयुक्त सचिव होता है।
- भारत में नागरिक पंजीकरण प्रणाली (CRS) महत्त्वपूर्ण घटनाओं (जन्म, मृत्यु, स्टिलबर्थ) और उसके बाद की विशेषताओं की निरंतर, स्थायी, अनिवार्य और सार्वभौमिक रिकॉर्डिंग की एकीकृत प्रक्रिया है। एक पूर्ण और अद्यतित CRS के माध्यम से प्राप्त डेटा सामाजिक-आर्थिक नियोजन के लिये आवश्यक है।
जन्म के समय निम्न लिंगानुपात से संबंधित मुद्दे:
लिंग-असंतुलन-
- प्रो अमर्त्य कुमार सेन ने अपने विश्व प्रसिद्ध लेख "मिसिंग वूमेन" में सांख्यिकीय रूप से यह साबित किया है कि पिछली शताब्दी के दौरान दक्षिण एशिया में 100 मिलियन महिलाएँ गायब हुई हैं।
- यह उनके संपूर्ण जीवन चक्र में जन्म से मृत्यु तक अनुभव किये गए भेदभाव के कारण है।
- एक प्रतिकूल बाल लिंगानुपात भी पूरी आबादी के विकृत लिंग ढाँचे में परिलक्षित होता है।
विवाह प्रणाली में विकृति-
- प्रतिकूल लिंगानुपात के परिणामस्वरूप पुरुषों और महिलाओं की संख्या में व्यापक अंतर आ जाता है और विवाह प्रणालियों पर इसके अपरिहार्य प्रभाव के साथ-साथ महिलाओं को अन्य परेशानियां होती हैं।
- भारत में, हरियाणा और पंजाब के कुछ गाँवों में ऐसे लिंगानुपात हैं, जिसमें जो पुरुष, महिलाओं को दुल्हन के तौर पर दूसरे राज्यों से खरीद कर लाते हैं। ऐसी स्थितियों में अक्सर इन दुल्हनों का शोषण होता है।
आगे की राह:
व्यवहारिक परिवर्तन लाना-
- महिला शिक्षा और आर्थिक समृद्धि बढ़ाने से लिंगानुपात में सुधार करने में मदद मिलती है। उदहारण के लिये, सरकार के बेटी-बचाओ बेटी पढाओ अभियान ने समाज में व्यवहार परिवर्तन लाने में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की है।
युवाओं को संवेदनशील बनाना-
- प्रजनन, स्वास्थ्य शिक्षा और सेवाओं के साथ-साथ लिंग इक्विटी मानदंडों के विकास के लिये युवाओं तक पहुँचने की तत्काल आवश्यकता है।
- इसके लिये, मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता (आशा) की सेवाओं का लाभ उठाया जा सकता है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में।
कानून का सख्त प्रवर्तन-
- भारत को पूर्व-गर्भाधान और पूर्व-नेटल डायग्नोस्टिक तकनीक (PCPNDT) अधिनियम, 1994 को और अधिक सख्ती से लागू करना चाहिये और लड़कों की प्राथमिकता वाले मुद्दों से निपटने के लिये और अधिक संसाधन समर्पित करने चाहिये।
- इस संदर्भ में ड्रग्स तकनीकी सलाहकार बोर्ड का ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 में अल्ट्रासाउंड मशीनों को शामिल करने का निर्णय सही दिशा में उठाया गया एक कदम है।