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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

पोषण वृद्धि में चावल की भूमिका

  • 21 Sep 2021
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

फैटी एसिड, हाइड्रोजनीकरण, बाओ-धान (रेड राइस) 

मेन्स के लिये:

कुपोषण से संबंधित मुद्दे और फैटी एसिड की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, शोधकर्त्ताओं द्वारा जाँच के बाद यह पाया गया कि भारतीय चावल की 12 लोक किस्में कुपोषित माताओं में महत्त्वपूर्ण फैटी एसिड (FA) की पोषण संबंधी मांग को पूरा कर सकती हैं।

  • चावल में विभिन्न प्रकार के फैटी एसिड, विटामिन, खनिज, स्टार्च और थोड़ी मात्रा में प्रोटीन होता है।

प्रमुख बिंदु 

  • फैटी एसिड:
    • फैटी एसिड वसा और तेल के प्राकृतिक घटक हैं। ये शरीर में ऊर्जा भंडारण सहित कई महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।
    • इनकी रासायनिक संरचना के आधार पर इन्हें तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है: 'संतृप्त', 'मोनो-असंतृप्त' और 'पॉली-असंतृप्त' फैटी एसिड।
      • संतृप्त फैटी एसिड (वसा) मुख्य रूप से (वसायुक्त) मांस, चरबी, सॉसेज, मक्खन और पनीर आदि पशुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं, साथ ही यह तलने के लिये उपयोग किये जाने वाले पाम कर्नेल और नारियल के तेल में भी पाया जाता है।
      • अधिकांश असंतृप्त वसा एसिड (वसा) पौधे और वसायुक्त मछली मूल के होते हैं। मांस उत्पादों में संतृप्त और असंतृप्त वसा दोनों होते हैं।
      • पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) फैमिली में दो अलग-अलग समूह हैं: 'ओमेगा-3-फैटी एसिड' और 'ओमेगा-6-फैटी एसिड'
        • दोनों को आवश्यक फैटी एसिड माना जाता है क्योंकि इन्हें मानव द्वारा संश्लेषित नहीं किया जा सकता है।
    • ट्रांस फैटी एसिड जिसे आमतौर पर ट्रांस वसा कहा जाता है, हाइड्रोजन गैस और उत्प्रेरक की उपस्थिति में तरल वनस्पति तेलों को गर्म करके बनाया जाता है। इस प्रक्रिया को हाइड्रोजनीकरण कहा जाता है। यह हृदय, रक्त वाहिकाओं एवं शरीर के बाकी हिस्सों के लिये सबसे खराब प्रकार की वसा है।
  • अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
    • स्वास्थ्य में सहायक:
      • चावल की पारंपरिक किस्में मुख्य आहार में आवश्यक फैटी एसिड शामिल कर सकती हैं जो शिशुओं में सामान्य मस्तिष्क के विकास में मदद करती हैं।
      • स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिये लोक चिकित्सा में एथिकराय, दूध-सर, कयामे, नीलम सांबा, श्रीहती, महाराजी और भेजरी जैसी कई लोक किस्में महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं।
      • केलास, दूधेबोल्टा और भुटमूरी जैसी किस्में आयरन से भरपूर होती हैं और एनीमिया के इलाज के लिये माताओं के आहार में शामिल की जा सकती हैं।
    • कुपोषण की समस्या का समाधान:
      • पारंपरिक किस्में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करती हैं।
      • ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 द्वारा भारत को 107 देशों में 94वें स्थान पर रखा गया था। इसकी गणना जनसंख्या के कुल अल्पपोषण, बाल स्टंटिंग, वेस्टिंग और बाल मृत्यु दर के आधार पर की जाती है।
    • अर्थव्यवस्था में योगदान:
      • हाल ही में असम से बाओ-धान (रेड राइस) की पहली खेप मार्च 2021 में अमेरिका भेजी गई थी। इससे किसान परिवारों की आय में वृद्धि होगी
        • आयरन से भरपूर इस रेड राइस को असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में बिना किसी रासायनिक खाद के उगाया जाता है
    • रोग प्रतिरोधक क्षमता :
      • उत्तर-पूर्व भारत की सात चावल की किस्मों- मेघालय लकांग, चिंगफौरेल, मनुइखमेई, केमेन्याकेपेयु, वेनेम, थेकरुला और कोयाजंग में चावल के पौधों में पत्ती और नेकब्लास्ट रोग का प्रतिरोध करने की क्षमता है
        • फफूँद रोगजनक पाइरिकुलेरिया ओरिज़े के कारण होने वाला नेकब्लास्ट रोग दुनिया भर में चावल की उत्पादकता के लिये एक बड़ा खतरा है।
    • कम खर्चीला संरक्षण:
      • पोषक तत्वों से भरपूर चावल की इन उपेक्षित और लुप्त हो रही किस्मों का इन-सीटू/स्वस्थानी संरक्षण (In Situ Conservation), उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) की तुलना में एक सस्ता विकल्प है।
        • विकासशील देशों में खाद्य आपूर्ति में सुधार और अकाल की समस्या के समाधान हेतु वैज्ञानिकों द्वारा HYV बीज विकसित किये गए थे।
        • संरक्षण की सीटू और एक्स सीटू विधियाँ क्रमशः अपने प्राकृतिक आवास के भीतर एवं बाहर प्रजातियों की विविधता के रखरखाव पर केंद्रित है।

चावल 

  • यह खरीफ के मौसम की फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25 डिग्री सेल्सियस से अधिक) और 100 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा के साथ उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है।
  • चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी इलाकों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टा क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • चावल उत्पादक राज्यों की सूची में पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और पंजाब का स्थान है।

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