आयकर अधिनियम में संशोधन के माध्यम से पूर्वव्यापी कराधान | 12 Feb 2022

प्रिलिम्स के लिये:

पूर्वव्यापी कर, बजट, उपकर, अधिभार, आयकर अधिनियम और इसमें संशोधन, वित्त अधिनियम।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, वित्तीय नीति, आईटी अधिनियम एवं इसमें संशोधन, पूर्वव्यापी कराधान।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2022-23 के माध्यम से ‘आयकर अधिनियम-1961’ में कुछ संशोधन प्रस्तुत किये गए हैं, जो पूर्वव्यापी रूप से प्रभावी होंगे।

‘पूर्वव्यापी कर’ का अर्थ

  • ‘पूर्वव्यापी कर’ का आशय कर के पारित होने की तारीख की पूर्व अवधि से लागू कर से है। यह अतीत में किये गए लेन-देन पर एक नया या अतिरिक्त शुल्क हो सकता है।
  • मूलतः पूर्वव्यापी कर का आशय ऐसी स्थिति में समायोजन करना है, जब अतीत एवं वर्तमान में नीतियाँ इतनी अधिक भिन्न होती हैं कि पुरानी नीति के तहत पहले भुगतान किया गया कर काफी कम होता है। पूर्वव्यापी कर मौजूदा नीति के तहत कर लगाकर उस स्थिति को ठीक कर सकता है।
  • पूर्वव्यापी कराधान किसी भी देश को कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं पर कर लगाने को लेकर एक नियम पारित करने की अनुमति देता है। यह किसी भी कानून के पारित होने की तारीख की पूर्व अवधि से कंपनियों से शुल्क लेता है। 
  • वे देश अपनी कराधान नीतियों में किसी भी विसंगति को ठीक करने के लिये इस प्रकार के नियमों का उपयोग करते हैं, जिन्होंने अतीत में कंपनियों को इस तरह की खामियों का फायदा उठाने की अनुमति दी थी।
  • भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड और बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया एवं इटली सहित कई देशों में पूर्वव्यापी कराधान व्यवस्था लागू है।

आयकर अधिनियम में प्रमुख संशोधन:

उपकर और अधिभार के बारे में पूर्वव्यापी परिवर्तन:

  • परिवर्तन:
    • आयकर अधिनियम में पूर्वव्यापी संशोधन करते हुए बजट में स्पष्ट किया गया है कि उपकर एवं अधिभार को व्यय के रूप में कटौती हेतु दावा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, यह नियम वर्ष 2005-06 से पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा। ज्ञात हो कि इससे पूर्व कंपनियों और व्यवसायों द्वारा कानूनी अस्पष्टता का सहारा लेकर अनुचित लाभ लिया जा रहा था।
    • पिछले वर्षों में न्यायालय के कुछ निर्णयों का हवाला देते हुए कर विभाग ने उपकर को व्यय के रूप में पेश करने में करदाताओं का समर्थन किया था, कर विभाग ने कहा कि इस विसंगति को ठीक करने के लिये पूर्वव्यापी संशोधन किया जा रहा है।
      • यह संशोधन 1 अप्रैल, 2005 से भूतलक्षी प्रभाव से लागू होगा और तद्नुसार निर्धारण वर्ष 2005-06 और उसके बाद के निर्धारण वर्षों के संबंध में लागू होगा।
      • यह परिवर्तन निर्धारण वर्ष 2005-06 से किया जा रहा है क्योंकि वित्त अधिनियम, 2004 द्वारा पहली बार शिक्षा उपकर लाया गया था।
  • महत्त्व:
    • अदालत के फैसलों ने आयकर और शिक्षा उपकर के बीच अंतर स्पष्ट किया तथा 'शिक्षा उपकर' के लिये एक विशिष्ट अस्वीकृति के अभाव में अदालतों ने कई मामलों में इसे करदाताओं के लिये उपयुक्त माना।
    • न्यायालय द्वारा फैसलों के प्रभाव को खत्म करने और कानून के उद्देश्य के खिलाफ उन पर विचार करने के लिये आयकर कानून में एक स्पष्ट संशोधन पेश किया गया है, जिसमें कहा गया है कि आयकर पर किसी भी अधिभार या शिक्षा उपकर को व्यवसाय के रूप में अनुमति नहीं दी जाएगी।

उपकर (Cess):

