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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

सीपीईसी (CPEC) का दूसरा चरण

  • 07 Feb 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, ग्वादर पोर्ट, पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स, पनामा नहर, एलओसी।

मेन्स के लिये:

भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारत को शामिल और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते, सीपीईसी और इसका प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तान ने 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर के चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) के दूसरे चरण को शुरू करने हेतु चीन के साथ एक नए समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा:

  • CPEC चीन के उत्तर-पश्चिमी झिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र और पाकिस्तान के पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह को जोड़ने वाली बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं का 3,000 किलोमीटर लंबा मार्ग है।
  • यह पाकिस्तान और चीन के बीच एक द्विपक्षीय परियोजना है, जिसका उद्देश्य ऊर्जा, औद्योगिक और अन्य बुनियादी ढाँचा विकास परियोजनाओं के साथ राजमार्गों, रेलवे एवं पाइपलाइन्स के नेटवर्क द्वारा पूरे पाकिस्तान में कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना है।
  • यह चीन के लिये ग्वादर बंदरगाह से मध्य पूर्व और अफ्रीका तक पहुँचने का मार्ग प्रशस्त करेगा ताकि चीन हिंद महासागर तक पहुँच प्राप्त कर सके तथा चीन बदले में पाकिस्तान के ऊर्जा संकट को दूर करने और लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिये पाकिस्तान में विकास परियोजनाओं का समर्थन करेगा।
  • CPEC, बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) का एक हिस्सा है। वर्ष 2013 में शुरू किये गए ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ का उद्देश्य दक्षिण-पूर्व एशिया, मध्य एशिया, खाड़ी क्षेत्र, अफ्रीका और यूरोप को भूमि एवं समुद्री मार्गों के नेटवर्क से जोड़ना है।

CPEC पर भारत का रुख:

  • CPEC को लेकर भारत ने चीन के समक्ष विरोध जताया है क्योंकि पाकिस्तान का कब्ज़ा वाला कश्मीर (PoK) क्षेत्र भी इसके तहत आता है।
  • भारत, क्वाड (भारत, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान) का सदस्य है जो बुनियादी ढाँचे हेतु देशों को यथार्थवादी विकल्प प्रदान कर सकता है एवं चीनी प्रतिक्रिया के लिये उपयुक्त हो सकता है।

भारत के लिये CPEC के निहितार्थ:

  • भारत की संप्रभुता: भारत CPEC की लगातार आलोचना करता रहा है, क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से होकर गुज़रता है, जो भारत और पाकिस्तान के बीच एक विवादित क्षेत्र है।
  • कॉरिडोर को भारत की सीमा पर स्थित कश्मीर घाटी के लिये वैकल्पिक आर्थिक सड़क संपर्क के रूप में भी माना जाता है।
  • नियंत्रण रेखा (एलओसी) के दोनों ओर कश्मीर को 'विशेष आर्थिक क्षेत्र' घोषित करने के लिये स्थानीय व्यापारियों और राजनीतिज्ञों द्वारा आह्वान किया गया है।
  • अगर गिलगित-बाल्टिस्तान औद्योगिक विकास के साथ विदेशी निवेश को आकर्षित करता है, तो CPEC के सफल होने के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त पाकिस्तानी क्षेत्र के रूप में इस क्षेत्र की धारणा को और मज़बूती मिलेगी, जिससे 73,000 वर्ग किमी. भूमि पर भारत का दावा कमज़ोर हो जाएगा जो कि 1.8 मिलियन से अधिक लोगों का घर है।
  • समुद्र के माध्यम से व्यापार पर चीनी नियंत्रण: पूर्वी तट पर प्रमुख अमेरिकी बंदरगाह चीन के साथ व्यापार करने के लिये पनामा नहर पर निर्भर हैं।
    • एक बार CPEC का कार्य पूरा हो जाने के बाद चीन अधिकांश उत्तरी व लैटिन अमेरिकी उद्यमों के लिये एक 'छोटा और अधिक किफायती' व्यापार मार्ग की पेशकश करने की स्थिति में होगा।
    • यह चीन को उन शर्तों को निर्धारित करने की शक्ति देगा जिनके द्वारा अटलांटिक एवं प्रशांत महासागरों के बीच माल की अंतर्राष्ट्रीय आवाज़ाही होगी।
  • चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ नीति: चीन अपनी महत्त्वाकांक्षा के साथ हिंद महासागर में उपस्थिति बढ़ा रहा है; यह अमेरिका द्वारा गढ़ा गया एक शब्द है और अक्सर भारतीय रक्षा विश्लेषकों द्वारा हवाई क्षेत्रों व बंदरगाहों के नेटवर्क के माध्यम से भारत को घेरने की चीनी रणनीति को संदर्भित करने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
    • चटगांँव बंदरगाह (बांग्लादेश), हंबनटोटा बंदरगाह (श्रीलंका), पोर्ट सूडान (सूडान), मालदीव, सोमालिया और सेशेल्स में मौजूदा उपस्थिति के साथ कम्युनिस्ट राष्ट्र (चीन) द्वारा  ग्वादर बंदरगाह पर नियंत्रण के माध्यम से हिंद महासागर पर पूर्ण प्रभुत्व स्थापित करना है।
  • आउटसोर्सिंग गंतव्य के रूप में पाकिस्तान का उदय: यह पाकिस्तान की आर्थिक प्रगति को गति देने हेतु तैयार है।
    • मुख्य रूप से कपड़ा और निर्माण सामग्री उद्योग में भारत व पाकिस्तान की दोनों देशों के शीर्ष तीन व्यापारिक भागीदारों में से दो देश अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात में सीधी प्रतिस्पर्द्धा है।
    • मुख्य रूप से भारतीय निर्यात चीन से कच्चे माल की सुलभ आपूर्ति के साथ पाकिस्तान को इन क्षेत्रों में एक प्रतिस्पर्द्धी क्षेत्रीय बाज़ार बनने हेतु उपयुक्त परिस्थितियाँ उपलब्ध होंगी।
  • BRI द्वारा मज़बूत व्यापार और चीन का प्रभुत्व: चीन की बीआरआई परियोजना जो बंदरगाहों, सड़कों और रेलवे के नेटवर्क के माध्यम से चीन और शेष यूरेशिया के बीच व्यापार संपर्क पर केंद्रित है, को अक्सर इस क्षेत्र में राजनीतिक रूप से हावी होने की चीन की योजना के रूप में देखा जाता है। CPEC इसी दिशा में एक और बड़ा कदम है।
    • चीन जो कि बाकी वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं द्वारा समर्थित और अधिक एकीकृत है, संयुक्त राष्ट्र एवं अलग-अलग राष्ट्रों के साथ बेहतर स्थिति में होगा, जो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सीट हासिल करने की योजना को प्रभावित कर सकता है।

आगे की राह: 

  • CPEC पर भारत की भविष्य की रणनीति BRI परियोजना के संभावित लाभों के साथ-साथ नुकसान के सावधानीपूर्वक पुनर्मूल्यांकन पर आधारित होनी चाहिये।
  • भारत को अपनी रणनीतिक परियोजनाओं जैसे- बांग्लादेश, चीन, भारत और म्याँमारआर्थिक गलियारे (BCIM) और चाबहार बंदरगाह के विकास पर कार्य की गति को तीव्र करना चाहिये।
  • एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर भारत-जापान आर्थिक सहयोग समझौता है, यह भारत को महत्त्वपूर्ण रणनीतिक लाभ प्रदान कर चीन को प्रतिसंतुलित कर सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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