ऋण पुनर्गठन योजना में संतुलन की आवश्यकता: RBI गवर्नर | 17 Sep 2020
प्रिलिम्स के लियेके.वी. कामथ समिति, ऋण पुनर्गठन योजना मेन्स के लियेमहामारी के प्रभाव से निपटने हेतु केंद्रीय बैंक और केंद्र सरकार के उपाय |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India-RBI) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी से संबंधित तनाव से निपटने के लिये एक संतुलित ऋण पुनर्गठन योजना का आह्वान किया है।
प्रमुख बिंदु
- एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए गवर्नर शक्तिकांत दास ने महामारी के कारण उत्पन्न हुए तनाव से निपटने के लिये ऋण पुनर्गठन योजना में किसी भी प्रकार की छूट देने से इनकार करते हुए कहा कि इस योजना को जमाकर्त्ताओं और उधारकर्त्ताओं के हितों को संतुलित करने के उद्देश्य से संरचित किया गया है।
- शक्तिकांत दास के अनुसार, देश में करोड़ों की संख्या में ऐसे छोटे, बड़े, मध्यम और सेवानिवृत्त तमाम तरह के जमाकर्त्ता हैं, जिनके लिये बैंकों में जमा की गई राशि काफी महत्त्वपूर्ण है, जबकि देश भर में उधारकर्त्ताओं की संख्या तुलनात्मक रूप से काफी कम है।
- ध्यातव्य है कि देश का केंद्रीय बैंक उदार नीति अपनाकर वर्ष 2014 के बाद ऋण पुनर्गठन के कारण बैंकों की गैर-निष्पादित परिसंपत्ति (NPA) में हुई अचानक वृद्धि को पुनः दोहराना नहीं चाहता है। वर्ष 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट के मद्देनज़र भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा अपनाई गई अत्यधिक उदार नीति के कारण ही 2014-15 के बाद खराब ऋणों में काफी वृद्धि हुई है।
पृष्ठभूमि
- भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी हालिया मौद्रिक नीति रिपोर्ट में कोरोना वायरस (COVID-19) से प्रभावित कंपनियों को राहत देने के लिये कई कदम उठाए थे। इसमें आम लोगों, बड़े निगमों, और सूक्ष्म, लघु तथा मध्यम उद्यमों (MSME) की आय और बैलेंस शीट पर बढ़ते तनाव को कम करने के लिये ऋणदाताओं को उन्हें गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों के रूप में वर्गीकृत किये बिना ऋण के एकमुश्त पुनर्गठन की अनुमति दी थी।
- ध्यातव्य है कि बड़ी संख्या में अच्छा प्रदर्शन करने वाली कंपनियाँ तनाव का सामना कर रही हैं, क्योंकि उनका नकदी प्रवाह, उनके ऋण बोझ की तुलना में काफी कम हो रहा है।
- इसके पश्चात् भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने COVID-19 से प्रभावित ऋणों के पुनर्गठन पर के. वी. कामथ की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया।
- इस समिति को कॉर्पोरेट ऋणों के एकमुश्त पुनर्गठन के लिये मापदंडों की सिफारिश करने का कार्य सौंपा गया था।
- इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुल 26 क्षेत्रों में ऋण के पुनर्गठन के लिये 5 वित्तीय अनुपातों और क्षेत्र-विशिष्ट सीमाएँ निर्धारित की थीं।
- इसमें यह भी निर्दिष्ट किया गया था कि पुनर्गठित ऋण कार्यकाल को दो वर्षों से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
ऋण पुनर्गठन का अर्थ
- ऋण पुनर्गठन में मौजूदा ऋण की शर्तों को बदलना और उन्हें उधारकर्त्ताओं के लिये अधिक अनुकूल बनाना है। उदाहरण के लिये एक ऋणदाता ब्याज़ दर या मासिक भुगतान को कम करने के लिये ऋण का पुनर्गठन कर सकता है।
- ऋण पुनर्गठन का विकल्प सामन्यतः ऐसी स्थिति में चुना जाता है जब उधारकर्त्ता ऋण की पुरानी शर्तों के तहत ब्याज़ अथवा मासिक भुगतान करने में असमर्थ होता है।
संबंधित मुद्दे
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा निर्धारित पुनर्गठन की योजना की आलोचना मुख्य तौर पर के. वी. कामथ समिति द्वारा निर्धारित 26 क्षेत्रों को लेकर की जा रही है। आलोचकों के अनुसार, इन 26 क्षेत्रों के अलावा भी कई अन्य क्षेत्र हैं जो इस महामारी के कारण तनाव में हैं और उन्हें ऋण पुनर्गठन की आवश्यक है।
- 26 क्षेत्रों में ऑटोमोबाइल, बिजली, पर्यटन, सीमेंट, रसायन, रत्न और आभूषण, लॉजिस्टिक्स, खनन, विनिर्माण, रियल एस्टेट और शिपिंग आदि शामिल हैं।
- इसके अलावा नियमों के अनुसार, पुनर्गठित ऋण कार्यकाल को दो वर्षों से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है, वहीं कई जानकारों का मानना है कि आर्थिक सुधार के लिये दो वर्ष की अवधि भी बहुत कम है और इसे बढ़ाने की मांग की जा रही है।
- ध्यातव्य है कि जहाँ एक ओर देश की GDP में लगातार संकुचन दर्ज किया जा रहा है, वहीं दूसरी और सरकार के राजस्व को भी भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है, जिससे किसी दूसरे आर्थिक पैकेज की संभावना भी काफी कम है।
आगे की राह
- भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा घोषित ऋण पुनर्गठन योजना से कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रही कंपनियों को बड़ी राहत मिलेगी।
- हालाँकि ऋण पुनर्गठन को एक अस्थायी समाधान के तौर पर देखा जाना चाहिये, क्योंकि लंबे समय तक इसे जारी रखने से मुद्रास्फीति में वृद्धि, मुद्रा संकट और वित्तीय अस्थिरता हो सकती है।
- साथ ही नियामकों को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि कंपनियों द्वारा ऋण पुनर्गठन के प्रावधानों का दुरुपयोग न किया जाए।