  • उपकर या सेस करदाता द्वारा अदा किये जाने वाले मूल कर (Tax) पर लगाया गया एक अतिरिक्त कर होता है।
  • उपकर मुख्यतः राज्य या केंद्र सरकार द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिये फंड एकत्रित करने हेतु लागू किया जाता है। 
  • उपकर सरकार के लिये राजस्व का स्थायी स्रोत नहीं होता है, निर्धारित लक्ष्य या उद्देश्य के पूरा होने के बाद इसे बंद कर दिया जाता है । 
  • गौरतलब है कि उपकर को सरकार द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर दोनों पर लागू किया जा सकता है। 

अधिभार:

  • यह किसी मौजूदा कर में जोड़ा जाता है और वस्तु या सेवा के घोषित मूल्य में शामिल नहीं होता है।
  • यह अतिरिक्त सेवाओं के लिये या बढ़ी हुई वस्तु मूल्य के निर्धारण की लागत पर लगाया जाता है।

पूर्वव्यापी रूप से किये गए अन्य संशोधन:

  • परिवर्तन:
    • सरकार द्वारा अप्रैल 2020 से पूर्वव्यापी प्रभाव से चिकित्सा उपचार और कोविड-19 की वजह से हुई मृत्यु के कारण प्राप्त राशि में छूट की अनुमति दी गई है।
      • किसी व्यक्ति द्वारा अपने परिवार के किसी सदस्य की चिकित्सा या उपचार पर किये गए किसी भी वास्तविक खर्च पर शर्तों के अधीन, जैसा कि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया है, कोविड-19 से संबंधित किसी भी बीमारी के संबंध में प्राप्त कोई भी राशि, ऐसे व्यक्ति की आय नहीं होगी। 
    • इसने मृत व्यक्ति के परिवार के किसी सदस्य को मृत व्यक्ति के नियोक्ता से (सीमा के बिना) या किसी अन्य व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति से प्राप्त राशि जो 10 लाख रुपए से अधिक न हो, पर छूट प्रदान की है, जहांँ ऐसे व्यक्ति की मृत्यु का कारण कोविड-19 से संबंधित बीमारी हो और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु की तारीख से बारह माह के भीतर भुगतान राशि प्राप्त की गई हो।
      • व्यक्तिगत रूप से डॉक्टरों को प्राप्त उपहार तथा मुफ्त उपहार आयकर अधिनियम के तहत व्यावसायिक व्यय के रूप में नहीं माने जाएंगे।
  • महत्त्व: 
    • इसमें स्पष्ट किया गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 के प्रावधानों के उल्लंघन में विभिन्न लाभ प्रदान करने में किया गया कोई भी खर्च कानून के तहत अस्वीकार्य होगा।
    • यह कदम फार्मा कंपनियों को चिकित्सा पेशेवरों को मुफ्त उपहार देने से हतोत्साहित करेगा और वे कर भुगतान करते समय इन खर्चों की कटौती के रूप में दावा नहीं कर पाएंगे।

कंपनियों हेतु फंडिंग के स्रोतों से संबंधित बदलाव:

  • चुनौतियाँ:
    • सरकार ने आईटी कानून में बदलाव किया है, जिसने कर विभाग द्वारा लेनदार को धन प्राप्ति के  स्रोत के संबंध में पूछताछ करने हेतु मार्ग प्रशस्त किया है।
    • इस प्रावधान में प्राप्तकर्त्ता द्वारा ऋण लेने और उधार से संबंधित धन के स्रोत की जानकारी को केवल तभी मान्य समझा जाएगा जब प्राप्तकर्त्ता द्वारा धन के स्रोत की जानकारी दी जाएगी
  • महत्त्व:
    • यह व्यवसायों के वित्तपोषण विशेष रूप से स्टार्टअप्स पर प्रभाव डाल सकता है, यदि लेनदार एक वेंचर कैपिटल फंड्स नहीं है (वेंचर कैपिटल फंड्स सेबी के साथ एक पंजीकृत कंपनी होती है)।
      • इससे पहले यदि किसी कंपनी में फर्जी प्रविष्टियाँ होती थीं, तो करदाता केवल PAN और लेनदार के अन्य वित्तीय विवरण प्रदान करता था जो कर विभाग के लिये पर्याप्त था।
      • अब आय का सही स्रोत और इस राशि को प्रदान करने के लिये निवल मूल्य की जानकारी प्राप्तकर्त्ता को ही देनी होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस